‘मैडम मैं बम चला चुका हूं, तो क्या लाठियों का सामना नहीं कर पाऊंगा’- राजेश पायलट, स्मृति विशेष

पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के बेहद करीबी माने जाने वाले तांत्रिक चंद्रास्वामी, जिसके आगे बड़े-बड़े नेता और अफसर दण्डवत प्रणाम करते थे, उस चंद्रास्वामी के खिलाफ राजेश पायलट ने जांच बैठाई और गिरफ्तार भी करवाया

पॉलिटॉक्स न्यूज़/राजस्थान. दिग्गज किसान नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय राजेश पायलट की आज 20वीं पुण्यतिथि है. इस मौके पर प्रदेश कांग्रेस के कप्तान और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने दौसा के जिरोता और भंडाना में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में पहुंचकर स्वर्गीय राजेश पायलट की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए. इस दौरान सचिन पायलट ने कहा कि, “स्वर्गीय राजेश पायलट गरीब मजदूर किसान बेसहारा वर्ग के नेता थे और देश में उनकी इसी से पहचान थी और मैं भी उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करता हूं. मैं सत्ता में रहूं या न रहूं, पद पर रहूं या न रहूं लेकिन उन्हीं के बताए मार्ग का अनुसरण करता रहता हूं.” आइए आपको बताते हैं एक साधारण किसान परिवार से निकल कर राजेश्वर प्रसाद पहले कैसे एयरफोर्स के लीडर और बाद में केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट बने.

राजेश पायलट का संक्षिप्त जीवन परिचय

राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी. जिन्हें राजेश पायलट के नाम से दुनिया भर में ख्याति प्राप्त हुई. वो शख्स जिस पर खेलने-कूदने के दिनों में ही अपने सपनों को मंजिल तक पहुंचाने का जुनून सवार था. उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के छोटे से गांव बैदपुरा में 10 फरवरी 1945 को एक बेहद साधारण किसान परिवार में राजेश पायलट का जन्म हुआ. गांव में यह बालक खूब खेलता-कूदता था, आम बच्चों की तरह गांव में दोस्तों के संग खूब मस्ती करता था. लेकिन छोटी सी उम्र में पिता का साया उठने के बाद वो सब कुछ भूल गया और चला आया चचेरे भाई नत्थी सिंह के साथ दिल्ली में. दिल्ली ने पायलट की जिंदगी को एक प्रकार से पंख लगा दिए और उनकी तकदीर व किस्मत बदल दी.

दिल्ली के पॉश इलाके 112, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड की कोठी राजेश पायलट का ठिकाना बनी. यह कोठी उनके संघर्ष की गवाह थी. यहां पर उन्होंने अपने चाचा की डेयरी में मवेशियों की सार-संभाल का काम शुरु किया. सुबह जल्दी उठकर मवेशियों को चारा खिलाना, नहलाना और फिर उनके दूध को दिल्ली के बंगलों में देकर आना. दूध बेचने के साथ-साथ राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के सरकारी स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे. इस दौरान वे एनसीसी में शामिल हो गए, क्योंकि वहां पहनने के लिए यूनिफॉर्म जो मिल जाती थी.

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परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और एयरफोर्स में भर्ती हो गए. वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर 15 वर्षों की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वाड्रन लीडर बने. उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिला. लेकिन लुटियन जोंस के बंगलों में बचपन में दूध बेचने वाले राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी को किस्मत वापस उन्हीं बंगलों तक ले जाना चाहती थी, जहां वे कभी दूध बेचा करते थे. जिन बंगलों में पायलट ने अपने बचपन में दूध बेचा आगे चलकर केंद्रीय मंत्री बने और उन्हीं बंगलों में रहने लगे.

हालांकि इंदिरा गांधी ने राजेश पायलट को राजनीति में नहीं आने की सलाह दी थी. राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट बताती हैं, ‘इंदिरा जी ने कहा कि इस्तीफा देने की सलाह नहीं दूंगी. फोर्स में फ्यूचर है. राजनीति में क्यों आना चाहते हो?’ इस पर राजेश पायलट ने कहा कि वे चौधरी चरण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं तब ‘इंदिरा जी बोलीं कि तुम बागपत से टिकट मांग रहे हो, वह तो सारा जाटों का इलाका है. पता है न कि वहां तो चुनावों में लाठियां चल जाती हैं.’ राजेश जी बोले,‘मैडम मैं बम चला चुका हूं, तो क्या लाठियों का सामना नहीं कर पाऊंगा?’

