दिल्ली में सरकार का मतलब एलजी- लोकसभा में पेश हुआ बिल तो भड़के केजरीवाल और सिसोदिया

पेश हुए विधेयक के मुताबिक हर काम के लिए दिल्ली सरकार को पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी, दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई कानून खुद नहीं बना सकेगी, केजरीवाल बोले- सभी फैसले एलजी लेंगे तो चुनी हुई सरकार क्या करेगी? विधानसभा चुनाव में सिर्फ 8 सीटें और एमसीडी उपचुनाव में एक भी सीट न पाकर रिजेक्ट हुई बीजेपी ने अब पर्दे के पीछे से सत्ता हथियाने की कर ली है तैयारी

सभी फैसले एलजी लेंगे तो चुनी हुई सरकार क्या करेगी?- केजरीवाल
सभी फैसले एलजी लेंगे तो चुनी हुई सरकार क्या करेगी?- केजरीवाल

Politalks.News/NewDelhi. केंद्रीय मंत्रिमंडल से पारित होने के बाद गृहमंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए एक विधेयक के बाद दिल्ली में अधिकारों को लेकर केजरीवाल की आप सरकार और केंद्र सरकार के बीच एकबार फिर टकराव होना निश्चित है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किशन रेड्डी द्वारा सोमवार को लोकसभा में पेश किए गए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल (एलजी) होगा और हर काम के लिए दिल्ली सरकार को पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी.

इस विधेयक के कानून बनने के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में काफी इजाफा हो जाएगा. ऐसे में आम आदमी पार्टी का आरोप है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद दिल्ली में सरकार का कोई मतलब नहीं रह जाएगा, क्योंकि विधेयक में साफ कहा गया है कि दिल्ली में सरकार का अर्थ ‘एलजी’ होगा और विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को वही मंजूरी देने की ताकत एलजी रखेगा. यही नहीं बिल में कहा गया है कि दिल्ली सरकार को शहर के संबंध में कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल से मशविरा लेना होगा. इसके अलावा विधेयक में कहा गया है कि दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई कानून खुद नहीं बना सकेगी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई, 2018 को दिए अपने एक फैसले में कहा था कि प्रदेश सरकार के दैनिक कामकाज में उपराज्यपाल की ओर से दखल नहीं दिया जा सकता.

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गृहमंत्रालय द्वारा पेश उक्त बिल को लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इसके जरिए बीजेपी पर्दे के पीछे से सत्ता हथियाना चाहती है. केजरीवाल ने कहा कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच की ओर से दिए गए फैसले के विपरीत है. सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट के जरिए कहा कि, ‘दिल्ली के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 8 सीटें और एमसीडी उपचुनाव में एक भी सीट न पाकर रिजेक्ट हुई बीजेपी ने अब पर्दे के पीछे से सत्ता हथियाने की तैयारी कर ली है. इसी के तहत उसने आज लोकसभा में बिल पेश किया है. यह सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले के खिलाफ है. हम बीजेपी के असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कदम का विरोध करते हैं.’

सभी फैसले एलजी लेंगे तो चुनी हुई सरकार क्या करेगी: एक अन्य ट्वीट में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, ‘बिल कहता है कि सरकार का अर्थ एलजी होगा, ऐसा है तो फिर चुनी हुई सरकार क्या करेगी? सभी फाइलें एलजी के पास जाएंगी. यह बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें उसने कहा था कि सभी फैसले दिल्ली सरकार की ओर से लिए जाएंगे और उसकी एक कॉपी एलजी के पास भेजी जाएगी.’

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हमारे संविधान ने दिए हैं राज्य को ये अधिकार- मनीष सिसोदिया

वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, हमारे संविधान में लिखा हुआ है कि दिल्ली की एक विधानसभा होगी, चुनी हुई सरकार होगी और इस सरकार के पास सभी मसलों पर कानून बनाने का अधिकार होगा. संविधान में यह अधिकार सभी राज्यों के पास होता है. संविधान में लिखा है कि उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच मतभेद होगा तो मामला राष्ट्रपति के पास जाएगा और वे फैसला लेंगे. सिसोदिया ने आगे कहा कि, ‘इससे पहले जब पुराने LG थे, उन्होंने भी कहा था कि मैं ही सरकार हूं, तब हम उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गए और संविधान पीठ के पास भी गए. जिसमें उन्होंने कहा था कि संविधान में लिखे का मतलब है कि हर एक मंत्री और कैबिनेट अपने-अपने मंत्रालय के लिए जिम्मेदार है. राज्य के विधानसभा क्षेत्र के दायरे में केन्द्र सरकार दखल न करे इसके लिए राज्य सरकारों को ये अधिकार दिए है. विधानसभा को और कैबिनेट को पूरी पावर है – कोर्ट के आदेश में ये साफ लिखा हुआ है.

दिल्ली के चुने मंत्रियों के पास पूरी पावर- सुप्रीम कोर्ट

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि केंद्र सरकार ये जो अमंडमेंट ला रही है, उसके मुताबिक, दिल्ली सरकार को हर फैसले से पहले LG से इजाजत लेनी होगी. इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली के चुने मंत्रियों के पास पूरी पावर होगी. अगर LG की अलग राय होगी तो वे राष्ट्रपति के पास जा सकते हैं, लेकिन हर फैसले पर मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.

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गौरतलब है कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच इस मुद्दे को लेकर पहले भी टकराव हो चुका है. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को और दो सदस्यीय खंडपीठ ने फैसला सुनाया था. तब शीर्ष अदालत ने कहा था कि उपराज्यपाल सरकार की सहायता में काम कर सकते हैं और मंत्री परिषद के सलाह के रूप में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं, लेकिन वह सरकार के दैनिक कामकाज में दखल नहीं दे सकते. इन फैसलों के बाद लगा था कि मामला सुलझ गया है, लेकिन अब इस विधेयक के संसद में आने के बाद मामला और ज्यादा गर्माता हुआ दिखाई दे रहा है.

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