गुस्सा मुझे भी आता है लेकिन मेरे संस्कार और परवरिश रोकते हैं किसी बुजुर्ग का अपमान करने से- पायलट

कभी भी किसी को इतना इनसिक्योर नहीं करना चाहिए फील, राजनीति में आज मैं हूं कल मेरी जगह कोई और होगा, हममें से किसी को भी यह नहीं मानकर चलना चाहिए कि पार्टी किसी एक व्यक्ति के पीछे चलती है, पुराने लोग जाते हैं, नए लोग आते हैं यह तो किसी भी पार्टी और संगठन के लिए होता है जरूरी- सचिन पायलट

'मैंने कभी नहीं की इस स्तर की राजनीति'
'मैंने कभी नहीं की इस स्तर की राजनीति'

Sachin Pilot on Ashok Gehlot. राजस्थान में वर्चस्व की लड़ाई अब धीरे धीरे चरम पर पहुंचती जा रही है. सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में सचिन पायलट के लिए गद्दार जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि, ‘सचिन पायलट के पास दस विधायकों का समर्थन भी नहीं है, ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर कोई स्वीकार नहीं करेगा.’ सीएम गहलोत के इस बयान ने राजस्थान की सियासत को नई चिंगारी दे दी है. अब देखना ये है कि आखिर कांग्रेस आलाकमान आगे कितने वक्त तक इस मुद्दे को होल्ड पर रख पाता है लेकिन अब सचिन पायलट के भी खुलकर बयान सामने आने लग गए हैं. सचिन पायलट ने मीडिया समूह राजस्थान तक से बात करते हुए कहा कि, ‘मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय 2003 और 2013 में हम हर गए थे. इसलिए इस चुनाव में सरकार रिपीट करने के लिए कुछ अलग करना होगा. इस पर हमें जल्द कार्यवाही करनी चाहिए.’

अगले साल के अंत में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी सियासी दल भले ही तैयारियों में जुट गए हो लेकिन पार्टियों में जारी आंतरिक खींचतान सभी के लिए मुसीबत बनी हुई है. भाजपा में गुटबाजी जहां चरम पर है लेकिन वो खुलकर सामने नहीं आ रही है. वहीं कांग्रेस में जारी कुर्सी की जंग अब किसी से छिपी नहीं है. इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी नेचर के विपरीत जाकर शब्दों की मर्यादा को लांघते हुए सचिन पायलट खेमे के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया, तो वहीं सचिन पायलट अपनी छवि के अनुकूल साफ सुधरे शब्दों के साथ गहलोत पर हमलावर हैं. ऐसे में कांग्रेस के सामने राजस्थान में सरकार रिपीट करना सबसे बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है. इसे लेकर जब मीडिया समूह राजस्थान तक ने सचिन पायलट से बात की तो उन्होंने कई मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी. इस ख़ास बातचीत के कुछ मुख्य अंश हम इस खबर में आपके साथ साझा कर रहे है.

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प्रमुख डिजिटल न्यूज़ पोर्टल राजस्थान तक से बातचीत में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गद्दार वाले बयान पर जोरदार पलटवार करते हुए सचिन पायलट ने कहा कि, ‘मेरे राजनैतिक जीवन में मेरे धुर विरोधियों और विपक्ष के लोगों ने भी जिनके खिलाफ मैं लड़ा हूं उन्होंने भी इस तरह की भाषा का प्रयोग मेरे लिए नहीं किया. ऐसे में जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसे बुजुर्ग और अनुभवी नेता इस स्तर की भाषा का प्रयोग करते हैं तो गुस्सा तो आता ही है. मैं भी इंसान हूं, कैसे कह दूं कि मुझे गुस्सा नहीं आता है. भरपूर गुस्सा आता है और जोर का गुस्सा आता है. गुस्सा आना स्वभाविक है. इसी जुबान में उनको जवाब देना बहुत आसान काम है. किसी की जुबान पर ताला नहीं लगा हुआ है. मगर मैंने कभी भी इस स्तर की राजनीति नहीं की है. मुझे मेरे माता-पिता से मिला संस्कार रोकता है. मेरी परवरिश ऐसी नहीं हुई कि अपने से किसी बड़े बुजुर्ग के खिलाफ अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करूं, पर गुस्से से ज्यादा दुख होता है कि अशोक जी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन मुझे विश्वास है हमारे नेता सोनिया गांधी जी, खड़गे जी और राहुल गांधी जी पर, वो पार्टी और राजस्थान के हित मे सही समय पर सही कदम उठाएंगे.’

