एमपी में मायावती ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें तो कांग्रेस ने सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में बदले 11 जिलाध्यक्ष

उप चुनावों से पहले ही प्रदेश में बढ़ रही सियासी सरगर्मियां, कमलनाथ की बढ़ी चिंता, महाराज की छवि से टक्कर लेना भी आसान नहीं कांग्रेस के लिए, परेशान होना स्वभाविक

मायावती
मायावती

पॉलिटॉक्स न्यूज. मध्य प्रदेश में 24 सीटों पर होने वाले उप चुनाव से पहले ही मायावती ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इसके बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की डगर कांटों भरी दिख रही है. उपचुनाव से पहले ही बसपा ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी और उपचुनाव में सभी 24 विधानसभा सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी. इसके बाद फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे कमलनाथ का परेशान होना स्वभाविक है. वहीं कांग्रेस ने उप चुनाव की तैयारियां शुरु करते हुए बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र वाले 11 जिलों के जिलाध्यक्ष बदल दिए हैं. प्रदेश में राजनीतिक सक्रियता के साथ सियासी सरगर्मियां भी तेज हो चली हैं.

प्रदेश में 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले ही पार्टियों में आपसी खींचतान जारी है. यूपी की राजनीति का असर अब एमपी में भी दिखने लगा है. कमलनाथ सरकार में कांग्रेस को समर्थन देने वाली बसपा ने सभी 24 सीटों पर अपना अलग उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में कांग्रेस की चिंता स्वभाविक है. वजह साफ है- कांग्रेस को सत्ता वापसी के लिए कम से कम 15 से अधिक सीटों पर विजयश्री की आवश्यकता है. इसके बाद भी वो पहले की तरह निर्दलीय और अन्य दलों के समर्थन पर टिकी रहेगी. ऐसे में मायावती का सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारना कांग्रेस के लिए एक अग्नि परीक्षा से कम नहीं है.

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हां, ये जरूर है कि उक्त सीटों पर कांग्रेस के ही विधायक जीतकर आए थे, लेकिन ये सभी क्षेत्र कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र के हैं और उनके समर्थन में ही इन सभी ने विधायकी से इस्तीफा दिया था जिससे कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह को फिर सत्ता में आने का मौका मिला. ये भी हो सकता है कि उनमें से कई नेताओं को बीजेपी की ओर से चुनावी जंग का टिकट मिल जाए लेकिन जनता की सहानुभूति के चलते कांग्रेस का पलड़ा भारी है. फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ग्वालियर—चंबल क्षेत्र में सिंधिया का प्रभुत्व है.

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वहीं दूसरी ओर, बसपा के एमपी अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल ने कहा है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 13 सीटों पर पहले हमारे विधायक रह चुके हैं. बाकी 8 सीटों पर भी हमारे प्रत्याशी खड़े होंगे और उन सीटों पर पार्टी की स्थिति को बेहतर करेंगे. उपचुनाव के लिए हमारी तैयारी जमीनी स्तर पर चल रही है. पिप्पल ने कहा कि किसानों की कर्जमाफी एवं बेरोजगारी हमारे प्रमुख मुद्दे होंगे. इसके अलावा, हम अनूसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति के मुद्दों भी उठाएंगे. उन्होंने कहा कि अगले सप्ताह में दावेदारी आवेदन फॉर्म लिए जाएंगे और पैनल सूची मायावती को भेजी जाएगी. बता दें, फिलहाल बसपा के एमपी में अभी 2 विधायक हैं. यहां बसपा जितनी भी सीटें जीतने में सफर होगी, उतनी ही सीटों का नुकसान कांग्रेस को झेलना पड़ेगा.

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उधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अनुशंसा पर ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने 11 जिला अध्यक्षों को बदल दिया है. यह सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं. माना जा रहा है कि उपचुनाव में कांग्रेस की मजबूती के लिए यह कदम उठाया गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथियों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी ज्वाइन किए हुए दो महीने हो चुके हैं लेकिन उनके नाम की दहशत अब भी बरकरार है.

एमपी कांग्रेस के चतुर चाणक्य की टीम यह विश्वास करने के लिए भी तैयार नहीं है कि मध्यप्रदेश में जितने भी लोग कांग्रेस पार्टी की लिस्ट में हैं, वह निष्ठावान कार्यकर्ता है. वे इस बात से भी इनकार नहीं कर रहे कि उप चुनाव के समय बड़े पैमाने पर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफे हो सकते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए ये नई टीम तैयार की गई है, साथ ही पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों पदाधिकारियों की सदस्यता भी समाप्त की गई है.

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ऐसे में अब कांग्रेस एक ओर से मायावती और दूसरी ओर से सिंधिया का प्रभुत्व की दोहरी लड़ाई लड़ रही है. हालांकि कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता इन इलाकों में जमकर पसीना बहा रहे हैं लेकिन चंबल से सटे इलाकों में दलित वर्ग की अधिकता देखते हुए मायावती को हल्के में लेना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है. वहीं ग्वालियर और आसपास के इलाकों में ‘महाराज’ की छवि को भी टक्कर देना कांग्रेस के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा है.

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