मोदी की लोकप्रियता गिरी तो विपक्ष भी नहीं फला-फूला, शिवसेना ने बताया कैसे करें मोदी का ‘सामना’

लोकसभा चुनाव-2024 की तैयारियों में जुटीं सभी पार्टियां, कोरोना मिस मैनेजमेंट, गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी से कम होती मोदी सरकार की लोकप्रियता के बीच सामना का अनुमान, शरद पवार द्वारा तीसरे मोर्चे की कवायद को लेकर की गई बैठक पर सामना में संपादकीय, सामना के संपादकीय में शरद पवार को दी गई राय, मोदी को हराने के लिए राहुल और पवार को मिलाना चाहिए हाथ, अलग-थलग पड़े विपक्ष को पवार एक मंच पर तो ला सकते हैं लेकिन राहुल गांधी से हाथ मिलाने की दी सलाह

मोदी की लोकप्रियता गिरी, लेकिन विपक्ष भी नहीं फला-फूला
मोदी की लोकप्रियता गिरी, लेकिन विपक्ष भी नहीं फला-फूला

Politalks.News/Bharat. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होते ही हालही में सहयोगी बनी शिवसेना की प्रतिक्रिया आई है. शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास पर मंगलवार को हुई राष्ट्र मंच की बैठक को लेकर शिवसेना के मुख पत्र ‘सामना’ में लेख छपा है. महाराष्ट्र में NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना सरकार चला रही है. सामना के लेख ने सियासी गलियारों में चर्चाओं को जोर दे दिया है. सामना ने शरद पवार को राय दी सबसे पहले इस बात पर विमर्श होना चाहिए कि क्या विपक्ष को केवल एक मुद्दे पर साथ आना चाहिए जो मोदी और भाजपा का विरोध है.

शिवसेना के मुखपत्र में लिखा है- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की लोकप्रियता पहले जैसी नहीं रही है, उसमें जबरदस्त गिरावट आई है, लेकिन उस गिरावट वाली जगह पर फिलहाल विपक्ष बढ़ रहा हो, फल-फूल रहा हो, ऐसा भी नजर नहीं आ रहा है. उन्हें पता है कि देश में स्थिति उनके हाथों से निकल गई है, लोगों के आक्रोश के बावजूद, भाजपा और मोदी सरकार को आत्मविश्वास है कि उनके सामने कोई खतरा नहीं है क्योंकि विपक्ष कमजोर और अलग-थलग है’

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सामना के संपादकीय में लिखा गया है- ‘विपक्ष को एकजुट करने के शरद पवार के प्रयास में राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के प्रमुख नेता को शामिल होना चाहिए. तभी विरोधी दल की एकत्रित शक्ति को वास्तविक बल हासिल हो सकेगा. ये सच है कि राहुल गांधी मोदी की कार्यशैली पर, उनकी गलतियों पर हमला करते हैं लेकिन ‘ट्विटर के मैदान में’. इसके अलावा सामना ने लिखा है, पवार के घर ‘राष्ट्र मंच’ का चाय-पान हुआ. उसके माध्यम से विपक्ष निश्चित तौर पर कहां है? असल में शरद पवार ने विपक्ष को जो चाय-पान कराया, वैसा समारोह दिल्ली में राहुल गांधी शुरू करें तो मरणासन्न विपक्ष के चेहरे पर ताजगी का भाव दिखने लगेगा. शरद पवार सभी विपक्षी पार्टियों को साथ ला सकते हैं. लेकिन फिर, सवाल नेतृत्व का उठता है. अगर हम कांग्रेस से अगुवाई की उम्मीद करते हैं तो पार्टी खुद बिना किसी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चल रही है’.

संपादकीय में लिखा गया है- ‘बैठक से पहले यह राष्ट्र मंच जितना चर्चित हुआ, उतना उस बैठक से कुछ हासिल नहीं हुआ.’ बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने अन्य नेताओं के साथ राष्ट्र मंच की स्थापना की थी. सामना में तंज कसते हुए लिखा गया है कि- ‘शरद पवार के दिल्ली स्थित घर में राष्ट्रीय मंच की चाय पार्टी ने विपक्ष की सही स्थिति को दिखाया है’ कि विपक्ष कितना संगठित है.

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सामना ने लिखा है- ‘देश में कई ज्वलंत समस्याएं हैं, लेकिन उनके समाधान के लिए कोई विजन सरकार के पास नहीं है. सरकार को वह विजन आदि देने का काम राष्ट्र मंच करेगा, ऐसा कहा गया’. ‘देश के सामने आज समस्याओं का पहाड़ है और यह मौजूदा सरकार की देन है, यह भी सच्चाई है. लेकिन वैकल्पिक नेतृत्व का विचार क्या है? ये कोई नहीं बता सकता. विपक्षी दलों को एकजुट होना चाहिए. यही संसदीय लोकतंत्र की जरूरत है. लेकिन बीते 7 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का अस्तित्व बिल्कुल भी नजर नहीं आता है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में स्टालिन, बिहार में संघर्ष करके बीजेपी-नीतीश कुमार की नाक में दम करने वाले तेजस्वी यादव, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, आंध्र में चंद्रबाबू, जगनमोहन, केरल में वामपंथी और मुख्यत: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस ने एक साथ आकर जिस तरह से बीजेपी को रोका, वही वास्तव में विरोधी दलों का असली विचार मंथन है. लेकिन मंगलवार के दिल्ली के मंथन में इनमें से एक भी पार्टी या नेता उपस्थित नहीं था.

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