Politalks.News/ModiSarkar/Chunav. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का घमासान अब अपने चरम पर है. सभी बड़े राजनीतिक दल (Political Parties) अपने अपने समय में किए गए विकास कार्यों, योजनाओं और उपलब्धियों को गिनाते हुए वोट मांगने में जुटी हैं. वहीं दूसरी ओर सियासी गलियारों में चर्चा है कि इन चुनावी राज्यों में भाजपा (BJP) अपनी उपलब्धियों के नाम पर वोट क्यों नहीं मांग रही है? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के आम बजट पेश करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) सहित भाजपा के नेताओं ने मीडिया के सामने जिन उपलब्धियों का जिक्र किया है, उन्हीं का जिक्र जनसभाओं में क्यों नहीं किया जा रहा है? बेरोजगारी, महंगाई, निजीकरण जैसे मुद्दों पर भाजपा अपनी उपलब्धियां क्यों नहीं लोगों को बता रही है?
चर्चा यह भी है कि देश के पांच राज्यों के चुनाव में क्यों भाजपा उत्तर प्रदेश के दो-दो कौड़ी के बाहुबलियों से हिंदुओं के आराध्य बजरंगबली का मुकाबला करा रही है? क्यों 30 साल के बाद भाजपा को याद आया है कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की लाल टोपी कारसेवकों के खून से रंगी हुई है? सियासी चर्चा यह है कि कोई भी भाजपा का नेता रोजगार, महंगाई, जीएसटी, नोटबंदी और देश की संपत्ति बेचने (विनिवेश) को लेकर किए जा रहे बड़े बड़े दावों का इस्तेमाल किसी भी चुनावी सभा में नहीं कर रहा है. यूपी में तो भाजपा का सिर्फ अयोध्या-काशी और मथुरा, सपा को मुसलमान परस्त बताने, दंगाबाज और माफियाराज बताने पर फोकस है.
क्यों नहीं बता रहे कितना बढ़ा रोजगार?
अगर प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा के नेताओं और बीजेपी आईटी सेल की मानें तो उनकी सात साल की उपलब्धियां बेमिसाल हैं. जो 70 साल में नहीं हुआ वह सात साल में हुआ है. जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पूंजीगत खर्च के मुकाबले चार गुना ज्यादा पूंजीगत खर्च उनकी सरकार कर रही है’. जब यूपीए के मुकाबले चार गुना ज्यादा पूंजीगत खर्च है तो बेरोजगारी की दर 45 साल में सबसे ज्यादा क्यों है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. चार गुना खर्च होने पर बुनियादी ढांचे का विकास भी चार गुना होना चाहिए और रोजगार भी चार गुना बढ़ा हुआ होना चाहिए, लेकिन यहां तो देश में 81 करोड़ लोग पांच किलो अनाज पर पल रहे हैं. खुद सरकारी रिकॉर्ड इस बात की गवाही देते हैं. इस बार सरकार ने पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी करने का हल्ला मचाया है तो यहीं कहा जा रहा है कि इससे रोजगार बढ़ेगा. जब सात साल में यह खर्च चार गुना बढ़ गया तो रोजगार कहां है? कायदे से तो चुनाव में मतदाताओं को बताना चाहिए कि रोजगार कितना बढ़ा दिया है.
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क्यों नहीं बता रहे कितनी घटी महंगाई?
बजट के बाद भाजपा के दिग्गज नेताओं ने कहा कि,’यूपीए के समय महंगाई की दर दहाई में होती थी, जो अब पांच फीसदी है. सवाल है कि महंगाई की दर आधी हो गई तो हर चीज की कीमत दोगुनी या उससे भी ज्यादा कैसे हो गई? यह चमत्कार कैसे हुआ? महंगाई दर आधी हुई है तो वस्तुओं की कीमत भी उस अनुपात में आधी होनी चाहिए. जबकि सच यहा है कि पेट्रोल, डीजल से लेकर रसोई गैस और खाने के तेल से लेकर दालों तक की कीमत डेढ़ गुनी, दोगुनी या उससे भी ज्यादा हो गई. खुदरा महंगाई पांच फीसदी है और थोक महंगाई अब तक के रिकार्ड 14 फीसदी की ऊंचाई पर है. यह आंकड़े देख कर लगता है कि भगवान भारत भूमि पर कैसे कैसे चमत्कार दिखा रहे हैं. और अगर सरकार के हिसाब से महंगाई कंट्रोल में है तो भाजपा के नेता चुनावी प्रचार में इस चमत्कार का जिक्र क्यों नहीं कर रहे हैं. वे प्रचार में कह ही नहीं रहे हैं कि हमने महंगाई को कम कर दिया है. कायदे से उन्हें शान से बताना चाहिए कि उन्होंने महंगाई घटा दी है.
