सियासी चर्चा: प्रियंका की सक्रियता के बीच नेताओं का पलायन जारी, कैसे चुनाव लड़ेगी कांग्रेस?

उत्तरप्रदेश चुनाव का रण, सियासी जानकार मान रहे भाजपा और सपा में सीधी भिड़ंत, बसपा की सुस्ती और कांग्रेस से पलायन को लेकर चर्चाओं का दौर, प्रियंका की सक्रियता के बावजूद पार्टी के दिग्गज नेता छोड़ चुके पार्टी, जमीनी हकीकत जानते हैं 'पलायनजीवी' नेता

दिग्गजों के पलायन ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता
दिग्गजों के पलायन ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता

Politalks.News/UttraPradeshChunav. उत्तरप्रदेश में चुनावी घमासान (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) तेज हो चला है. सियासी जानकार भाजपा और सपा का सीधा मुकाबलना मान रहे हैं. साथ ही बसपा का आत्मसमर्पण तो चर्चाओं में है ही दूसरी तरफ ज्यादा चर्चा कांग्रेस पार्टी की है. और कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़वा रही प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gnadhi) की हो रही है. प्रियंका की सक्रियता के बावजूद पार्टी के युवा और दिग्गज नेता क्यों छोड़ रहे हैं. लखीमपुर, (Lakhimpur Incident) आगरा कांड के बाद प्रियंका की सक्रियता और ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ कैंपन का सोशल मीडिया (Social Media) पर तो हो हल्ला है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एक के बाद एक नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ चुके हैं. पार्टी की कोई संभावना नहीं देखते हुए पार्टी से पलायन जारी है. पिछले साल की भगदड़ को देखते हुए हैरानी हो रही है कि प्रियंका कैसे चुनाव लड़वाएंगी?

…संभावना नहीं देख तो नहीं हो रहा पलायन?
बड़ा सवाल यह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की इतनी सक्रियता, मीडिया व सोशल मीडिया के जरिए धारणा बनवाने और महिला राजनीतिक हल्ला बनवाने के बावजूद क्यों पार्टी से इतने नेताओं का पलायन हो रहा है? प्रियंका क्यों नहीं पार्टी नेताओं में भरोसा पैदा कर पा रही हैं? इसका क्या यह मतलब नहीं है कि प्रियंका अपनी प्रेस कांफ्रेंस के जरिए चाहे जो धारणा बनवाएं, जमीनी स्तर पर कांग्रेस का आधार नहीं है और इसलिए कांग्रेस के नेता अपने लिए कोई संभावना नहीं देख कर पार्टी से पलायन कर रहे हैं?

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रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है प्रियंका का!

आपको याद दिला दें कि करीब तीन साल पहले लोकसभा चुनाव भी पार्टी ने प्रियंका गांधी की कमान में लड़ा था. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उनको सक्रिय राजनीति में उतारा गया था. प्रियंका धूमधाम से कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनी थीं. लेकिन ये भी सभी को पता है कि इस चुनाव में कांग्रेस का क्या हश्र हुआ था. कांग्रेस की दो पारंपरिक सीटों में से एक अमेठी सीट पर राहुल गांधी हार गए थे. उसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा काफी समय तक लापता रहीं और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सक्रिय हुईं और जमकर खाक छानी.

एक दर्जन बड़े नेता छोड़ चुके हैं पार्टी का साथ!

प्रियंका गांधी को कमान दिए जाने के बाद से पिछले एक साल में एक दर्जन बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी है. 2017 के विधानसभा चुनाव में जीते पार्टी के सात में से पांच विधायक पाला बदल चुके हैं. पिछली बार मजबूती से लड़े उम्मीदवारों में से भी काफी लोग पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं. कांग्रेस के झारखंड प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने अभी पाला बदला है. एक और केंद्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद ने पिछले साल पाला बदला था और इस समय वे योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री हैं. स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी के परिवार से राजेश पति और ललितेश पति त्रिपाठी कांग्रेस छोड़ चुके हैं और ललितेश पति इस बार तृणमूल कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं.

क्या नए नेता सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में हो रहे हैं शामिल?

बात करें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा रहे इमरान मसूद भी कांग्रेस छोड़ कर चले गए हैं और उससे पहले मसूद अख्तर ने भी पार्टी छोड़ दी थी. पार्टी ने बड़े धूम-धड़ाके से अदिति सिंह को कांग्रेस में शामिल कराया था लेकिन चुनाव से पहले वे भी कांग्रेस छोड़ कर जा चुकी हैं. पूर्व सांसद प्रवीण एरन की पत्नी सुप्रिया एरन, विधायक नरेश सैनी, रामकुमार सिंह सहित कई नेता पार्टी छोड़ चुके. इनकी जगह कांग्रेस की ओर से नए चेहरों का हल्ला मचाया गया है लेकिन क्या नए चेहरे किसी वैचारिक प्रतिबद्धता की वजह से कांग्रेस से जुड़ रहे हैं या सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं?

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क्या पार्टी छोड़ने वाले नेताओं को पता है जमीनी हकीकत?

सियासी गलियारों में बड़ा सवाल यह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की इतनी सक्रियता, मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए धारणा बनवाने और महिला राजनीतिक हल्ला बनवाने के बावजूद पार्टी से इतने नेताओं का पलायन क्यों हो रहा है? प्रियंका क्यों नहीं पार्टी नेताओं में भरोसा पैदा कर पा रही हैं? सियासी जानकारो का कहना है कि इसका क्या यह मतलब नहीं है कि प्रियंका अपनी प्रेस कांफ्रेंस के जरिए चाहे जो धारणा बनवाएं, जमीनी स्तर पर कांग्रेस का आधार नहीं है और इसलिए कांग्रेस के नेता अपने लिए कोई संभावना नहीं देख कर पार्टी से पलायन कर रहे हैं? क्योंकि पार्टी के नेताओं को तो पता ही है कि पार्टी का कैडर तो है ही नहीं. आखिरकार वोट तो कार्यकर्ता ही डलवाएंगे. ऐसे ही चर्चा तो यह भी हो रही है कि कहीं कांग्रेस की हालत पिछली बार से भी पतली नहीं हो जाए. कांग्रेस ने पिछले चुनाव में सपा के साथ गठबंधन किया था और 114 सीटों में से मात्र 7 सीटों पर जीत दर्ज पाई थी.

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