अजब नीतीश की गजब राजनीतिक कहानी: दो चुनाव हारे, राजनीति छोड़ ठेकेदारी का मूड बनाया, फिर बने 6 बार मुख्यमंत्री

सीएम बनने के दौरान कभी नहीं रहे विधायक, आखिरी बार लड़ा था 1995 में विधानसभा और 2004 में लोकसभा चुनाव, इसके बावजूद 2005 से लगातार मुख्यमंत्री बन रहे हैं मि.सुशासन

Nitish Kumar Wiki (नीतीश कुमार)
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Politalks.News/Bihar. बात 1977 की बिहार विधानसभा चुनाव की है. 26 साल का एक दुबला पतला लड़का नालंदा जिले की हरनौत सीट से जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनावी समर में उतरा. इस चुनाव में जनता पार्टी ने 214 सीटें जीतीं और 97 हारी. इन्हीं 97 हारी सीटों में से एक थी हरनौत. इस सीट से हारने वाले युवा नेता का नाम था नीतीश कुमार. वही नीतीश कुमार जो बाद बिहार राजनीति की धूरी बने. केंद्रीय में मंत्री तो बिहार के भी मुख्यमंत्री बने. पिछले 15 सालों में वे बिहार की सत्ता पर आसीन हैं और 6 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. लेकिन ये भी एक संयोग ही है कि वे इस दौरान एक बार भी न लोकसभा और न ही विधानसभा के सदस्य रहे. विधानसभा का चुनाव उन्होंने 25 साल पहले लड़ा था और 16 साल पहले लोकसभा का.

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बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री और जदयू चीफ नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर भी काफी मजेदार रहा. पहले दो चुनाव हारने के बाद नीतीश इतने निराश हो गए थे कि राजनीति से संन्यास लेने और ठेकेदारी की ओर रूख करने का पूरा मन बना लिया था. इसकी एक वजह ये भी थी कि नीतीश को यूनिवर्सिटी छोड़े 7 साल हो गए थे और शादी हुए भी काफी समय हो चुका था. अब तो नीतीश के खुद के अंदर से आवाज आने लगी थी ‘कुछ तो करें, ऐसे जीवन कैसे चलेगा’. तंग आकर नीतीश राजनीति छोड़कर एक सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.

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नीतीश ने पहला चुनाव 1977 में लड़ा और जिससे उन्हें हार मिली, उनका नाम था भोला प्रसाद सिंह. भोलाप्रसाद सिंह वही नेता थे, जिन्होंने चार साल पहले ही नीतीश और उनकी पत्नी को कार में बैठाकर घर तक छोड़ा था. पहली हार को भूलकर नीतीश जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर 1980 में दोबारा इसी सीट से खड़े हुए लेकिन इस चुनाव में भी नीतीश को हार मिली, वो निर्दलीय अरुण कुमार सिंह के सामने. अरुण कुमार सिंह को भोला प्रसाद सिंह का समर्थन हासिल था.

लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश निराश हो गए और राजनीति छोड़ने का मन बना लिया. 1985 में तीसरी बार फिर नीतीश कुमार हरनौत से खड़े हुए लेकिन इस बार लोकदल के उम्मीदवार के रूप में. इस चुनाव में नीतीश ने कांग्रेस के बृजनंदन प्रसाद सिंह को 21 हजार से ज्यादा वोटों से पटखनी दी और यहीं से उनका वक्त बदलना शुरु हो गया.

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1985 में पहली बार विधायक बनने के बाद नीतीश 1989 के लोकसभा चुनाव में बाढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे. उसके बाद 1991 में लगातार दूसरी बार यहीं से लोकसभा चुनाव जीते. तीसरी बार 1996, चौथी बार 1998, 5वीं बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीत कुल 6 बार लोकसभा के सांसद रहे. नीतीश ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा. उस चुनाव में नीतीश बाढ़ और नालंदा दो जगहों से खड़े हुए थे. हालांकि, बाढ़ सीट से वो हार गए और नालंदा से जीत गए. ये नीतीश का आखिरी चुनाव भी था। इसके बाद से नीतीश ने अब तक कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. नीतीश केंद्र में मंत्री भी रहे.

नीतीश ने अपना आखिरी विधानसभा चुनाव 1995 में विधानसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, 1996 के लोकसभा चुनाव में खड़े होने की वजह से उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था.

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2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला. तब नीतीश अटल सरकार में कृषि मंत्री थे. चुनाव के बाद भाजपा के समर्थन से नीतीश कुमार ने पहली बार 3 मार्च, 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ ली. हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं. नवंबर, 2005 में नीतीश दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. इस बार भाजपा-जदयू गठबंधन के पास बहुमत था.

2010 में नीतीश तीसरे बार मुख्यमंत्री बने. 2014 में किसी वजह से नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उन्हीं की पार्टी के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया. मई, 2014 से फरवरी, 2015 के बीच जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री रहे. 10 महीने के बाद मांझी को इस्तीफा देने के लिए कहा गया लेकिन वे नहीं माने. इस पर नीतीश ने बहुमत पेश करने की मांग की. मांझी बहुमत पेश नहीं कर सके और सरकार गिर गई. नीतीश फिर एक बार मुख्यमंत्री बने.

2015 में नीतीश ने महागठबंधन के बैनर में चुनाव लड़ा और 5वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. 6 महीने बाद उन्होंने राजद से नाता तोड़ दिया और इस्तीफा दे दिया. अगले ही दिन भाजपा के सहयोग से फिर से सरकार बनाई और छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. मांझी के 10 माह के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो नवंबर, 2005 से लेकर अब तक नीतीश लगातार बिहार के सीएम रहे हैं और सातवीं बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री चेहरा घोषित हो चुके हैं. इन छह सालों में नीतीश न तो कभी विधानसभा और न ही कभी लोकसभा के सदस्य रहे हैं.

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अब बात करें हैं कि बिना विधायक रहे नीतीश छठी बार मुख्यमंत्री कैसे बने? दरअसल बिहार में विधान परिषद के सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री बना जा सकता है. नीतीश जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब वो न तो विधानसभा के सदस्य थे और न ही विधान परिषद के. नवंबर, 2005 में नीतीश जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब अगले ही साल नीतीश पहली बार विधान परिषद के सदस्य बने. 2018 में नीतीश तीसरी बार विधान परिषद के सदस्य बने हैं और 2024 तक रहेंगे.

2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वो किसी एक सीट पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहते. ऐसे में 16 साल तक बिना कोई चुनाव लड़े नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इत्मिनान से आसीन हैं. उन्हें बिहार में मिस्टर सुशासन के नाम से भी जाना जाता है.

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