जनआंदोलन से इंदिरा सरकार की नींव हिलाने वाले जयप्रकाश नारायण रहेंगे राजनीति के महानायक

राजनीति के सबसे बड़े जनयोद्धा जयप्रकाश नारायण का आज जन्मदिन है, सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को भगाना चाहते थे, बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर कांग्रेस से जुड़े, कांग्रेस में रहे जरूर लेकिन जयप्रकाश ने कभी भी सत्ता का मोह नहीं पाला, महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर अपनी ही इंदिरा सरकार के खिलाफ फूंका बिगुल

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Politalks.News/Bharat. आज राजनीति के उस नायक-महानायक की बात होगी, जिसे जनआंदोलन का जनक कहा जाता है. जिसकी एक पुकार से देश की जनता मैदान में आकर डट जाती थी. आइए जानते हैं कौन है वह शख्स जिसने अपने समय में राजनीति की दिशा और दशा बदल दी थी. यह शख्स हैं ‘जेपी’ यानी जयप्रकाश नारायण, एक ऐसा नाम जिसके बिना देश की राजनीति अधूरी है. जब-जब सत्ता हिलाने की बात चलती है जेपी का आंदोलन याद आता है. जेपी की अगुवाई में ऐसा संपूर्ण क्रांति आंदोलन था जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की नींव हिला डाली थी. जयप्रकाश नारायण को आज भी राजनीति में बड़े बदलाव के लिए याद किया जाता है. इन दिनों बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दलों में सरगर्मियां देखी जा सकती है. आज बात बिहार को ध्यान में रखकर ही होगी.

बिहार की माटी से निकलकर जेपी ने राजनीति को जनता के लिए ही समर्पित किया. आज 11 अक्टूबर राजनीति के सबसे बड़े जनयोद्धा जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन है. जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव के साथ तमाम राजनीतिक दलों के नेता जेपी को याद कर रहे हैं. सही मायने में जेपी एक जमीन से जुड़े नेता थे. जिनका संपूर्ण क्रांति का सियासी नारा आज भी इतिहास के सुनहरे पन्नों पर याद किया जाता है. जेपी के आंदोलन से ही कई बड़े नेता निकले. जयप्रकाश को आजादी के बाद जनआंदोलन का जनक और राजनीति का महानायक कहा जाता है.

कांग्रेस में रहे जरूर लेकिन जयप्रकाश ने कभी भी सत्ता का मोह नहीं पाला-

जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था। पटना से शुरुआती पढ़ाई के बाद अमेरिका में पढ़ाई की. 1929 में स्वदेश लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए. सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को भगाना चाहते थे, बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर कांग्रेस से जुड़े. लेकिन आजादी के बाद वे आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए. ग्रामीण भारत में आंदोलन को आगे बढ़ाया.

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सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जेपी ने कभी सत्ता का मोह नहीं पाला. नेहरू चाहते थे जेपी कैबिनेट मंत्रिमंडल में शामिल हों लेकिन वह इससे दूर रहे. आपको बता दें कि जेपी ने राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना नाम से किताब भी लिखी. 70 के दशक आते-आते जयप्रकाश नारायण का कांग्रेस सरकार से मोहभंग होना शुरू हो गया था. इसका सबसे बड़ा कारण रहा महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता परेशान थी. गांव से लेकर शहरों तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध की आवाजें उठने लगी थी.

महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर अपनी ही इंदिरा सरकार के खिलाफ फूंका बिगुल

1973 में देश महंगाई और भ्रष्टाचार का दंश झेल रहा था. इस बार उनके निशाने पर अपनी ही सरकार थी. सरकार के कामकाज और सरकारी गतिविधियां निरंकुश हो गई थीं. इसके विरोध में बिहार में भी बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया. जिसका नेतृत्व जेपी कर रहे थे. जैसे-जैसे देश में जेपी का आंदोलन बढ़ रहा था, वैसे-वैसे इंदिरा गांधी के मन में भय पैदा हो रहा था. ‘वर्ष 1975 मे इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी पर रायबरेली के चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप सही साबित होने पर जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा से इस्तीफा मांगा.’

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लेकिन इंदिरा ने जेपी की बात को अनसुना कर दिया. इसके विरोध में जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया, जिसे जेपी आंदोलन कहा जाता है. उन्होंने इसे संपूर्ण क्रांति नाम दिया था. बिहार के पटना का गांधी मैदान उस समय जेपी आंदोलन के बाद पूरा खचाखच भर गया था. जेपी की हुंकार से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी घबराई हुईं थीं, उन्हें तख्ता पलट का डर सता रहा था. जेपी के आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी को हटाने के लिए जनता सड़क पर थी. तब साल 26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी और जेपी के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. जेपी की गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने हुंकार भरी. उस समय साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.’ दिनकर का उस समय कहा गया यह नारा आज भी अमर है.

आखिरकार इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी-

आखिरकार इंदिरा गांधी को जनता के दबाव के आगे झुकना पड़ा और जनवरी 1977 में इमरजेंसी हटाने की घोषणा की. लोकनायक जयप्रकाश के ‘संपूर्ण क्रांति आंदोलन‘ के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. कांग्रेस की सत्ता परिवर्तन के बाद जेपी इंतजार करते रहे कि उनके अनुयायी संपूर्ण क्रांति के सपनों को साकार करेंगे, लेकिन बाद के दिनों में नए शासकों ने भी उनकी जिदगी में ही वही खेल शुरू कर दिया जिसके विरुद्ध 1974 में आंदोलन चला था.

अंत समय में जयप्रकाश नारायण अपनों की पीड़ा से ही टूट चुके थे. अब वह कुछ करने की भी स्थिति में नहीं थे. समाज की बेहतरी का अरमान लिए जेपी 8 अक्टूबर 1979 को इस लोक से ही विदा हो गए. जेपी को 1999 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया. यहां हम आपको बता दें कि जेपी के आंदोलन से ही तमाम ऐसे नेता निकले जिन्होंने राजनीति में अपनी खास जगह बनाई. लालू प्रसाद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिवंगत रामविलास पासवान, शरद यादव, जॉर्ज फर्नांडीज समेत कई नेता ऐसे रहे जो राज्य से लेकर केंद्र की सत्ता में काबिज हुए.

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