Politalks.News/Haryana. चंडीगढ़ को लेकर शुरू हुआ सियासी घमासान ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. एक तरफ जहां पंजाब की भगवंत मान सरकार ने 1 अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुला चंडीगढ़ पर पंजाब का हक होने का प्रस्ताव पास करा लिया. तो वहीं पंजाब सरकार के इस फैसले के खिलाफ हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार आज विधानसभा का विशेष सत्र बुला पंजाब सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लेकर आई है. इस दौरान हरियाणा विधानसभा में पंजाब के चंडीगढ़ का पूर्ण अधिकार देने के प्रस्ताव पर चिंता भी जताई गई. आपको बता दें कि चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है. दोनों राज्यों के बीच 56 सालों से ये मुद्दा चला आ रहा है.
सीएम खट्टर ने प्रस्ताव किया पेश
हरियाणा सरकार ने चंडीगढ़ मुद्दे को लेकर मंगलवार को विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाया. जिसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चंडीगढ़ पर हरियाणा के दावे का प्रस्ताव रखा. इससे पहले पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार 1 अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुला पंजाब पर अपना हक जताने वाला प्रस्ताव पास करा चुकी है. आपको बता दें कि, ‘चंडीगढ़ में सरकारी कर्मचारियों पर केंद्रीय सर्विस नियम लागू करने के बाद दोनों राज्यों के बीच यह विवाद फिर से शुरू हुआ है.’ विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सरकारी संकल्प प्रस्ताव पढ़ते हुए कहा कि, ‘सतलुज यमुना लिंक नहर के पानी पर हरियाणा का अधिकार संवैधानिक है. एसवाईएल नहर को जल्द पूरा करने के लिए 7 बार प्रस्ताव पारित किए थे. सभी ने पानी के दावों को बरकरार रखा है.’
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सीएम खट्टर ने की केंद्र सरकार से अपील
सदन में प्रस्ताव पेश करते हुए सीएम खट्टर ने कहा कि, ‘पंजाब ने हरियाणा के दावे को नामंजूर करते हुए कई प्रस्ताव पारित किए. 1 अप्रैल 2022 को पंजाब विधानसभा में विधेयक पारित किए. इसलिए सदन पंजाब के प्रस्ताव पर चिंता प्रकट करता है. ये हरियाणा के लोगों को स्वीकार्य नहीं है. चंडीगढ़ के दावे पर हरियाणा अपना अधिकार बरकरार रखेगा. पंजाब ऐसा कोई कदम न उठाए जिससे कि संतुलन बिगड़ जाए.’ सीएम खट्टर ने आगे कहा कि, ‘सदन ने पहले भी अलग उच्च न्यायालय के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था. सदन इस बात पर चिंता व्यक्त करता है कि चंडीगढ़ प्रशासन में हरियाणा से प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अधिकारियों की निुयक्ति कम होती जा रही है. इसलिए केंद्र सरकार से आग्रह करता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना के लिए एसवाईएल पर पंजाब सरकार पर दबाव बनाए.
पंजाब द्वारा लाया गया प्रस्ताव है राजनीतिक जुमला
वहीं सदन की चर्चा में भाग लेते हुए डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा कि, ‘शाह कमीशन की रिपोर्ट में मोहाली और खरड़ का एरिया भी हरियाणा को देने की अनुंशसा की थी. अब हमें मोहाली पर भी अपना हक जताना चाहिए. केंद्र पंजाब विश्वविद्यालय में हरियाणा की हिस्सेदारी 60-40 प्रतिशत करवाने का काम करें.’ वहीं सदन में चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि, ‘पंजाब ने बिना किसी मकसद के चंडीगढ़ से जुड़ा प्रस्ताव पास किया था जो कि एक राजनीतिक जुमले की तरह है. 1966 में हरियाणा बना और शाह कमीशन ने मैजोरिटी से चंडीगढ़ हरियाणा को दिया. पंजाब और हरियाणा में सिर्फ तीन विवाद है, पानी का, हिंदी भाषाई क्षेत्र, राजधानी का.’
पंजाब है बड़ा भाई उसे ऐसा करना नहीं देता शोभा
वहीं सदन में चर्चा के दौरान जजपा विधायक ईश्वर सिंह ने कहा कि, ‘पंजाब विश्वविद्यालय पर पंजाब धक्केशाही कर रहा है. जो प्रस्ताव पंजाब सरकार ने पास किया वह असंवैधानिक है. पंजाब बड़ा भाई है, उसे ऐसा करना शोभा नहीं देता. मैं इसकी निंदा करता हूं. हरियाणा अपने अधिकारों से वंचित है.’ वहीं सदन में एक अन्य विधायक ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि, ‘पंजाब की सरकार ने जो यह प्रस्ताव पास किया तो भाईचारा तोड़ने का काम किया. क्या हम अब हम भी यह भाईचारा तोड़ने का काम करेंगे.’
1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव हुआ पास
आपको बता दें कि 1 अप्रैल शुक्रवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा का विशेष सत्र बुला चंडीगढ़ पर अपना हक जताते हुए प्रस्ताव सदन से पास करा लिया. इस प्रस्ताव में कहा गया है, ‘पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के जरिए पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए. तब से पंजाब और हरियाणा राज्य के उम्मीदवारों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पदों को देकर साझा संपत्तियों जैसे कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के प्रशासन, में संतुलन रखा गया. हाल के अपने कई कदमों से केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.’
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दरअसल चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे की यह कहानी नई नहीं है बल्कि पंजाब विधानसभा में इस तरह का यह सातवां प्रस्ताव है. पहला प्रस्ताव 18 मई, 1967 में आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद और फिर 19 जनवरी 1970 में चौधरी बलवीर सिंह लेकर आए थे. दोनों ही प्रस्ताव पंजाब में गुरनाम सिंह की सरकार के दौरान लाए गए थे. इसके बाद 1978,1985,1986, 2014 में भी पंजाब ने प्रस्ताव पास किया, जबकि हरियाणा ने एसवाईएल पर 2000 से लेकर अब तक 5 बार प्रस्ताव पास किया.