आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थान बीजेपी नेतृत्व पिछली बार की तरह इस बार भी 25 सीटें जीतने का दावा कर रहा है, लेकिन इसके लिए तैयारी में कई झोल दिखाई दे रहे हैं. यह जानते हुए कि चुनाव में मोदी ही पार्टी का प्रमुख चेहरा हैं, स्थानीय नेता उनकी सभाओं से कतरा रहे हैं. गौरतलब है कि मोदी ने पिछले दिनों टोंक और चुरू में सभाएं की थीं. उनका तीन और सभाएं करने का कार्यक्रम तय था, लेकिन ये हो नहीं पाईं. पार्टी सूत्रों के अनुसार इसके पीछे सभाओं में होने वाले खर्च था.

आमतौर पर इस प्रकार की सभाओं के खर्च की रकम का इंतजाम पार्टी फंड से होता है और स्थानीय नेता इसमें सहयोग करते हैं मगर मदन लाल सैनी के अध्यक्ष बनने के बाद से प्रदेश में बीजेपी की तिजोरी कंगाली के दिन देख रही है. चर्चा के मुताबिक सत्ता में नहीं होने की वजह से भी पार्टी को उतना चंदा नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए. ‘पॉलिटॉक्स’ के सूत्रों के अनुसार टोंक में हुई सभा के लिए पार्टी के प्रदेश कार्यालय से नाम मात्र का फंड जारी हुआ. सभा का ज्यादातर खर्च स्थानीय सांसद ने उठाया.

प्रदेश बीजेपी को चुरू में भी यही उम्मीद थी, लेकिन यहां के सांसद ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि कार्यक्रम पार्टी का है. जबकि विधायकों ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ ​लिया कि कार्यक्रम प्रधानमंत्री का है इसलिए इसे सफल बनाने का जिम्मा सांसद का है. पार्टी के नेताओं के बीच पीएम की सभाओं में होने वाला खर्चा भी चर्चा का केंद्र रहा. गौरतलब है कि बीजेपी की कमान मोदी और शाह के हाथों में आने के बाद सभाओं की अलग ही रंगत नजर आती है. भव्य मंच और श्रोताओं के बैठने की बढ़िया व्यवस्था से खर्च पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है.

सूत्रों के अनुसार किसी के खर्च उठाने के लिए तैयार नहीं होने की वजह से राजस्थान में पीएम मोदी की तीन और सभाओं का कार्यक्रम नहीं बन पाया. हालांकि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इसकी भनक नहीं है. उन्हें स्थानीय नेतृत्व ने यह तर्क दिया कि चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद पीएम की सभाएं ज्यादा कारगर होंगी. पीएम के कई कार्यक्रमों में व्यस्त होने की वजह से उन्होंने इसे मान भी लिया. चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद मोदी की राजस्थान में कई सभाएं होंगी, लेकिन तब इनका खर्च उठाने के लिए उम्मीदवार तो होंगे ही, केंद्रीय नेतृत्व का खजाना भी खुल जाएगा.

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