विशेष: कांग्रेस के डूबते जहाज को पीके का सहारा, लेकिन क्या किशोर के पास नहीं था कोई दूसरा किनारा?

कांग्रेस को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अगले लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम दो से तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतना ही होगा, कांग्रेस के पास प्रशांत किशोर का विकल्प आजमाने के सिवा अभी कोई रास्ता नहीं बचा, अब सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस की किस्मत बदल पाएंगे?

पीके और कांग्रेस एक दूसरे का एकमात्र विकल्प?
पीके और कांग्रेस एक दूसरे का एकमात्र विकल्प?

Politalks.News/Congress/PrashantKishore. लोकसभा चुनाव और उसके बाद से लगभग सभी चुनाव और खासकर हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस को अब सफल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर में बहुत सी संभावनाएं नजर आने लगी है. जैसे डूबते को तिनके का सहारा होता है वैसे ही कांग्रेस को प्रशांत किशोर में सहारा नजर आ रहा है. कांग्रेस को पता है कि अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए उसे अगले लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम दो से तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतना ही होगा तभी वह लोकसभा का चुनाव लड़ पाएगी अन्यथा चुनाव से पहले ही उसकी लड़ाई खत्म मान ली जाएगी. इसलिए कांग्रेस के पास प्रशांत किशोर का विकल्प आजमाने के सिवा अभी कोई रास्ता बचा नहीं है.

दूसरी तरफ ममता बनर्जी से मोहभंग और शरद पवार व नीतीश कुमार से नाउम्मीद हो चुके प्रशांत किशोर को भी नरेंद्र मोदी से 2024 के महामुकाबले के लिए कांग्रेस में ही वो स्पार्क नजर आ रहा है जिसकी उन्हें तलाश है. TMC हो NCP हो या जदयू, रहेंगे ये क्षेत्रीय दल ही, जबकि कांग्रेस एकमात्र विकल्प है जो सम्पूर्ण भारत की पार्टी है और पूरे देश के कोने कोने तक फैली है. वैसे भी प्रशांत किशोर हमेशा कहते रहे हैं कि कांग्रेस जिस आइडिया और स्पेस का प्रतिनिधित्व कर रही है उसको विपक्ष की जरूरत है. इसलिए माना जा रहा है कि 2024 के लिए वह आइडिया और स्पेस उनको मिलने जा रहा है. लेकिन क्या कांग्रेस में पीके को वह मौका मिलेगा, जिसकी उम्मीद में वे कांग्रेस से जुड़ने या उसके साथ काम करने जा रहे हैं? आपको बता दें, प्रशांत किशोर अब तक ऐसी पार्टियों के लिए काम करते रहे हैं, जहां सिंगल कमांड चलती है. उन्हें दस जगह पंचायत करने की जरूरत कभी नहीं पड़ी है, जबकि कांग्रेस में उनकी शुरुआत ही पंचायत से हुई है.

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आपको बता दें, पिछले 5 दिनों में प्रशांत किशोर 4 बार नेहरू-गांधी परिवार के तीनों सदस्यों- सोनिया, राहुल व प्रियंका के साथ पार्टी के कई दिग्गज नेताओं के सामने अपना प्रेजेंटेशन दे चुके हैं. इसमें उन्होंने बताया कि कांग्रेस को चार सौ से कम सीटों पर लड़ना चाहिए और बाकी सीटों पर रणनीतिक तालमेल करना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने कई रणनीतिक बातें भी समझाईं. इसके बावजूद शुरू की दो मीटिंग्स के बाद तय हुआ कि सोनिया गांधी एक कमेटी बनाएंगी, जो सात दिन में बताएगी कि प्रशांत किशोर का प्रेजेंटेशन कैसा है और वह कांग्रेस के लिए फायदेमंद है या नहीं?

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इसी कड़ी में कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने और आगामी चुनाव के लिए रणनीति तैयार करने के लिए सुझाव देने के संबंध में पार्टी अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की बनाई गए विशेष समिति ने बीते रोज बुधवार को कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात कर विचार-विमर्श किया. जानकारों की मानें तो सोनिया ने वरिष्ठ नेताओं को बताया कि प्रशांत किशोर जल्द पार्टी में शामिल होंगे और 2024 के लिए रणनीति बनाने का काम करेंगे. यही नहीं सोनिया ने वरिष्ठ नेताओं से पीके के लिए उपयुक्त पद या भूमिका के बारे में सुझाव देने के लिए भी कहा है. वहीं बैठक के बाद मीडिया को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि पीके की भूमिका को लेकर विशेष समिति पिछले दो-तीन दिनों से विचार-विमर्श कर रही है और अगले तीन दिनों में अपनी रिपोर्ट देगी. हम अगले 48 से 72 घंटों में इन विचार-विमर्शों को समाप्त करने का प्रस्ताव करते हैं. यह समिति चुनाव लड़ने के लिए संगठन को मजबूत करने और इसे 2024 के आम चुनाव और अन्य राज्य विधानसभा चुनावों के लिए तैयार करने के लिए उपाय सुझाएगी.

