मंडावा उपचुनाव: 9 प्रत्याशी मैदान में लेकिन कांग्रेस की रीटा व भाजपा की सुशीला में होगी सीधी टक्कर

प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने का रीटा चौधरी को मिल सकता है फायदा, वहीं डेढ़ घण्टे पहले पार्टी में शामिल हुईं सुशीला सिंगड़ा को टिकट की आस लगाए बैठे भाजपा के अन्य दावेदारों की नाराजगी पड़ सकती है भारी

Mandawa
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पॉलिटॉक्स ब्यूरो – झुंझुनूं लोकसभा सीट पर नरेन्द्र कुमार की जीत से खाली हुई मंडावा (Mandawa) विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनो ही प्रमुख पार्टियों ने जाट महिला उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाया है. मंडावा सीट पर कांग्रेस की पूर्व विधायक रीटा चौधरी का मुकाबला कांग्रेस छोडकर भाजपा में शामिल हुई और तीन बार कांग्रेस से प्रधान रहीं सुशीला सिंगड़ा से है. 21 अक्टूबर को मतदान के बाद 24 अक्टूबर को पता चलेगा रीटा या सुशीला में से कौन करेगा विधानसभा में प्रवेश.

मंडावा क्षेत्र की राजनीति में खास पहचान

मंडावा (Mandawa) विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की राजनीति में अपनी एक खास पहचान रखता है और रखे भी क्यों ना इस विधानसभा क्षेत्र ने कांग्रेस को तीन प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री दिए हैं. मंडावा से विधायक नरेंद्र खिचड़ के झुंझुनू सांसद बन जाने से खाली हुई इस सीट पर कुल 9 उम्मीदवार इस चुनावी रण में अपने भाग्य की आजमाइश कर रहे हैं. लेकिन कड़ा मुकाबला कांग्रेस की रीटा चौधरी और भाजपा की सुशीला सिंगडा के बीच है. मौजूदा समय में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से कांग्रेस की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दाव पर है.

दोनों पार्टियों ने जताया जाट नेताओं पर भरोसा

जातिवाद को बढावा देने की बात को वैसे तो सभी राजनीतिक पार्टियां समय-समय पर नकारती रही हैं. लेकिन यह बात भी सत्य है कि चुनावों में प्रत्याशी भी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख कर ही तय किये जाते हैं. मंडावा (Mandawa) विधानसभा उपचुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने यहां सबसे ज्यादा मत वाले जाट समुदाय पर भरोसा जताया है साथ ही दोनों ही पार्टियों ने महिला प्रत्याशियों को यहां से मैदान में उतारा है. भाजपा से जहां सुशीला सिंगडा तो वहीं कांग्रेस से रीटा चौधरी आमने सामने है.

रीटा चौधरी कांग्रेस का एकमात्र चेहरा

मंडावा विधानसभा सीट पर पहले से ही यह तय माना जा रहा था कि रीटा चौधरी ही कांग्रेस के पास एकमात्र उम्मीदवार है जो अपने प्रतिद्वंदी को कडी टक्कर दे सकती है, इसलिए पार्टी ने किसी अन्य नाम पर विचार ही नहीं किया. मंडावा की यह सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस की सीट रही है. इस सीट से रीटा चौधरी के पिता कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राम नारायण चौधरी 7 बार विधायक रह चुके हैं. उनके बाद उनकी बेटी रीटा चौधरी ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया. रीटा 2008 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से विधायक बनीं. रीटा ने 2013 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा और उन्हें हार का सामना करना पडा. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रीटा चौधरी को टिकट दिया, लेकिन वह बहुत कम अंतर से चुनाव हार गई. पिछले 2 विधानसभा चुनाव में हार के बाद इस बार उपचुनाव में एक बार फिर रीटा चौधरी को टिकट देकर कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि मंडावा क्षेत्र में कांग्रेस के पास रीटा से बडा कोई और चेहरा नहीं है.

