Politalks.News/Congress. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में कांग्रेस (Congress) की निराशाजनक हार तो किसी से छिपी नही है, जिनमें चार राज्यों में भाजपा और एक राज्य पंजाब (Punjab) में आप की सरकार भी बन गई है. दूसरी तरफ चुनाव के नतीजे आने के तीन हफ्ते बाद भी मणिपुर छोड़ कर बाकी तीन राज्यों में जहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी है, वहां अभी तक विपक्ष का नेता तक नहीं चुना गया है. यहां तक कि पांच राज्यों के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों के इस्तीफे भी हो गए हैं लेकिन नए अध्यक्ष की नियुक्ति कब होगी, यह किसी को भी पता नहीं है? अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि संगठन(Organization) में फेरबदल जब होगा तब होगा लेकिन पार्टी के विधायक दल का नेता तो चुन लेना चाहिए था. इन राज्यों में कांग्रेस नेता नहीं चुन पाई है जबकि सभी राज्यों में विधानसभा के सत्र भी हो चुके हैं.
सियासी जानकारों का सवाल है कि उत्तराखंड और पंजाब में तो कांग्रेस की समस्या किसी हद तक समझ में आती है कि पार्टी ने जिन नेताओं के चेहरे पर चुनाव लड़ा था वे ही हार गए, लेकिन गोवा में क्या समस्या है? यह समझ में नहीं आ रहा है, गोवा में कांग्रेस किसी के चेहरे पर नहीं लड़ी थी लेकिन यह तय माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस जीती तो पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे दिगंबर कामत उसके सीएम बनेंगे. कामत विधानसभा का चुनाव जीत गए हैं लेकिन अभी तक कांग्रेस ने उनको नेता बनाने का फैसला नहीं किया है. गोवा में चर्चा यह है कि किसी और का नाम कांग्रेस को तय करना है तो वह भी अब तक हो जाना चाहिए था.
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आपको बता दें, पंजाब में कांग्रेस चरणजीत सिंह चन्नी के चेहरे पर लड़ी थी. चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने दिग्गज कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर पार्टी ने दलित कार्ड खेला था. चन्नी दो सीटों से विधानसभा का चुनाव लड़े थे और दोनों जगह से ही हार गए. अब कांग्रेस के सामने मुश्किल है कि किसको नेता बनाया जाए? पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी चुनाव हारे हुए हैं. अब बचे नेताओं में पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, पूर्व सांसद प्रताप सिंह बाजवा और राजा अमरिंदर वडिंग चुनाव जीते हैं और तीनों अपने लिए लॉबिंग कर रहे हैं.
वहीं बात करें उत्तराखंड कांग्रेस की तो यहां कांग्रेस की ओर से अघोषित दावेदर वयोवृद्ध हरीश रावत ही थे लेकिन वे भी विधानसभा का चुनाव हार गए. अब पहाड़ी राज्य में पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि किसको विधायक दल का नेता बनाया जाए. पुराने और बड़े नेता या तो भाजपा में चले गए या हार गए. जो नेता भाजपा से वापस कांग्रेस में लौटे वे या तो चुनाव नहीं लड़े या पार्टी उनको विधायक दल का नेता नहीं बनाना चाह रही हैं.
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ऐसे में दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस में फैसले लेना कितने मुश्किल हैं. पार्टी को नेता विपक्ष चुनना है और वह नहीं हो पा रहा है. कांग्रेस को राज्यों में प्रदेशाध्यक्ष चुनने हैं वो हो नहीं पा रहा है. कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान को हर मुद्दे पर आम सहमति बनाने की चिंता है. जबकि यह आलाकमान की ताकत कम होने का संकेत भी है. कहा यह भी जा रहा है कि सभी को खुश करने के चक्कर में कहीं ज्यादा देरी ना हो जाए. वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि अपने हर फैसले के गलत साबित होने से कांग्रेस आलाकमान सदमे में है. पंजाब में चन्नी और सिद्धू, उत्तराखंड में रावत और यूपी में प्रियंका गांधी के प्रयोग फेल होने के बाद कांग्रेस सदमे में है अब देखना यह होगा की कांग्रेस इस सदमे से कब तक उभर पाती है.