punjab cm bhagwant maan
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आम आदमी पार्टी (AAP) के हाथों पंजाब राज्य फिसलने की कगार पर है. मान सरकार की एक हठ ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक को भी पशोपश में डाल दिया है. बात इतनी बढ़ गई है कि पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने तक की धमकी दे दी है. इधर, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी आर पार की लड़ाई लड़ने की कसम खा ली है. उन्होंने कहा कि सीएम की कुर्सी छिनने के डर से मैं कंप्रोमाइज कर लूंगा तो जान लें मैं कोई समझौता नहीं करूंगा. इसके बाद सरकार और राज्यपाल के बीच आपस में ढन गयी है. दूसरी ओर, अगर आप सरकार के हाथों से पंजाब जाता है तो आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय मान्यता पूरी तरह से खतरे में आ सकती है. इसके चलते दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल खासा चिंतिंत हैं.

दरअसल, हुआ कुछ यूं है कि राज्यपाल पुरोहित ने पंजाब सरकार को 15 अगस्त को एक पत्र भेजकर कुछ जानकारियां मांगी थी. अब 12 दिन बीतने के बावजूद सरकार की ओर से राज्यपाल को अभी तक कोई जानकारी नहीं दी गई है. राज्यपाल ने इसे संवैधानिक कर्तव्य का अपमान माना है और सीएम भगवंत मान को उचित कदम उठाने की बात कही है. राज्यपाल द्वारा लिखे खत में लिखा है, ’15 अगस्त को पत्र लिखकर राजभवन ने पंजाब सरकार से कुछ जानकारियां मांगी थी. 11 दिन बीतने के बावजूद सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है. अगर राज्यपाल के पत्र का जवाब नहीं मिलता है तो ये संवैधानिक कर्तव्य का अपमान है. इससे पहले कि वह संविधान के अनुच्छेद 356 और भारतीय दंड संहिता की धारा 124 के तहत अंतिम निर्णय लें, मुख्यमंत्री भगवंत मान उचित कदम उठाएं.’

गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 167 के प्रावधानों के मुताबिक, राज्यपाल अगर राज्य के प्रशासनिक मामलों के बारे में कोई जानकारी मांगें तो मुख्यमंत्री द्वारा उसे उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य होता है. ऐसा नहीं करके राज्य सरकार संविधान के मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है. इस चिट्ठी को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है. इसके जवाब में CM भगवंत मान ने कहा है कि गवर्नर को लगता है कि उनकी चिट्‌ठी के बाद सीएम की कुर्सी छिनने के डर से मैं कंप्रोमाइज कर लूंगा तो जान लें मैं कोई समझौता नहीं करूंगा.

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इससे पहले राज्यपाल ने पत्र में लिखा था कि चूंकि पंजाब सीमावर्ती राज्य है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवादियों पर लगाम का मामला सबसे अहम है. इसके बावजूद पंजाब में नशा चरम पर है. राज्य में हर मेडिकल दुकानों और शराब के ठेकों पर गैरकानूनी नशीले पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं. इससे साफ है कि पंजाब में कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल है. राज्यपाल ने सीएम को भेजे अपने पत्र में दावा भी किया कि बॉर्डर बेल्ट में किराना दुकानों पर भी सरेआम ड्रग्स बिक रही हैं और उन्हें पंजाब में बड़े पैमाने पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग को लेकर विभिन्न एजेंसियों से रिपोर्ट मिली है.

राज्यपाल पुरोहित ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB और चंडीगढ़ पुलिस की हालिया कार्रवाई का हवाला देते हुए लिखा- पंजाब में केमिस्ट की दुकानों में आसानी से ड्रग उपलब्ध हैं. साथ ही एक नया ट्रेंड देखा गया है कि ड्रग को सरकारी शराब की दुकानों में बेचा जा रहा है. लुधियाना में ड्रग बेचने के आरोप में शराब की 66 दुकानों को सील किया गया है.

हालांकि इस सब बातों की शुरूआत भी भगवंत सरकार ने ही की थी. सबसे पहले राज्यपाल ने 36 सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजने के मामले में सरकार से जवाब-तलब किया. इस पर सीएम ने कहा कि वह 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं, न कि किसी सिलेक्टेड शख्स के प्रति. पिछले साल पंजाब विधानसभा के बजट सत्र की मंजूरी देने से इनकार करते हुए राज्यपाल ने सरकार से पहले एजेंडा भेजने को कहा. इस पर मान सरकार अदालत तक चली गई. उसके बाद राज्यपाल ने सेशन बुलाने की मंजूरी दी थी.

राज्यपाल के आदेश पर ही चंडीगढ़ के SSP कुलदीप चहल को कार्यकाल खत्म होने से 10 महीने पहले उनके मूल कैडर में पंजाब वापस भेजा गया. राज्यपाल के इस फैसले पर भगवंत मान ने सार्वजनिक आपत्ति जताई. इसके बाद मुख्यमंत्री ने चहल को जालंधर का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया. 26 जनवरी 2022 को गणतंत्र दिवस पर राज्यपाल पुरोहित को जालंधर में राज्यस्तरीय कार्यक्रम में सलामी लेनी थी, लेकिन पुलिस कमिश्नर कुलदीप चहल ने उनसे दूरी बनाए रखी. इस पर राज्यपाल ने सार्वजनिक ऐतराज जताते हुए इसे प्रोटोकॉल का उल्लंघन बताया था. अब राज्यपाल के इस पत्र को दोनों के बीच की कोल्ड वॉर के रूप में ही देखा जा रहा है.

जा सकती है आप सरकार की राष्ट्रीय मान्यता

अगर पंजाब में सच में राष्ट्रपति शासन लगता है तो इसका मतलब ये है कि राज्य से भगवंत सरकार चली जाएगी. अगर ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय मान्यमा भी खतरे में आ जाएगी. फिलहाल पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. गोवा में दो और गुजरात विधानसभा में 5 विधानसभा सीटे हैं. लोकसभा में पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन राज्यसभा में दिल्ली से तीन और पंजाब से सात कुल 10 सदस्य हैं. एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए तीन राज्यों में स्थानीय पार्टी का सिंबल और कुल 6 प्रतिशत वोट बैंक जरूरी होने के साथ निम्न या उच्च सदन में भी प्रतिनिधित्व चाहिए. ऐसे में गोवा में वोट प्रशित थोड़ा कम है. अगर पंजाब में राष्टपति शासन लगता है तो राष्ट्रीय मान्यता खतरे में आना निश्चित है. बता दें कि हाल में शरद पवार की राकंपा और ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी की भी राष्ट्रीय मान्यता समाप्त हो चुकी है. दोनों पार्टियों की राष्ट्रीय मान्यता समाप्त कर स्थानीय पार्टियों का दर्जा दिया गया है.

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