सियासी चर्चा: प्रियंका की हार हुई तो बनेगा नरैटिव- योगी का मुकाबला नहीं कर पाईं, मोदी का क्या करेंगीं?

उत्तरप्रदेश का चुनावी घमासान, प्रियंका गांधी की राजनीति पर सियासी चर्चाएं, पिछले ढाई साल से मोर्चा संभाले हुए हैं प्रियंका, कांग्रेस का पूरा कैंपेन उनके इर्दगिर्द, ऐसे में हार होती है तो बनेगा नरैटिव, प्रियंका नाम का कांग्रेस का 'ब्राह्मास्त्र' हो जाएगा जाया!

प्रियंका की पूरी राजनीति दांव पर!
प्रियंका की पूरी राजनीति दांव पर!

Politalks.News/UttarPradeshChunav. उत्तरप्रदेश (UttarPradesh Assembly Election 2022) समेत पांच राज्यों में चुनावी घमासान अपने चरम पर है. सबसे ज्यादा फोकस यूपी की सियासत पर है. यहां जमीन तलाश रही कांग्रेस के लिए ये चुनाव जहां भविष्य की राजनीति के लिहाज से बहुत अहम है तो वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (priyanka gandhi) की राजनीति भी दांव पर लगी हुई है. सियासी जानकारों का कहना है कि यूपी में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर प्रियंका गांधी ने इसलिए ही यूटर्न लिया है. उत्तरप्रदेश समेत पूरे देश में कांग्रेस आपसी कलह और अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में कांग्रेस की यूपी में हार होती है तो वो प्रियंका गांधी की हार मानी जाएगी और भाजपा की आईटी सेल को पूरे देश में यह नरेटिव बनाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा कि जो प्रियंका योगी आदित्यनाथ (Yogi AdityaNath) का मुकाबला नहीं कर पाईं वो पीएम मोदी (PM Narendra Modi) का क्या करेंगी?

प्रियंका की पूरी राजनीति दांव पर!
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है तो नेता के रूप में प्रियंका गांधी वाड्रा की पूरी राजनीति भी दांव पर लगी है. प्रियंका गांधी का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश की राजनीति पर तो है ही, साथ ही वो अन्य राज्यों में कांग्रेस के झगड़ों को सुलझाने में भी राय देती हैं. कांग्रेस गाहे बगाहे उनके चेहरे पर ही यूपी में चुनाव लड़ रही है. प्रियंका ने पार्टी के प्रदेश संगठन को बनाया है और गठबंधन से लेकर उम्मीदवार तय करने और प्रचार तक समूचा जिम्मा उनका ही है. हालांकि चुनाव पूर्व तो कोई गठबंधन हो नहीं पाया अब चुनाव बाद गठबंधन पर सभी का फोकस रहेगा.

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प्रियंका ने अपने आकर्षण पर लगाया है दांव!

प्रियंका गांधी की सबसे बड़ी ताकत युवाओं और महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने की रही है. प्रियंका ने इस बार अपने उस आकर्षण को भी दांव पर लगाया है. प्रियंका ने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा दिया है और महिलाओं को 40 फीसदी सीटें देने का ऐलान किया है. यही नहीं युवाओं और महिलाओं के लिए अलग घोषणा पत्र भी जारी किया है.

10 मार्च बाद मुश्किल में पड़ सकती है प्रियंका की राजनीति!

प्रियंका गांधी वाड्रा की उत्तरप्रदेश चुनाव में भागीदारी के बावजूद अगर वो कांग्रेस की सीटें और वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा पाती हैं तो उनके लिए आगे की राजनीति बहुत मुश्किल हो जाएगी. सियासी जानकारों का मानना है अखिल भारतीय मैसेज बनेगा कि जब प्रियंका गांधी योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव से नहीं लड़ पाईं तो नरेंद्र मोदी से कैसे लड़ सकती हैं? ऐसे में यह तय है कि अगर प्रियंका गांधी का सियासी जादू 10 मार्च के बाद फीका पड़ेगा तो नरैटिव चेंज होगा ही होगा.

सपा से गठबंधन कर ऐसे बच कर निकल सकती थीं प्रियंका
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कुछ सियासी जानकारों का कहना है कि प्रियंका गांधी इस स्थिति से वे बच सकती थीं, अगर उन्होंने अपने को यूपी में इस तरह से दांव पर नहीं लगाया होता. दूसरा तरीका यह था कि प्रियंका गांधी अखिलेश यादव के साथ चाहे कम सीटें लेकर भी तालमेल करती और भाजपा को हराने के ऐलान के साथ चुनाव से अलग हों जाती.

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ढाई साल से यूपी में जी-जान से जुटी हैं प्रियंका

सियासी जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश विधासनभा चुनाव में नई उम्मीदों के साथ उतरीं कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के ही भरोसे है. कांग्रेस नेताओं के साथ आमजन का मानना है कि जमीनी स्तर पर मजबूती के लिए प्रियंका गांधी ने पिछले ढाई सालों में काफी काम किया है. कांग्रेस ने जनता के मुद्दों को उठाते हुए संघर्ष किया, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव घर से बाहर नहीं निकले. पिछले दो-तीन महीने से अखिलेश यादव एक्टिव हुए हैं, कोविड में वे बाहर नहीं आए. उन्नाव, सोनभद्र समेत जहां-जहां यूपी में समस्या दिखीं, कांग्रेस पार्टी मुद्दे को उठाते हुए लड़ी. कांग्रेस कार्यकर्ता इसके लिए जेल तक गए हैं. प्रियंका ने प्रयास तो किए हैं लेकिन अब देखना यह होगा की क्या प्रियंका अपने और पार्टी के प्रति लौटी सद्भावना को वोटों में बदल पाती हैं या नही?

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