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सचिन पायलट पर बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लगाने से जुड़े सवाल पर सचिन पायलट ने कहा कि, ‘आज बीजेपी के खिलाफ देश भर में पार्टी की तरफ से कैंपेंन के लिए कौन जा रहा है. मेरा अब तक का पूरा राजनैतिक जीवन बीजेपी के खिलाफ लड़ते बीत गया. मैंने अपना हर चुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़ा. मैं अभी भी हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ जमकर कैंपेन करके लौटा हूं. मध्यप्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार गिराई तो कमलनाथ जी की मदद के लिए बीजेपी के खिलाफ मैं खड़ा रहा और हर जगह उपचुनाव में कैंपेन किया. मैं बीजेपी से सबसे दमदारी से लड़ने वाला कांग्रेस पार्टी का नेता हूं. खड़गे जी और राहुल जी के नेतृत्व में हमारी लड़ाई बीजेपी से जारी रहेगी.

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वहीं जब सचिन पायलट से सवाल पुछा गया कि ‘गद्दार जैसे शब्दों के साथ अचानक हमले की वजह क्या है?’ तो सचिन पायलट ने कहा- ‘वो तो वो जानें मगर किसी को भी इनसिक्योर नहीं फील करना चाहिए. राजनीति में आज मैं हूं कल मेरी जगह कोई और होगा. हममें से किसी को भी यह नहीं मानकर चलना चाहिए कि पार्टी किसी एक व्यक्ति के पीछे चलती है. पुराने लोग जाते हैं, नए लोग आते हैं यह तो किसी भी पार्टी और संगठन के लिए जरूरी होता है. जब 1998 में पार्टी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया था तो वो विधायक भी नहीं थे. परसराम मदेरणा जी कद्दावर नेता थे मगर पार्टी ने कुछ सोचा होगा और नए नेतृत्व को आगे बढ़ाया होगा.’

सचिन पायलट से जब राजस्थान में सरकार रिपीट करने से जुड़ा सवाल पुछा गया तो पायलट ने कहा कि, ‘मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय 2003 में कांग्रेस की 56 सीटें आईं और उसके बाद 2013 में फिर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सीएम थे और हम 21 सीटों पर ही सिमट गए. इसलिए इस चुनाव में सरकार रिपीट करने के लिए कुछ अलग करना होगा. इसके लिए अब हमें जल्द कार्यवाही करनी चाहिए.’ सचिन पायलट ने कहा कि, ‘हमने बीजेपी के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया था और जनता से वसुंधरा सरकार के कुशासन पर कड़ा प्रहार का वादा किया था, लेकिन सरकार में आने के बाद हमने उस दिशा में अब तक क्या किया? कुछ नहीं किया. अगर हमें सत्ता में वापसी करनी है तो जनता से किए वादे हमें पूरे करने होंगे जिससे जनता के मन में भरोसा पैदा हो. हमने वसुंधरा सरकार के दौरान हुए किसी कारनामे की जांच नहीं की, जिसके खिलाफ हमारे साथ जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं ने सड़क पर संघर्ष किया था.’

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वहीं राजस्थान में बढ़ते अपराध एवं बिगड़ती कनून व्यवस्था को लेकर जब सचिन पायलट से सवाल पुछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘राजस्थान की महिलाओं और दलितों की सुरक्षा का कांग्रेस पार्टी का कमिटमेंट है. उस कमिटमेंट पर हम खरा नहीं उतरेंगे तो सरकार कैसे रिपीट करवा पाएंगे.’ बेरोजगारी का जिक्र करते हुए पायलट ने कहा कि, ‘चाहे बेरोजगारों से किया वादा हो या संविदाकर्मियों से किया वादा हो, हम उनकी तकलीफ को जब तक कम नहीं करेंगे हम सत्ता वापसी नहीं कर सकते. जनता के काम, युवाओं की मांग और प्रदेश में शांति व्यवस्था स्थापित करना यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. किसानों की लड़ाई हमने लड़ी और हमारी प्रदेश में सरकार बनी. ऐसे में राहुल गांधी ने जो वादे किए थे उन वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी हमारी है. उन्होंने बेहतरी का वादा किया था जिस पर हमें गौर करना होगा.’

25 सितंबर को राजस्थान में विधायक दल की बैठक सामानांतर बुलाई गई बैठक से जुड़े सवाल पर सचिन पायलट ने कहा कि, ‘देखिये मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधायक दल के नेता हैं. अगर उन्होंने अपने घर पर विधायक दल की बैठक बुलाई और विधायक नहीं आए तो क्या इसका मतलब यह है कि वो राजस्थान के विधायकों का विश्वास खो चुके हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर जिम्मदारी तय होनी चाहिए. मुख्यमंत्री हो या कोई भी हो इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है. मुख्यमंत्री को अगर पता नहीं था तो क्या उन्होंने जिम्मदारों पर कोई कार्रवाई की. कांग्रेस के आज तक के इतिहास में ऐसी घटना नहीं हुई. हमारे वरिष्ठ नेता और प्रभारी पर्यवेक्षक बनकर आए थे. उनको अपमानित किया गया. विधायक दल की बैठक होती, पार्टी की परंपरा का पालन होता. विधायकों या नेताओं के बीच सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन ये विधायक दल की बैठक में होना चाहिए था, इसलिए 25 सितंबर की घटना गंभीर घटना है.’

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