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सियासी जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस आलाकमान के सामने जो योजना पेश की है वह अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला बनवाने का है. पीके ने कोई पौने दो सौ के करीब सीटों पर कांग्रेस के सियासी गठबंधन का भी प्रस्ताव रखा है लेकिन जिन 370 के करीब सीटों पर उन्होंने कांग्रेस के अकेले लड़ने का सुझाव दिया है वहां सीधा मुकाबला भाजपा से होगा. पारंपरिक रूप से कई राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि में कांग्रेसऔर भाजपा का मुकाबला होता रहा है. लेकिन पीके ने कुछ ऐसे राज्य भी कांग्रेस के अकेले लड़ने के लिए चुने हैं, जहां मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां हैं. वे चाहते हैं कि कांग्रेस बिहार और उत्तर प्रदेश में भी अकेले लड़े. यह जोखिम का काम है. इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है लेकिन सूत्रों की मानें तो पीके की सलाह पर राहुल गांधी यह जोखिम लेने को तैयार हैं.

अब सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस की किस्मत बदल पाएंगे? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि कांग्रेस पिछले कुछ समय से लगातार चुनाव हार रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद से कांग्रेस एक भी चुनाव नहीं जीत पाई है. लोकसभा चुनाव के बाद पिछले तीन साल में 17 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं और किसी भी राज्य में कांग्रेस अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकी है. तमिलनाडु और झारखंड में उसकी सीटों में कुछ इजाफा हुआ लेकिन वह सहयोगी पार्टियों के दम पर हुआ. महाराष्ट्र में भी वह सरकार में है लेकिन वह चुनाव बाद बनी परिस्थितियों के कारण हुआ. इसके अलावा ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस न सिर्फ हारी है, बल्कि उसका वोट प्रतिशत भी कम हुआ है. सोचें, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में, जहां प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूरी ताकत लगाई वहां कांग्रेस को ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले हैं. उत्तर प्रदेश का नतीजा कांग्रेस की बदहाली का सबसे बड़ा सबूत है. ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश अकेला राज्य है, जहां कांग्रेस का वोट पांच प्रतिशत से कम रहा. पिछले तीन साल में जिन 17 राज्यों में चुनाव हुए हैं उनमें से पांच राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस का वोट पांच फीसदी से भी कम है. इसलिए कांग्रेस के नेता भले बताते रहें कि कांग्रेस के पास अब भी सात सौ से ज्यादा विधायक हैं लेकिन उनको जमीनी हकीकत की जानकारी भी है.

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सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस की इस दुर्दशा का अंदाजा है. उनको पता है कि कांग्रेस के पास वोट की कोई बड़ी पूंजी नहीं है. लोकसभा चुनाव में मिले जिस 11-12 करोड़ वोट का हवाला कांग्रेस देती है उसमें से ज्यादातर वोट अल्पसंख्यकों का है और उनको भी अगर कोई विकल्प मिलता है तो उन्हें कांग्रेस को छोड़ने में समय नहीं लगेगा. इसके बावजूद अगर प्रशांत किशोर जोखिम ले रहे हैं तो उसका कारण यह है कि वे विपक्ष की एकजुटता के लिए कांग्रेस के आइडिया और उसके स्पेस को जरूरी मानते हैं. इसके अलावा उम्मीद की एक किरण यह है कि इस साल गुजरात और हिमाचल में होने वाले विधानसभा चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़ कर लगभग हर जगह भाजपा सरकार में है. यानी पीके ऐसी रणनीति बना सकते हैं, जिससे एंटी इन्कम्बैंसी का लाभ कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को मिले. गुजरात में तो कांग्रेस लगातार छह चुनाव हार चुकी है. तीसरी अहम बात यह है कि वे भाजपा की हर रणनीति और उसकी ताकत व कमजोरी से वाकिफ हैं.

खैर, अब सभी की निगाहें अगले 48 से 72 घण्टों के अंदर सोनिया गांधी द्वारा बनाई गई कमेटी के उस फैसले पर टिकी हैं जिसके तहत प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होंगे और उसे 2024 का चुनाव लड़वाएंगे. आपको बता दें कि अब तक के अपने राजनीतिक अभियान में प्रशांत किशोर सिर्फ एक बार उत्तर प्रदेश में विफल हुए हैं. उसके अलावा वे हर चुनाव में सफल रहे हैं और उनके इस रिकॉर्ड और इस छवि का लाभ भी कांग्रेस को मिलेगा. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ेगा और पार्टी से उम्मीद खो चुके नेता भी अलग होने से पहले दस बार सोचेंगे. यही नहीं पीके से मुकाबले के लिए भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी.

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