Politalks.News/WinterSession of Parliament. संसद (Sansad) का शीतकालीन सत्र (Winter Session) तय समय से एक दिन पहले ही खत्म कर दिया गया. मानसून सत्र के बाद शीतकालीन सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया. खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का उपदेश भी काम नहीं आया. शीतकालीन सत्र के दौरान संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने सांसदों को सदन में उपस्थित रहने की हिदायत दी थी, लेकिन हालात ढाक के तीन पात रहे. ऊपर से मजे की बात इस बार सदन में जो हुई उसे जानने के बाद आप दांतों तले अंगुलियां दबा लेंगे, बीजेपी (BJP) सांसदों (MPs) को उपदेश देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद ही पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान कार्यवाही का हिस्सा नहीं रहे. अधिकांश समय पीएम मोदी यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी के चुनाव प्रचार में बिजी रहे.
सबसे बड़ा मजाक तो सदन का तब बना जब इसी हफ्ते के सोमवार को प्रश्नकाल में सवाल पूछने वाले खुद 14 सांसद सदन में मौजूद नहीं थे. यहां तक की एक बार तो हद ही हो गई जब मुख्य सचेतक और सरकार के मंत्री सदन में मौजूद नहीं थे. सियासी जानकारों का कहना है कि उपदेश और आचरण में समानता होनी जरूरी है. साथ ही चुनावों को देखते हुए संसद का कैलेंडर जारी करने की भी चर्चा जोरों पर है.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शीतकालीन सत्र के दौरान संसदीय दल की बैठक में सांसदों को जोरदार नसीहत दी थी. आपको यह भी बता दें कि पिछले सात साल से पीएम मोदी अपनी पार्टी के सांसदों को उपदेश दे रहे हैं कि संसद की कार्यवाही के दौरान उनको मौजूद रहना चाहिए. इसके बावजूद उनके सांसद नदारद रहते हैं तो इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि प्रधानमंत्री खुद संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेते हैं. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस के सांसदों ने इस ओर सदन का ध्यान भी दिलाया.
कांग्रेस के सांसदों की माने तो शीतकालीन सत्र के तीन हफ्ते में प्रधानमंत्री सत्र के पहले दिन यानी 29 नवंबर को सत्र की कार्यवाही में शामिल हुए थे. उसके बाद से एक भी दिन सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए. संसद के सत्र के दौरान पीएम मोदी ने उत्तरप्रदेश में कई जनसभाएं कीं. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया तो गंगा एक्सप्रेस वे का शिलान्यास भी किया. इसके साथ ही पीएम मोदी ने उत्तराखंड और गोवा में भी चुनावी जनसभा की, यानी पीएम मोदी चुनावी राज्यों का दौरा करने में ही व्यस्त रहे.
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वहीं दूसरी तरफ जब पीएम मोदी ही सदन से गायब रहे तो उनके साथ ही उनकी पार्टी के सांसद भी सदन से नदारद रहे. प्रश्न पूछ कर भी बीजेपी सांसद सदन से गैरहाजिर रहे तो कई बार मोदी सरकार के मंत्रियों ने भी सदन में मौजूद रहने की जरूरत नहीं समझी. आपको ध्यान दिला दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस सत्र के दौरान पार्टी की संसदीय दल की बैठक में सांसदों को चेतावनी भी दी कि, ‘वे खुद को बदलें नहीं तो बदल दिए जाएंगे‘ तब भी सांसदों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है.
संसद की गरिमा को लेकर ‘माननीय‘ कितने गंभीर हैं इसकी बानगी यह है कि संसद के इस सत्र में जिस दिन कोरोना पर चर्चा होनी थी उस दिन चर्चा शुरू कराने के लिए कोरम पूरा नहीं हो रहा था. बाद में कोरम पूरा हुआ तो चर्चा शुरू हुई. इसी तरह आखिरी हफ्ते के पहले दिन सोमवार को सवाल पूछ कर 14 सांसद नदारद थे. इस दिन सदन में बीस तारांकित प्रश्न थे और सबका मौखिक जवाब दिया जाना था लेकिन पूरक प्रश्न पूछने के लिए जिन सांसदों ने अपने नाम दिए थे उनमें से 14 सांसद गायब थे. बड़े मजे की बात यह है कि इनमें से नौ सांसद भाजपा के थे. इससे भी मजे की बात यह है कि लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक राकेश सिंह भी इनमें से एक थे. मतलब जिनकी जिम्मेदारी सदन में सांसदों की मौजूदगी सुनिश्चित करने की थी वे खुद मौजूद नहीं थे. हालांकि तुरंत ही वे भाग कर पहुंचे लेकिन तब तक उनका सवाल निकल गया था और स्पीकर ने उनको मौका नहीं दिया. इसी सत्र में यह भी हुआ कि राज्यसभा में कार्यवाही के दौरान कोई भी मंत्री मौजूद नहीं था, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए, ये सदन का अपमान माना जाता है.
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इन सबके साथ ही सियासी गलियारों में एक रोचक चर्चा यह है कि चुनावों को देखते हुए संसद का कैलेंडर तय किया जाना चाहिए. क्योंकि पार्टियों खासकर भाजपा के द्वारा चुनाव प्रचार में सांसदों की ड्यूटी लगा दी जाती है, तो वो संसद में कैसे पहुंचेंगे? ध्यान रहे संसद के पिछले सत्र में भी इसी तरह हुआ था. बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान पांच राज्यों- पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में चुनाव चल रहे थे और प्रधानमंत्री सहित सत्तापक्ष और विपक्ष के तमाम सांसद, नेता इन चुनावों में अपने को झोंके हुए थे. इसलिए सभी सांसदों ने मिल कर संसद सत्र जल्दी खत्म करने का आग्रह किया, जिसकी वजह से सत्र दो हफ्ते पहले खत्म कर दिया गया था.
आपको बता दें, संसद का बजट सत्र 29 जनवरी को शुरू हुआ था और आठ अप्रैल तक चलना था लेकिन पार्टियों के आग्रह पर इसे दो हफ्ते पहले 25 मार्च को ही खत्म कर दिया गया. अब शीतकालीन सत्र में आने वाले यूपी सहित 5 राज्यों के चुनावों में सांसदों की प्रचार में ड्यूटी लगी हुई है. सियासी जानकारों का कहना है कि, इसलिए अब समय आ गया है कि राज्यों में होने वाले चुनावों के हिसाब से सत्र का कैलेंडर बने ताकि सांसद प्रचार करने का ज्यादा जरूरी काम कर सकें.