Politalks.News/uttrapradesh. उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) ने यह साबित कर दिया है कि यहां पर कांग्रेस (Congress) पार्टी की न सिर्फ सीटें ही कम हुई हैं बल्कि पार्टी का जनाधार भी तेज से खिसका है. पार्टी की ऐसी स्थिति के पीछे सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के पुराने दिग्गजों का नजरअंदाज (ignore the old giants) करना ही पार्टी को भारी पड़ रहा है. नतीजा यह रह गया कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को प्रदेश की 403 सीटों पर मात्र 2.33 प्रतिशत वोट ही मिला है जो कि कई अन्य क्षेत्रीय दलों से भी काफी कम है. जैसा की आपको पता है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Congress General Secretary Priyanka Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस इस चुनाव में उतरी थी. कांग्रेस पार्टी की मौजूदा कमेटी ने बीते दो-तीन सालों से अपने पुराने व वरिष्ठ नेताओं को ही तरजीह देना बंद कर दिया. एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि साल 1985 के बाद से अब तक पार्टी सूबे में 50 का आंकड़ा नहीं पार नहीं कर पाई है. लेकिन यह भी सच है कि इस चुनाव में पार्टी का अब तक के इतिहास में सबसे खराब प्रदर्शन रहा.
कांग्रेस के 387 सीटों पर जब्त हुई जमानत
देश की सबसे पुरानी पार्टी की यूपी में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. देश के सबसे बड़े सूबे में कभी सरकार बनाने वाली कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई कि इस बार 387 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. कांग्रेस ने यूपी में 399 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इतना ही नहीं, कांग्रेस को महज 2.4 प्रतिशत वोट शेयर मिला जबकि उससे ज्यादा वोट राष्ट्रीय लोकदल को 2.9 फीसदी मिले, जो केवल 33 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
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बाहर से आए नेताओं ने जमीनी नेताओं को किया दरकिनार
सियासी जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे नेताओं के ऊपर बाहर से आने वाले नेताओं को बैठना शुरू कर दिया. ऐसे में बाहर से आए इन नेताओं ने अपना वर्चस्व जमाने के लिए पुराने और दिग्गज नेताओं को नजरंदाज करना शुरू कर दिया. इसके चलते पार्टी अर्न्तकलह से जूझने लगी और कई नेताओं ने तो खुद ही बाहर का रास्ता अपना लिया. इसके साथ ही कई नेताओं को पार्टी की मौजूदा नेतृत्व ही बाहर कर दिया. इसका असर उस समय तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में आये परिणाम ने सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगा है और पार्टी को न सिर्फ इस चुनाव में सिर्फ दो सीटों (रामपुर खास व फरेन्दा) से ही संतोष करना पड़ा बल्कि पार्टी का जनाधार भी 2.33 प्रतिशत ही रह गया.
प्रियंका के संघर्ष के बावजूद खिसका जनाधार
सियासी जानकारों का कहना है कि इस चुनाव से अच्छा प्रदर्शन तो पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में किया था. जबकि उस समय कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का संघर्ष भी पार्टी के साथ नहीं था. तब भी पार्टी को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे और सात सीटों पर जीत भी हासिल की थी.
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प्रियंका के कमान संभालने के बाद 2 दर्जन दिग्गजों ने छोड़ी कांग्रेस
सियासी जानकार बता रहे हैं कि, पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का स्थान लेने यूपी आयीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के आने और अजय कुमार लल्लू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही लगभग दो दर्जन बड़े नेताओं ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया या फिर घर में बैठ गये. लल्लू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूर्व मंत्री स्व. रामकृष्ण द्विवेदी, पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व एमएलसी सिराज मेंहदी, पूर्व सांसद व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष युवक कांग्रेस डॉ. संतोष सिंह सहित अमेठी में कांग्रेस का स्तम्भ माने जाने वाले पूर्व सांसद डॉ.. संजय सिंह ने या तो पार्टी छोड़ दी या चुपचाप पार्टी से किनारा कर लिया.
कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में पार्टी के ‘पिलर्स’ ने छोड़ा साथ
कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली रायबरेली में भी पार्टी को बड़ा झटका लग चुका है. यहां से कांग्रेस के एमएलसी रहे दिनेश प्रताप सिंह ने पहले कांग्रेस से न सिर्फ नाता तोड़ा बल्कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ चुके हैं. इसके बाद यहां के दो कांग्रेस विधायक अदिति सिंह व राकेश प्रताप सिंह ने भी पार्टी से अलविदा कर लिया.
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नई टीम ने पुराने लोगों को किया किनारे
कांग्रेस के अन्य दिग्गजों में शाहजहांपुर व आसपास के जिलों में अपनी अलग पहचान रखने वाले पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, बुन्देलखण्ड़ के पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी, पूर्वांचल के ललितेश पति त्रिपाठी व आरपीएन सिंह जैसों ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया. इसके साथ ही चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के सहारनपुर से विधायक नरेश सैनी व मसूद अख्तर ने भी पार्टी से किनारा कर लिया. इसके साथ ही प्रदेश कार्यालय में कब्जा जमाने वाली नई टीम ने पुराने लोगों को पूरी तरह से किनारे लगा दिया और उन्हे तरजीह देना बंद कर दिया.
जिनके सहारे पार्टी जिंदा थी उनका पार्टी से हुआ मोहभंग!
सियासी जानकार कहते हैं कि, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी यह समझ में नहीं आया कि जिन दिग्गजों के सहारे उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में जीवित है उनका इस तरह से पार्टी से मोहभंग होना अच्छा नहीं है. इसी का नतीजा देखने को मिल रहा है कि आज प्रियंका गांधी वाड्रा के इस संघर्ष के बाद भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीन ही नहीं तैयार हो पा रही है.