सुशीला सिंगड़ा पर भाजपा का विश्वास

भाजपा प्रत्याशी सुशीला सिंगडा ने नामांकन से एक दिन पहले ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी और उसके डेढ़ घण्टे बाद उसी दिन शाम को उन्हे मंडावा उपचुनाव के लिए पार्टी ने प्रत्याशी बनाया. इससे पहले सुशीला कांग्रेस से झुंझुनूं पंचायत समिति से लगातार तीन बार प्रधान चुनी जा चुकी हैं. सुशीला सिंगड़ा कांग्रेस से वर्ष 2000 से 2010 तक जिला परिषद की सदस्य रही और 2010 से लगातार प्रधान पद पर आसीन हैं. 54 वर्षीय सुशीला सिंगडा की शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक है और वे कांग्रेस नेता बृजलाल सिंगडा की पुत्रवधु हैं. भाजपा को जाट बाहुल्य मंडावा विधानसभा क्षेत्र में सुशीला के सहारे नैय्या पार लगने की उम्मीद इसलिए भी है कि सुशीला जिस झुंझुनूं पंचायत समिति की लगातार तीन बार प्रधान चुनी जा चुकी हैं. उसकी 14 ग्राम पंचायतें मंडावा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं. इसके अलावा सुशीला व उनका परिवार दिग्गज नेता शीशराम ओला का भी निकटस्थ रहा है. ऐसे में उनका जमीनी आधार और कांग्रेस की फूट का भाजपा को सीधा फायदा मिलने की संभावना बन सकती है. भाजपा के कुछ कार्यकताओं में कांग्रेस से आई सुशीला सिंगडा को टिकट दिये जाने से नाराजगी भी है जिसका नुकसान भी भाजपा को यहां उठाना पड सकता है.

मंडावा विधानसभा में मतदाताओं का गणित

मंडावा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या की बात करें तो यहां कुल 228201 मतदाता है जिसमें 11 लाख 8 हजार 53 पुरुष और 11 लाख 148 महिला मतदाता है. तो वहीं 2530 सर्विस वोटर भी यहां है. मंडावा क्षेत्र के जातिगत समीकरणों की बात करें तो राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा 75 हजार जाट मतदाता है. अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हैं और दोनों जातियों के 40-40 हजार वोटों का आंकड़ा यहां है. इसके साथ ही राजपूत 18000, माली व गुर्जर 7500, जांगिड़ 7500, कुम्हार 5500, मीणा जाति के 8000 और अन्य 10000 मतदाता मंडावा विधानसभा क्षेत्र में हैं.

जाटों का गढ है मंडावा (Mandawa) विधानसभा क्षेत्र

जाटों का गढ कहे जाने वाले मंडावा (Mandawa) विधानसभा क्षेत्र के जाट समुदाय को वैसे तो कांग्रेस का वोटर माना जाता रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहां जाट वोट बैंक में बिखराव की स्थिति नजर आयी है. इस उपचुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने जाट महिला को अपना उम्मीदवार बनाया है तो ऐसे में तय है कि यह समुदाय किसी एक पार्टी के साथ नहीं जाएगा और इसमें बिखराव की स्थिति होगी. वहीं बात मुस्लिम मतदाता की करें तो मुस्लिम समाज पहले भी कांग्रेस के पक्ष में रहा है और इस चुनाव में भी कांग्रेस के साथ नजर आ रहा है. ओबीसी के मतदाता इस चुनाव में भाजपा की तरफ जाते नजर आ रहे है इसलिए जातिगत समीकरणों के हिसाब से फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि किस पार्टी का पलड़ा यहां भारी है.

पॉलिटॉक्स का आकलन

मंडावा (Mandawa) विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर होने के बावजूद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने का रीटा चौधरी का फायदा मिल सकता है, वहीं सुशीला सिंगड़ा चूंकि डेढ़ घण्टे पहले पार्टी में शामिल हुईं ऐसे में टिकट की आस लगाए बैठे भाजपा के अन्य दावेदारों की नाराजगी पड़ सकती है सिंगड़ा को भारी. अब ये तो 24 अक्टूबर की सुबह ही पता चलेगा कौन पड़ा किस पर भारी.

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