राजनीति में आने के लिए पायलट ने 1979 में नौकरी छोड़ दी, लेकिन चुनाव का समय आया तो कांग्रेस से टिकट मिलने की आस धुंधली पड़ती जा रही थी. मगर संजय गांधी के फोन ने उनकी किस्मत बदल दी. पार्टी ने उन्हें 1980 के लोकसभा चुनाव में भरतपुर से चुनावी मैदान में उतारा. वे जब भरतपुर में कांग्रेस का पर्चा दाखिल कर रहे थे, तो वहां के कार्यकर्ताओं ने उनसे निवेदन किया कि वे अपने नाम के साथ पायलट लिखें. उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करके राजेश पायलट के नाम से परचा भरा और जब वो बाहर निकले तो ‘पायलट जिंदाबाद’ के नारे लग रहे थे. उन्होंने भरतपुर की सीट से वहां के पूर्व राजपरिवार की महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता.

भरतपुर में चुनाव प्रचार के दौरान राजेश पायलट के पास उतने पैसे नहीं थे कि वह जगह-जगह जाकर अपनी बात कर सकें. तब के पार्टी कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी के कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाने पर कुछ रकम प्राप्त हुई और वह भी स्टांप पेपर पर दस्तख्त करवाने के बाद. लेकिन राजेश पायलट को उनके समर्थकों ने पूरा सहयोग दिया. उनका चुनावी खर्च चलता रहा और जीत भी हासिल की. इस चुनाव के बाद राजेश पायलट ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

राजेश पायलट ने 1984 में दौसा से लोकसभा चुनाव और शानदार जीत दर्ज की. इसके बाद पायलट 1985 से 89 तक भूतल परिवहन मंत्री रहे. 1987 में उन्होंने जय जवान जय किसान ट्रस्ट की स्थापना की और किसान नेता कहलाए. 1991 से 1993 तक जनसंचार मंत्री रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे. 1995 से 1996 में एक बार फिर से भूतल परिवहन मंत्री रहे. इसके बाद 1996 और 1999 का लोकसभा चुनाव भी पायलट ने दौसा से जीता.

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1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहते हुए राजेश पायलट ने विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी को गिरफ्तार करवाया. उस समय राजनीति में चंद्रास्वामी की तूती बोलती थी. उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का करीबी माना जाता था. बड़े-बड़े मंत्री और अधिकारी उनके सामने दंडवत होते थे. ऐसे में उनके खिलाफ जांच करे तो करे कौन, कार्रवाई करे तो करे कौन. राजेश पायलट ने उस वक्त कहा था कि ‘चाहे मुझे जेल जाना पड़े, लेकिन ये खेल खत्म होगा.’ पायलट ने चंद्रास्वामी के खिलाफ न सिर्फ जांच बैठाई, बल्कि गिरफ्तारी भी हुई. पायलट के इस एक्शन पर खूब बवाल मचा, लेकिन आखिरकार इससे उनकी छवि मजबूत हुई.

राजेश पायलट को देश की सियासत में अभी बहुत कुछ कर गुजरने की ललक थी, लेकिन महज 55 साल की आयु में 11 जून 2000 को उनकी कर्मभूमि दौसा लोकसभा क्षेत्र के भंडाना में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. उनके बेटे सचिन पायलट वर्तमान में राजस्थान में कांग्रेस के कप्तान होने के साथ-साथ प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं. इससे पहले सचिन पायलट केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं. सचिन अपने पिता की तरह सभाओं में चूनड़ी का साफा पहनते हैं और ‘राम-राम सा’ संबोधन के साथ लोगों से जुड़ते हैं. पिता की तर्ज पर सचिन भी अपने नाम के आगे पायलट ही लगाते हैं.

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