निकाय प्रमुखों के चुनाव पर उठे विरोध पर बोले धारीवाल- कोई नये नियम नहीं बनाए, 9 महीने पहले सार्वजनिक कर दी थी जानकारी

गहलोत सरकार के मंत्रियों का दावा- कैबिनेट की बैठक में इस मामले को लेकर उनसे (सभी मंत्रियों) इस मामले में कोई चर्चा नहीं कि गई

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान की गहलोत सरकार द्वारा स्थानीय निकायों में अध्यक्ष, सभापति और महापौर के चुनाव में हाईब्रिड फॉर्मूले को लागू करने के एक दिन बाद ही खुद गहलोत सरकार के मंत्री और विधायकों द्वारा इस फैसले के विरोध करने पर स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल (Dhariwal) ने कहा कि सवाल तो तब उठना चाहिए जब नए नियम बनाए हों, वर्ष 2009 में जो नियम थे वही इस बार लागू हैं. हमने नौ माह पहले ही इसकी जानकारी सार्वजनिक कर दी थी, लेकिन बहुत से लोगों ने नियम ही नहीं पढ़े, इसलिए अब वो चर्चा कर रहे हैं.

बता दें, निकाय प्रमुखाें के चुनाव के तरीके में किए गए बदलाव के खिलाफ अब सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में ही बगावत के सुर उठने लगे हैं. खुद गहलाेत सरकार के दाे मंत्री, खाद्य नागरिक-आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने पार्षद का चुनाव लड़े बिना या हारे हुए प्रत्याशी काे मेयर या सभापति बनाए जाने के फैसले का विराेध करते हुए कहा कि यह फील्ड में काम करने वाले और पार्षद का चुनाव जीत कर आने वाले लोगों के साथ अन्याय है. पार्षद बनने वाले व्यक्ति को ही उसके क्षेत्र की समस्या की जानकारी होती है, नीचे तक उसकी पकड़ होती है. उन्होंने दावा किया कि कैबिनेट की बैठक में इस मामले को लेकर उनसे (सभी मंत्रियों) कोई चर्चा नहीं की गई.

मंत्री रमेश मीणा ने गुरुवार को एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा कि सरकार ने सीधे जनता की बजाय पार्षदों के माध्यम से मेयर-सभापति चुनने का फैसला लिया, इसका सभी ने स्वागत भी किया. लेकिन इसके दो दिन बाद ही सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया कि अब मेयर-सभापति और पालिकाध्यक्ष के लिए पार्षद का चुनाव लड़कर या जीतकर अाना आवश्यक नहीं होगा, यह गलत है. चुनाव जीतकर अाने वाले कार्यकर्ताअाें काे आशा रहती है कि वे ही मेयर या पालिकाध्यक्ष भी बनेंगे. मीणा ने आगे कहा कि मीणा ने कहा कि यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल (Dhariwal) से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की जाएगी. मीणा ने दावा किया कि कैबिनेट की बैठक में निकाय प्रमुख के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव को लेकर चर्चा हुई थी, लेकिन इस संबंध में मंत्रियों से चर्चा नहीं की गई.

वहीं परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने साफ कहा कि निकाय प्रमुख के चुनाव को लेकर क्या फैसला किया गया, मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. खाचरियावास ने कहा कि बिना चुनाव लड़े निकाय प्रमुख बनाने के फैसले को लेकर मुझसे नहीं पूछा गया. इस फैसले को लेकर पार्षद का चुनाव लड़ने वाले नेताओं ने गुरुवार को मेरे आवास पर मुलाकात की थी, सभी ने इस फैसले को लेकर नाराजगी जताई है. मैंने सभी को यूडीएच मंत्री से बात करने के लिए कहा है, मैं खुद भी सीएम और डिप्टी सीएम इस संबंध में चर्चा करूंगा ताकि उनकी नाराजगी को दूर किया जा सके.

गौरतलब है कि राजस्थान की गहलोत सरकार ने सोमवार को ही निकाय में प्रमुखों के चुनाव पर यू-टर्न लिया था, उसके बाद बुधवार काे जारी अादेश में कहा गया कि मेयर-सभापति बनने के लिए पार्षद बनना जरूरी नहीं हाेगा. हालांकि, अभी यह समय सीमा तय नहीं की गई है कि कितने समय बाद मेयर-सभापति काे पार्षद का चुनाव जीतकर अाना हाेगा. अब इस फैसले के खिलाफ खुद कांग्रेस पार्टी में ही विरोध हो रहा है. पार्टी में उठे इस विरोध को लेकर स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल (Dhariwal) ने कहा कि सवाल तो तब उठना चाहिए जब नए नियम बनाए हों, वर्ष 2009 में जो नियम थे, वो ही इस बार हैं. उस समय निकाय प्रमुख का चुनाव सीधा हुआ था, जिसमें कोई भी पात्र मतदाता खड़ा हो सकता था.

यूडीएच मंत्री धारीवाल (Dhariwal) ने आगे कहा कि इस बार निकाय प्रमुखों का चुनाव पार्षद करेंगे, लेकिन महापौर, सभापति या पालिका अध्यक्ष के पद कोई भी ऐसा मतदाता जो पार्षद बनने की योग्यता रखता हो, वह चुनाव लड़ सकेगा, ऐसे में निकाय प्रमुख की पात्रता में कोई बदलाव नहीं किया है. पिछली भाजपा सरकार ने वर्ष 2014 में इन नियमों को बदल दिया था, इसके बाद इस बार जब कांग्रेस सरकार बनी तो 31 जनवरी 2019 को वापस वर्ष 2009 के नियमों को लागू कर दिया गया. उस समय निकाय प्रमुखों का चुनाव सीधा कराने की घोषणा हुई, जिसे कोई भी लड़ सकता था, अब भी भले ही पार्षद चुनाव करेंगे, लेकिन कोई भी व्यक्ति जो पार्षद बनने की योग्यता रखा है, वो चुनाव लड़ सकता है.

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