वसुंधरा राजे जैसा दमदार नेता प्रदेश भाजपा में कोई नहीं’- सीएम गहलोत के इस बयान के क्या हैं सियासी मायने

वसुंधरा की बात करके बीजेपी की सबसे प्रभावशाली नब्ज पर हाथ रख दिया है सीएम गहलोत ने, भाजपा नेताओं को नहीं भूलना चाहिए कि वसुंधरा राजे राजनीति की शतरंज में अभी राजा की भूमिका में नहीं तो वजीर से कम भी नहीं

अशोक गहलोत - वसुंधरा राजे
अशोक गहलोत - वसुंधरा राजे

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में पिछले 22 दिन से चला आ रहा सियासी घमासान अब अपने चरम पर है. 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र का सबको बेसब्री से इंतजार है. खेल अभी बहुत बाकी है, पर्दे के आगे भी और पीछे भी. राजनीति का अर्थ ही यह है राज करने की नीति और नीति की अपनी कोई स्थाई परिभाषा नहीं होती. राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई ऐसा तीसरा दल नहीं जो दोनों को चुनावी पटकनी दे सके. इसीलिए 5 साल कांग्रेस तो 5 साल भाजपा का राज चल रहा है.

पिछले 22 साल से कांग्रेस से अशोक गहलोत और भाजपा से वसुंधरा राजे एक के बाद मुख्यमंत्री बन रहे हैं. 22 साल के इस सफर में गहलोत तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, जबकि वसुंधरा राजे सिंधिया दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.

वसुंधरा राजे को प्रदेश के भैरोसिंह शेखावत जैसे दिग्गज नेता राजस्थान की राजनीति में लाए थे. यही वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा की सबसे शक्तिशाली जननेता के रूप में उभरीं. हालांकि आज गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया के रूप में भाजपा के केवल यह तीन ही चेहरे प्रमुखता से नजर आ रहे हैं, स्वाभाविक है सवाल तो उठेगा, सियासत के इस महासंग्राम में जब कांग्रेस और भाजपा के बीच आर-पार की लड़ाई का दौर चल रहा हो, तब वसुंधरा राजे कहां है.

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सवाल तो और भी उठ रहे हैं, क्या वसुंधरा राजे को भाजपा में किनारे किया जा रहा है. क्या राजस्थान भाजपा की भविष्ष्य की राजनीति में वसुंधरा राजे के लिए कोई स्पेस नहीं है? क्या भाजपा नेतृत्व तय कर चुका है कि सारे प्रमुख निर्णयों में जरूरी नहीं है कि वसुंधरा की राय ली जाए? हालांकि औपचारिक तौर पर राजस्थान भाजपा के नेता हमेशा कहते हैं कि वसुंधरा राजे उनकी सम्मानीय नेता हैं, लेकिन पिछले एक साल में ऐसे कई मौके आए हैं, जब लगा की कहीं न कहीं, कुछ न कुछ तो गड़बड़ है.

कर्नाटक, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में कांग्रेस सरकारों को पलटी मारकर गिरा चुके भाजपा के दिग्गज नेता अब राजस्थान में भी अपनी रणनीतिक जीत का समीकरण बनाना चाह रहे हैं. हालांकि भाजपा नेता बार-बार कह रहे हैं कि यह लड़ाई कांग्रेस की अपनी अंदरूनी लड़ाई है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की वर्चस्व की लड़ाई है.

ऐसे में आज पहले जैसलमेर में और फिर जयपुर पहुंचने पर अशोक गहलोत ने भाजपा पर जबरदस्त हमला बोल दिया. मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि बीजेपी में ये लोग नए-नए नेता बने हैं, ये वसुंधरा से टक्कर लेना चाहते हैं और वसुंधरा जी से टक्कर लेने के लिए राठौड़, पूनियां और गुलाब चंद कटारिया में आपस में प्रतिस्पर्धा है, लेकिन इनमें किसी में भी कोई दम नहीं है की वसुंधरा राजे से टक्कर ले सके.

सियासी संकट के इस दौर से गुजर रहे मुख्यमंत्री गहलोत का यह बयान बहुत मायने रखता है. इस बयान में कई राजनीतिक संकेत छुपे हैं. सही मायने में तो यह गहलोत द्वारा भाजपा की दुखती नब्ज पर हाथ रखने जैसा ही है. राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार 22 सालों में यह पहला ऐसा समय है जब गहलोत और वसुंधरा दोनों को अपनी ही पार्टी में बैठे नेताओं से अलग-अलग तरह की चुनौती मिल रही है. जहां एक और सचिन पायलट 18 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा का साथ लेकर गहलोत सरकार को गिराने की उधेड़बुन में लगे हैं, वहीं भाजपा में भी सबकुछ सही नहीं चल रहा है. यहां भी वसुुंधरा राजे की राजनीतिक जमीन सरकाने की कवायद चर्चा में है.

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लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि शतरंज के खेल में वजीर को साइड में करके उंट, हाथी घोड़ें और प्यादों के दम पर हमेशा बाजी नहीं जीती जाती. शतरंज में राजा, राजा ही होता है, लेकिन वजीर की ताकत को भूलकर शतरंज नहीं खेला जा सकता है. कयास लगाए जा रहे हैं कि गहलोत सरकार के संकट के इस दौर में वसुंधरा राजे उनके लिए अखिरी तुरूप का इक्का साबित होंगी. कयास है, कुछ भी लगाए जा सकते हैं. लेकिन यह भी सच है कि वसुंधरा राजे जैसी प्रभावशाली नेता को अगर उनकी ही पार्टी में बैठे नेताओं से चुनौती मिल रही होगी तो फिर नहीं भूलना चाहिए कि वसुंधरा राजे राजनीति की शतरंज में अभी राजा की भूमिका में नहीं तो वजीर से कम भी नहीं.

राजस्थान भाजपा को नहीं भूलना चाहिए कि यह वही अशोक गहलोत हैं, जिनकी सरकार वसुंधरा राजे के बंगला नंबर 13 को खाली कराने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर बैठी है. जिस तरह गहलोत सरकार के खिलाफ भाजपा नेता बयानबाजी करते थे और सचिन पायलट खामोश रहते थे. ठीक उसी तरह वसुंधरा के खिलाफ होनी वाली बयानबाजी पर अब भाजपा नेता भी कभी कुछ नहीं बोलते.

सबसे जरूरी बात कहीं अशोक गहलोत ने ईशारे ही ईशारे में भाजपा नेताओं को चेतावनी तो नहीं दे दी, कहीं इसमें यह तो कोई संकेत नहीं छुपा है कि अगर भाजपा के लिए कांग्रेस का सचिन पायलट है तो कांग्रेस के लिए भाजपा की वसुंधरा राजे हो सकती हैं. और अगर ऐसा हुआ तो इसे राजनीति के जादूगर की सबसे बड़ी दूरदर्शिता के रूप में देखा जाएगा भविष्य में, और तब ही राजनीतिक पंडितों को मिलेंगे बंगला खाली नहीं कराने से लेकर कई बड़े सवालों के जवाब. अशोक गहलोत – वसुंधरा राजे

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