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एनडीए को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी राजनीतिक पार्टियों द्वारा खड़ा किया गया विपक्षी एकता गठबंधन I.N.D.I.A. (इंडिया नेशनल डवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) जल्दी ही टूट की कगार पर होगा. हालांकि गठबंधन में ‘भीष्म पितामह’ का किरदार निभा रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में संकेत दिए हैं कि गठबंधन की अगली बैठक से पहले कुछ अन्य एनडीए समर्थित पार्टियां हमारा हाथ थामने की तैयारी में हैं. इसके विपरीत यह गठबंधन आम आदमी पार्टी के गले की वो हड्डी बनता जा रहा है जो न निगलते बन रहा है और न ही उगलते. देश की राजनति के भविष्य की ओर देखा जाए तो भी आप के लिए यह गठबंधन उसकी प्रगति में बाधक बनेगा, यह निश्चित है. इसी वजह से पार्टी संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी खासी दुविधा में हैं.

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एक तरह से देखा जाए तो गठबंधन अरविंद केजरीवाल के लिए जरूरी नहीं, बल्कि मजबूरी था. केजरीवाल संसद में दिल्ली सेवा विधेयक पर विपक्ष का साथ चाहते थे. उन्हें पता था कि अगर यहां साथ नहीं मिला तो यह विधेयक रोक पाना उनके अकेले के बूते की बात नहीं है. कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को भी आम आदमी पार्टी की बढ़ती राजनीतिक ताकत का अंदाजा है. यही वजह रही कि केजरीवाल गठबंधन में अपनी हर बात मनवाते गए. हालांकि जिस विधेयक के लिए वो गठबंधन के साथ गए थे, वो सांसदों की दल संख्या के कम होने से पास हो गया और केजरीवाल के मंसूबों पर पानी फिर गया.

फिलहाल केजरीवाल गठबंधन के साथ हैं और लोकसभा चुनाव 2024 तक बने भी रहेंगे लेकिन उसके बाद उनका इस गठबंधन के साथ रहना मुश्किल होगा. ऐसा करना आम आदमी पार्टी के निकट राजनीतिक भविष्य के लिए भी नुकसानदायी साबित होगा. इसकी बहुत बड़ी वजह है. वो यह है कि इस वक्त भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी को ही देश में तीसरे विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. देश में फिलहाल 6 राजनीतिक पार्टियों को ही राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है. इनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है. इससे पहले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) और शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP) भी राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पार्टियों की सूची में शामिल थी लेकिन राज्य के बाहर घटने जनाधार के चलते वे अब स्थानीय पार्टियां बनकर रह गयी हैं. चुनाव आयोग ने भी उनकी राष्ट्रीय राजनीतिक मान्यता को रद्द कर दिया है.

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इस सूची में आम आदमी पार्टी ने बहुत जल्दी जगह बनायी है. अन्य तीन राष्ट्रीय मान्यता पार्टियों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) है. हालांकि उक्त तीनों का राष्ट्रीकरण केवल विभिन्न राज्यों में गिनती की सीटों तक सीमित है. इधर, आम आदमी पार्टी ने केवल पिछले 10 सालों के भीतर ही दो बड़े राज्यों दिल्ली और पंजाब में एक तरफा पूर्ण बहुमत सरकार बनाई है. गोवा की 40 में से दो और गुजरात में 5 सीटों पर भी पार्टी का कब्जा है.

भविष्य में आम आदमी पार्टी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में भी चुनाव लड़ने की इच्छुक है. निकट भविष्य में केजरीवाल की नजर बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडू जैसे गैर हिन्दी राज्यों में भी प्रतिनिधित्व करने पर भी है. यहां स्थानीय पार्टियों का दबदबा है जबकि राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एवं बिहार में राजद-कांग्रेस-जदयू की संयुक्त सरकार है. ऐसे में यहां आम आदमी पार्टी के लिए सीट छोड़ना कांग्रेस या अन्य स्थानीय पार्टियों के लिए आसान नहीं होगा.

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लोकसभा चुनाव 2024 के हिसाब से भी देखें तो यहां अरविंद केजरीवाल का थोड़ा सा फायदा जरूर हो सकता है. राजधानी दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें हैं जिन पर बीजेपी का कब्जा है. यहां पर आप प्रतिनिधि सभी सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे थे. अगर यहां कांग्रेस का साथ मिलता है तो दो से तीन सीटें आम आदमी पार्टी के खाते में आ जाएंगी. फिलहाल के लिए लोकसभा में आप पार्टी का कोई प्रतिनिधि नहीं है. राज्यसभा में जरूर उनके कुछ प्रतिनिधि बैठे हैं जो दिल्ली और पंजाब की वजह से हैं. इकलौते आप सांसद भगवंत मान के पंजाब सीएम बनने के बाद लोकसभा से आप बिलकुल खाली हो चुकी है. दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के सहयोग से उनकी ये भरपायी पूरी हो जाएगी.

आगामी भविष्य को देखें तो आम आदमी पार्टी का सपना देश की जनता के लिए तीसरा विकल्प बनना है. वो तभी हो सकता है जब आप इन दोनों पार्टी से अलग विचारधारा बनाए. दिल्ली की जनता के बीच जब आम आदमी पार्टी ने स्वयं के तौर पर कांग्रेस और बीजेपी का​ विकल्प रखा, तब वह सफल हुई थी. पंजाब में भी कमोबेस यही स्थिति रही. राजस्थान, एमपी, कर्नाटक आदि राज्यों में भी यही ​तीसरी विकल्प भविष्य में उनके लिए सफलता का विजयी द्वार खोल सकता है. यह बात अरविंद केजरीवाल भी भली भांति समझते हैं. इस पहलू के चलते आम आदमी पार्टी अपने फायदे को देखते हुए लोकसभा चुनाव तक तो गठबंधन के साथ आ सकती है लेकिन उसके बाद यहां से बाहर निकलना ही उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगा.

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