Politalks.News/UttraPradeshResult. लोकसभा चुनाव (Loksabha chunaav) से ठीक दो साल पहले भाजपा ने सेमीफाइनल में करिश्मा दिखाते हुए उत्तरप्रदेश, (UttarPradesh Assembly Election 2022) उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल किया है. वहीं यूपी में बेशक भाजपा की 57 सीटें घट गईं हों, पर वोट शेयर 1.3% बढ़ गया है. ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा है कि, सूबे में जो पार्टी सात साल पहले अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी, उस भाजपा का 2014 से जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह हर बार एक नया रिकॉर्ड गढ़ रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में जब विपक्ष हवा बना रहा था, तब भाजपा ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की अगुआई में सत्ता की ऐसी जमीन बनाई, जिससे न केवल विपक्ष के पांव उखड़ गए बल्कि भाजपा ने जीत की वह फसल उगाई जो साढ़े तीन दशक में नहीं उगी थी. सियासी जानकारों का कहना है कि मोदी ने राशन और योगी ने प्रशासन को घर-घर पहुंचाकर विपक्ष के जातीय गणित को ढहा दिया. ब्रांड मोदी और योगी इस चुनाव में भी बड़ी छाप छोड़ता नजर आया. सियासी जानकार भाजपा की जीत के कई ठोस कारण बता रहे हैं.
‘मोदी का करिश्मा’, पीएम जहां गए, 80% सीटें जीतीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में कुल 200 सीटों को कवर करते हुए 32 रैलियां कीं है. इनमें से भाजपा ने 160 सीटें जीतीं, यानी मोदी का स्ट्राइक रेट 80% रहा. इसी तरह प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी की जिन 150 सीटों पर सक्रिय रहीं, वहां भी भाजपा को 107 सीटें मिलीं, कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई.
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‘मोदी-योगी’ प्रभावी हुआ ब्रांड
आपको बता दें, भाजपा ने इस जीत के साथ 2014 के बाद से लगातार जीत का चौका लगाया है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोबारा सत्ता में वापसी कर 37 साल पुराने उस मिथक को भी तोड़ दिया कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाला कोई सीएम लगातार दोबारा सत्ता में वापस नहीं आता. इस चुनाव में भाजपा ने सीएम योगी को ‘ब्रांड’ बनाकर पेश किया, जिसे उन्होंने साबित भी किया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘उप-योगी’ की उपाधि देकर जो दांव चला था, उसे योगी ने सही साबित किया.
‘लाभार्थियों’ के जरिए तोड़ी जातीय गोलबंदी
भाजपा को मात देने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जातीय नुमाइंदगी वाले दलों को साथ लेकर रणनीति तैयार की थी. वेस्ट यूपी में जाटों-मुस्लिमों को एक साथ लाने के लिए उन्होंने रालोद से गठबंधन किया, तो पूरब में राजभरों के असर वाले सुभासपा को साथ लिया. क्षेत्रवार जातीय गणित के हिसाब से अपना दल (कमेरावादी), महानदल जैसे दलों को साथ लिया. इस जातीय गोलबंदी का जवाब देने के लिए भाजपा ने अपना एक अलग लाभार्थी वोटर वर्ग तैयार किया. खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने जीत के बाद माना कि यूपी जैसे राज्य में भाजपा सरकार ने 2.61 करोड़ गरीबों के घरों में शौचालय बनवाए, 45.50 लाख गरीबों के लिए आवास बनवाए, 1.47 करोड़ घरों में बिजली पहुंचाई तो कोरोना काल से 15 करोड़ गरीबों को राशन भी दिया. केंद्र सरकार की इन कल्याणकारी योजनाओं से उपजे लाभार्थी वर्ग ने जातीय गणित को तोड़कर भाजपा के पक्ष में मतदान किया.
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‘दलित’ बहुल 136 सीटों में से भाजपा ने जीती 99 सीट
दलितों की 30% से ज्यादा आबादी वाली 44 सीटों में भाजपा ने 32 जीतीं. हालांकि पिछली बार 36 थीं. वोटिंग के बाद हुए भाजपा के इंटरनल सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि ब्राह्मणों के 20% वोट खिसके हैं, जिसकी भरपाई दलित वोटों से हुई है. हमेशा 20% से ज्यादा वोट लेने वाली मायावती की बसपा को 12.8% वोट मिले. मायावती ने 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे, जो सपा उम्मीदवारों की ही जाति या धर्म के थे. इनमें से 66 सीटें भाजपा ने जीती हैं.
‘ध्रुवीकरण’ मुस्लिम वोट एकमुश्त सपा को, हिंदू बंटे
उत्तरप्रदेश में 65 मुस्लिम बहुल सीटों में 25 भाजपा, 40 सपा+रालोद ने जीतीं. पिछली बार 40 भाजपा, 20 सपा ने जीती थीं. वहीं जिस मुजफ्फरनगर के बारे में योगी ने ‘मई-जून में सर्दी’ लाने वाला बयान दिया था, वहां 6 में से 4 सीटें सपा+रालोद ने जीतीं. भाजपा का सर्वे कहता है कि 20% से ज्यादा हिंदू वोट सपा को मिले हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने 100 सीटों पर कैंडिडेट उतारे, जीता एक भी नहीं. उनकी पार्टी को कुल 0.49% वोट मिले, जबकि नोटा को 0.69% वोट मिले हैं.
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‘बुलडोजर’ ज्यादा अपराध वाली 70% सीटें भाजपा की
योगी सरकार की लॉ एंड ऑर्डर को उपलब्धि बताकर भाजपा मैदान में थी. 2017 में भाजपा ने ज्यादा अपराध वाले कानपुर, मुजफ्फरनगर समेत जिन 10 जिलों की कुल 57 सीटों में से 41 सीटें जीती थीं, वहां इस बार 44 जीतीं. सबसे ज्यादा एनकाउंटर और अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाने के प्रमुख घटनाएं इन्हीं जिलों में हुई हैं.