क्यों जीएसटी के नाम पर वोट नहीं मांग रही भाजपा?
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में और उसके बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की जमकर तारीफ की. जनवरी के महीने में एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा जीएसटी वसूली का आंकड़ा पेश करते हुए सीतारमण ने इसे सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक की तरह पेश किया. लेकिन मजेदार बात यह है कि चुनाव में भाजपा इस मुद्दे पर भी वोट नहीं मांग रही है. कोई नेता प्रचार के दौरान यह नहीं कह रहा है कि उसने जीएसटी लागू किया, जिससे कारोबारियों को बड़ा फायदा हुआ और आम लोगों का जीवन सुधर गया. भाजपा के किसी नेता ने जीएसटी के नाम पर वोट नहीं मांगा है.
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विनिवेश अगर अच्छा काम है तो प्रचार में क्यों नहीं हो रहा जिक्र?
वित्त मंत्री ने इस बार विनिवेश के जरिए कमाई का लक्ष्य घटा दिया है. अगले वित्त वर्ष में सरकारी संपत्तियों को बेच कर 65 हजार करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य है. चालू वित्त वर्ष का लक्ष्य एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए का था, जिसे घटा कर 78 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है. सरकार निजीकरण और विनिवेश के काम को इस अंदाज में कर रही है, जैसे 70 साल की गलती सुधार रही हो लेकिन इस नाम पर भी वोट नहीं मांगा जा रहा है. कितना अच्छा लगता कि भाजपा का कोई नेता या केंद्रीय मंत्री जनसभा में कहता कि लोग भाजपा को इसलिए वोट दें क्योंकि उसने एयर इंडिया को टाटा के हाथों बेचा है या भारतीय जीवन बीमा निगम में पांच से 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने जा रही है या चार बैंकों का निजीकरण किया जाना है या भारत पेट्रोलियम के लिए ग्राहक खोजा जा रहा है या इतनी ट्रेनें व रेलवे स्टेशन बेच दिए गए और इतने अभी बेचे जाने हैं. जिस तरह से बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी पर वोट नहीं मांगा जा रहा है उसी तरह निजीकरण के नाम पर भी वोट नहीं मांगा जा रहा है. क्या भाजपा को ऐसा लग रहा है कि यह अच्छा काम नहीं है? अगर ऐसा है तो फिर उसकी सरकार यह काम कर क्यों रही है?
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उपलब्धियों पर क्यों नहीं वोट मांग रही भाजपा?
मोदी सरकार को अपने काम के दम पर वोट मांगने चाहिए और लोगों के बीच जाकर कहना चाहिए कि यह अमृत महोत्सव का वर्ष है और सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी है. सरकार ने दो करोड़ सालाना के हिसाब से 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी दे दी है. नोटबंदी की वजह से काला धन सरकार के खजाने में आ गया है. जीएसटी की वजह से कारोबारी खुश हैं और आम लोगों का जीवन बदल रहा है. देश के हर नागरिक के सर पर छत उपलब्ध करा दी गई है, हर घर को शौचालय दे दिया गया है और देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है. सरकार की कोशिशों से महंगाई दर और महंगाई दोनों आधे रह गए हैं और पूंजीगत खर्च चार गुना बढ़ाने से रोजगार चार गुना बढ़ गया है. सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए जीडीपी के छह फीसदी के बराबर आवंटन कर दिया है. देश में एक सौ स्मार्ट सिटी बन कर तैयार हैं और मेक इन इंडिया के चलते देश में विनिर्माण सेक्टर की विकास दर 14 फीसदी हो गई है. वित्त मंत्री ने कोरोना काल में 21 लाख करोड़ रुपए का जो राहत पैकेज दिया था, उससे लोग कोरोना की मार से उबर गए हैं और देश जल्दी की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने वाला है. दुर्भाग्य से इनमें से कोई भी बात सही नहीं है और संभवतः इसलिए भाजपा के नेता वोट मांगने के लिए इनमें से किसी बात का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.