‘मोदी है तो मुमकिन है’ के स्लोगन का फायदा लेकर पहली बार में ही जीत कर संसद पहुंचे सूफी गायक हंसराज हंस सदन के भीतर सवाल-जवाब से तो वो सुर्खियां बटौर नहीं सके जिनकी उन्हें चाहत रही. ऐसा भी नहीं है कि वे सदन में बस टेबल थपथपाने के लिए ही जाते हैं. वे अभी तक के संसदीय कार्यवाही में 5 बार सवाल कर चुके हैं और साथ में शेरो-शायरी भी. अब तो सदन की कार्यवाही भी स्थगित हो चुकी है. इसके बाद भी अचानक से हंसराज हंस चर्चाओं में आ गए. इस चर्चा की शुरूआत भी उन्होंने खुद ही क़ी. चर्चा है जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के नाम बदलने की.

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के सांसद हंसराज हंस एक समारोह में शिरकत करने जेएनयू पहुंचे. यहां उन्होंने अनुच्छेद 370 पर चर्चा करते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की वजह से ही कश्मीर दोबारा जन्नत बनने जा रहा है. मोदीजी के इस योगदान के बदले क्यों न ‘जेएनयू’ के नाम को बदल ‘एमएनयू’ कर दिया जाए.’ उन्होंने एमएनयू में ‘एम’ का मतलब मोदी बताया. बाकी बचे ‘एनयू’ का क्या करेंगे, ये उन्होंने नहीं बताया. उनका तर्क था कि जिस शख्स की गलतियों के कारण देश को आज तक ये सब झेलना पड़ा, उनके नाम पर यूनिवर्सिटी क्यों? यही वजह है कि वे जेएनयू का नाम एमएनयू रखना चाह रहे हैं लेकिन वे जेएनयू का पूरा नाम शायद देख ही नहीं पाए. जेएनयू का पूरा नाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी है और अगर नाम बदल कर एमएनयू रखा जाए तो ये ‘मोदी नेहरू यूनिवर्सिटी’ बन जाएगा जो न कांग्रेस के गले उतरेगा और न ही बीजेपी के.

खैर, क्या सोचकर सांसद महोद्य ने अपने ये विचार रखे, ये तो वे ही जाने लेकिन मोदी की श्रद्धा भाव से लदे उनके इन बयान ने बाहर आते ही विवाद की सूरत ले ली. इसके बाद भी हंसराज हंस अपने बयान पर कायम हैं. हालांकि उनकी पार्टी और प्रवक्ता इस बयान से इत्तेफाक नहीं रखते. पार्टी मानती है कि नेहरू के नाम और काम को इतिहास से मिटाया नहीं जा सकता. मोदीराज में अपनी अनन्य श्रद्धा भाव को प्रकट कर मोदीजी का ये सिपाही कितनी सियासी जमीन मजबूती पायेगा, ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन फिलहाल तो सांसद महोदय अपने इस बयान से अपनी ही किरकिरी करा बैठे हैं.

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