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अयोध्या विवादित जमीन मामले में गुरुवार को 10वें दिन सुनवाई हुई. इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता गोपाल सिंह विशारद, हिंदू महासभा और निर्मोही अखाडे के वकीलों ने दलीलें रखी. याचिकाकर्ता के वकील रंजीत कुमार ने दलील करखते हुए कहा कि कुछ मुसलमानों ने 1950 में फैजाबाद जिला मजिस्ट्रेट में हलफनामों में कहा था कि विवादित जमीन पर मंदिर था और मस्जिद के लिए उसे तोडा गया. ऐसे में विवादित स्थल पर पूजा करने का हिंदूओं का अधिकार छीना नहीं जा सकता.

इस पर जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या इसका क्रॉस एग्जामिनेशन हुआ था? इस पर वकील ने कहा कि उन्होंने सामने आकर ये बयान दिए थे जो 3 अखबारों में छपे थे. इस पर जस्टिस बोबडे ने सवाल किया कि हलफनामे हाईकोर्ट के रिकॉर्ड में कैसे रखे गए? जवाब देते हुए कुमार ने बतया कि ये मुकदमे में दायर हुए थे. रंजीत कुमार ने अब्दुल गनी का हवाला देते हुए बताया कि गनी ने अपने हलफनामे में कहा है कि मस्जिद निर्माण राम मंदिर तोडकर किया गया था.

इससे पहले जस्टिस बोबडे वकीलों से अपने तर्क दोहराने से रोकने के लिए बार बार टोकते और जूझते नजर आए. ऐसा ही कुछ हुआ जब निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने दूसरे दिन की सुनवाई की अपनी अधूरी जिरह को आगे बढ़ाया. जस्टिस बोबडे ने जब उनसे पूछा कि आपकी जिरह का बिंदू क्या है तो जैन ने ट्रस्टी के अधिकारों पर बोलने को कहा. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि गत बार आप इस पर पहले ही दलीलें पेश कर चुके हैं. कृप्या दोहराए नहीं. इसके बाद सभी जजों को सुनिश्चत करना पड़ा कि सभी शपथपत्र आॅन रिकॉर्ड हो और सभी संदर्भ उचित रूप से सूचीबद्ध हों.

बहस के दौरान सुशील जैन ने तीन मसलों की जांच की मांग भी की.
पहली: क्या निर्मोही अखाड़ा के पास ट्रस्टीशिप का अधिकार है?
दूसरी: क्या निर्मोही अखाड़ा के पास आंतरिक आंगन (कोर्ट यार्ड) का कब्जा है?
तीसरी: क्या निर्मोही अखाड़ा पूजा पाठ कर रहा था?

इसके बाद जब रंजीत कुमार की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वे कुछ प्रस्तुत साक्ष्यों और मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा दिए गए शपथ पत्रों पर ही निर्भर हैं जिन्हें उन्होंने ट्रायल कोर्ट की सुनवाई में पेश किए थे. उन मुस्लिमों ने इस बात को भी माना कि मस्जिद बनाने के बाद भी यहां हिंदू पूजा करते रहे. क्रॉस एग्जामिन की बात पर रंजीत कुमार ने कहा कि ऐसा नहीं किया गया लेकिन वे सभी स्वेच्छा से आए थे और बयान दिया. ये मुकदमे में फाइल किए गए थे और बाद में हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिए गए.

रंजीत कुमार ने ये भी कहा कि वे मुस्लिमों के हलफनामे के सत्य होने का दावा नहीं कर रहे लेकिन इस पर किसी को आपत्ति भी नहीं रही. याचिकाकर्ता वकील ने सुनवाई में ये भी बताया कि सब क्षेत्र के कुल 20 लोगों द्वारा ये शपथपत्र दायर किए गए थे जिनमें से कुछ जॉइन्ट एफिडेविट हैं जिनमें साफ तौर पर कहा गया कि यदि ये भूमि उपासकों को दे दी गयी तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. ये बयान तीन अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं.

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