कर्नाटक में सियासी संकट टल तो नहीं रहा है लेकिन अब आखिरी पड़ाव नजर आने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफों पर आए बवंडर को साफ करते हुए विधायकों पर सत्र में आने या नहीं आने का निर्णय छोड़ दिया. कल विधानसभा सत्र के दौरान गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी विश्वासमत प्रस्ताव पेश करेंगे. इस दौरान सत्ता की सियासी गणित क्या कहती है, यह तो सभी जानते हैं लेकिन कैसी रहती है, इसे जानना भी जरूरी है. आइए जानते हैं कि सदन में सत्ता की पहेली किस तरह से काम करेगी.

दरअसल, कर्नाटक विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संख्या 224 है. अगर विश्वासमत के दौरान कांग्रेस के 16 बागी विधायक गैर मौजूद रहते हैं तो विधानसभा में मौजूद विधायकों की संख्या 208 तक पहुंच जाएगी. ऐसे में बहुमत साबित करने के लिए जो जादूई आंकड़ा बचेगा वो 105 विधायक है.

सदन में कांग्रेस के विधायकों की कुल संख्या 79 है जिसमें एक विधानसभा अध्यक्ष भी शामिल है. जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. अब 16 विधायक जाने के बाद गठबंधन सरकार के पास कुल 100 विधायक रह जाएंगे. उन्हें एक बसपा विधायक का समर्थन भी प्राप्त है. ऐसे में यह संख्या 101 पर जाकर रूकती है. इनमें एक वोट विधानसभा अध्यक्ष का भी शामिल है. विधानसभा अध्यक्ष उसी समय वोट करता है जब सदन के दोनों पक्षों के वोट बराबर हों. कर्नाटक मामले में शायद यह स्थिति कभी नहीं आएगी.

अब बात करें बीजेपी की तो उनके पास विधानसभा में 105 विधायक पहले से ही मौजूद हैं. 2 निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी को पहले ही समर्थन देने की घोषणा कर रखी है. ऐसे में उनके पास कुल विधायकों की संख्या 107 हो जाती है. अगर सदन में बीजेपी के सभी सदस्य मौजूद रहते हैं तो बीजेपी आसानी बहुमत का प्रदर्शन कर सत्ता पर काबिज हो जाएगी.

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वहीं गौर करें कर्नाटक की कहानी के दूसरे छिपे हुए पहलू पर तो कहानी इतनी भी सीधी नहीं है. वैसे तो सभी बागी 16 विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं हुए हैं. ऐसे में उक्त सभी विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं. अगर ये सभी विधायक सदन में उपस्थित रहते हैं तो मौजूद कुल विधायकों की संख्या फिर से 224 हो जाएगी. अगर ऐसा होता है तो बहुमत के लिए 113 विधायकों की जरूरत पड़ेगी जो किसी के पास नहीं हैं. उन परिस्थितियों में सरकार का फैसला यही 16 विधायक करेंगे और उनके पास सरकार बनाने या बनी सरकार बिगाड़ने का रिमोर्ट कंट्रोल होगा. फिर ये सभी जैसा चाहें नई या फिर पुरानी सरकार को चला सकते हैं. खैर, इस मूंगेरी लाल के हसीन सपने की सोच केवल एक बनावटी कहानी तक ही सीमित है जिसके घटित होने की संभावना न के बराबर है.

हालांकि बीजेपी पक्ष के नेता बी.एस. येदियुरप्पा पहले ही सत्ता बनाने का दावा कर चुके हैं लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगोड़ा के सपूत हैं. उन्होंने भी राजनीति में काफी वक्त बिताया है और किसी भी तरीके से कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. 24 घंटे के दरमियान कहीं जेडीएस और कांग्रेस मिलकर कुछ ऐसा न कर दें कि बीजेपी और येदुयप्पा के हाथों से जीती हुई सत्ता की बिसात ​फिसल जाए. हालांकि ऐसी किसी घटना के होने की कोई संभावना तो नहीं है लेकिन राजनीति के चिकने फर्श पर ऐसी घटनाओं को पूरी तरह अनदेखा करना भी ठीक नहीं है.

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