गोवर्धनपुरी पीठाधीश्वर के श्रीजगतगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने केंद्रीय सरकार से जैन, बौद्ध, सिखों को हिन्दू घोषित करने की मांग की. साथ ही उन्होंने भारतीय संविधान की धारा 25 को पुनवर्ती लागू करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की 25वीं धारा के अनुसार, जैन, बौद्ध, सिख आदि हिंदू परिभाषित किए गए. परंतु सत्ता लोलुप राजनीतिक दलों और अदुरदर्शी नेताओं ने बौद्ध और सिखों के साथ जैनियों के एक वर्ग को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया. इस लोकसभा चुनाव से पहले एक राजनीतिक दल वनवासियों को जिनकी प्रसिद्धी आदिवासी के तौर पर हो गयी थी, उन्हें अल्पसंख्यक घोषित करना चाहता था. छलबल डंके की चोट से अंग्रेजों की कूटनीति को क्रियान्वित करने वाले राजनीतिक दलों ने स्वतंत्रता से पूर्व से लेकर अब तक हिंदूओं के अस्तित्व और आदर्श को विलुप्त करने को लेकर अभियान चला रखा है.

निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि मेरी भावना यह है कि हिंदूओं के आदर्श की रक्षा होगी तो विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा. कारण ये है कि सनातन वैदिक आर्य हिंदूओं का जो सिद्धान्त है, वो इस डिजिटल युग में भी एक मात्र उत्कृष्ठ है. उन्होंने केंद्रीय सरकार और विपक्ष से देश के हित में संविधान की 25वीं धारा को पूर्वभूत की भांति लागू किए जाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि जैन, बौद्ध, सिख इत्यादि पुनर्जन्म में आस्था रखते हैं. वे गौवंश व गंगा और परलोक में भी आस्था रखते हैं. इनमें भले ही कोई अपने आपको वैदिक न माने लेकिन वेदों में आस्था रखते हैं. ऐसी स्थिति में संविधान की 25वीं धारा में सूझबूझ दिखाते हुए इसे फिर से क्रियान्वित किया जाए.

दलाई लामा का ध्यान केंद्रीत करते हुए निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने वट वृक्ष का उदाहरण करते हुए कहा कि अगर वट वृक्ष की टहनियां काट दी जाए तो वो आकर्षण विहीन हो जाएगा. उन्होंने जैन, बौद्ध, सिख वर्ग को इस मुहिम में साथ देने को कहा. उन्होंने देश को संदेश देते हुए कहा कि अगर जैन, बौद्ध और सिख हिन्दू वर्ग में शामिल होते हैं तो देश या विदेश में जो अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक या फिर गैर हिंदू माने जाते हैं, वे भी वैचारिक द्ष्टि से हिंदूओं के सनिकट होंगे. उन्होंने कहा कि यह संदेश किसी के असित्तव और आदर्शों पर प्रहार करने के लिए नहीं वरन वसुदेव कुटुम्ब और सर्वे भवन्तु सुखीन: भावना से हमने ये संदेश दिया.

उन्होंने भारत के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से सत्ता लोलूप होकर नहीं बल्कि देश के हित में काम करने की गुहार लगायी. उन्होंने अंग्रेज काल का उदाहरण देते हुए कहा कि बाहरी सत्ताधारियों ने 9 बार देश का विभा​जन किया है. ऐसे में अब पूर्व में की गयी भूल को सुधारे जाने की आवश्यकता है.

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