अयोध्या राम मंदिर पर वोट मांगना भाजपा को पड़ सकता भारी

झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में बीजेपी आलाकमान खुद नहीं बनाना चाहता राम मंदिर को चुनावी मुद्दा, सदन के शीतकालीन सत्र के पहले दिन दिख चुका है असर

vote for Ayodhya Ram Mandir
vote for Ayodhya Ram Mandir

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. पिछले साल 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के नेताओं ने अपने भाषणों में अन्य मुद्दों के साथ-साथ अयोध्या राम मंदिर का भी जिक्र किया था. हालांकि लोकसभा में इस बिजली के नंगे तार को किसी ने नहीं छेड़ा. न ही हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में किसी ने इस पर कोई बात उठाई. हां, वो अलग बात है कि शिवसेना ने इस बात पर कुछ बयान जरूर दिए. अब अयोध्या का फैसला आ चुका है और भाजपा इस मुद्दे को (Vote for Ram Mandir) आगामी झारखंड और राजधानी दिल्ली में होने वाले चुनावों में तुरूप का इक्का बनाकर पेश करने की तैयारी में है लेकिन अगर बीजेपी ने चुनावी माहौल में अयोध्या या राम मंदिर पर वोट मांगे तो निश्चित तौर पर पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा.

दरअसल, ये मुद्दा (Vote for Ram Mandir) पूरी तरह से आस्था और सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा है. देखा जाए तो इस फैसले में न तो केंद्र सरकार और न ही किसी राजनेता की भूमिका नजर आई. यहां तक की राम परिवार और लव-कुश से जुड़े राज धराने तो सामने आए लेकिन न्याय के दरवाजे तक कोई नहीं पहुंचा. सर्वोच्य न्यायालय का ये फैसला राजनीति से प्रेरित तो हो ही नहीं सकता. ऐसे में इसे चुनावी मुद्दा बनाना या इस फैसले को बीजेपी सरकार का नाम देकर जनता से वोट मांगना किस हद तक वाजिब है.

सूत्रों के अनुसार, सरकार के आला नेताओं और आलाकमान को भी इस बात का इल्म है लेकिन स्थानीय नेताओं की सोच इससे परे है. कई छोटे मंचों पर नेताओं को इस बारे में बोलते देखा भी जा चुका है जिसमें उन्होंने कहा कि मोदीजी की सरकार में अयोध्या का फैसला आया है. ऐसे में राम मंदिर बनाने का क्रेडिट भाजपा को जाता है. एक नेता ने तो यहां तक कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में इसलिए आया क्योंकि केंद्र में हमारी सरकार यानि मोदी सरकार थी. इसके विपरीत खुद सुप्रीम ने अपने फैसले में कहा था कि ये मसला आस्था से जुड़ा है.

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अयोध्या राम मंदिर पर क्रेडिट लेना भाजपा को कितना भारी पड़ सकता है, इसका नजारा वर्तमान में चल रहे लोकसभा के शीतकालीन सत्र में देखने को मिला. पार्टी के कई नेता चाहते थे कि संसद के सत्र के पहले दिन सदन परिसर में मिठाई बांटी जाए और अयोध्या के फैसले पर बधाईयों का लेन देन हो. कुछ उत्साही सांसदों ने मिठाई मंगा भी ली लेकिन उन्हें न तो मिठाई बांटने की अनुमति मिली और न ही बधाई लेने देने की. मंगलवार को भाजपा सांसदों की बैठक में भी इस मुद्दे को चर्चा से दूर रखा गया. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने किसी विदेशी दौरे में इस फैसले का कोई जिक्र नहीं किया.

भाजपा के एक सांसद ने अपनी सोच को रखते हुए कहा कि भाजपा सांसदों की बैठक में अयोध्या पर चर्चा होनी चाहिए थी. मंदिर बनने, ट्रस्ट बनाने आदि सवालों पर बात होनी चाहिए लेकिन इस बारे में सभी सांसदों ने चुप्पी साधे रखी. इस पर केंद्रीय आलाकमान का ये मानना है कि इस बारे में (Vote for Ram Mandir) ज्यादा प्रचार करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मंदिर पर आए फैसले से हिंदू समाज में जो मैसेज जाना चाहिए, वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अपने आप चला गया है. आलाकमान खुद मानता है कि इस फैसले का क्रेडिट लेना कहीं न कहीं नुकसान ही देगा.

जानकारों का कहना है कि झारखंड के चुनावी दंगल में भाजपा अपनी ओर से मंदिर के फैसले को न मुद्दा बनाएगी और न ही भुनाने की कोशिश करेगी. पार्टी के बड़े नेता भी इस फंदे से दूर रहेंगे. वजह दो हैं. पहली – पार्टी राम मंदिर के मुद्दे को जितना भुना सकती थी, वो भुना चुकी है. भाजपा 1989 से हिंदूत्व और राम मंदिर के मुद्दे को ही चुनावी मुद्दा बनाते आई है. दूसरी – ये भाजपा का ब्रह्मास्त्र है जिसे अंतिम समय पर चलाया जा सकता है और वो अंतिम अवसर है 2024 का लोकसभा चुनाव. उस समय पर कहा जा सकता है कि भाजपा राज में दशकों पुराना ये मुद्दा हल हो गया और दोनों समुदायों को बिना भेदभाव के बराबर का अवसर दिया गया.

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वहीं दूसरी ओर, अभी अगर ये मुद्दा (Vote for Ram Mandir) उठाया गया तो आॅल मुस्लिम बोर्ड और कई अन्य मुस्लिम संगठनों की नाराजगी भी भाजपा को अपने सिर लेनी पड़ेगी. दिल्ली चुनावों में भी इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है. ऐसे में हमारा तो यही मानना है कि अगर भाजपा को इस 440 वोल्ट के करंट से बचना है तो अयोध्या राम मंदिर के नंगे तार को हाथ न लगाए तो ही अच्छा, वरना बिजली का वो झटका लगेगा कि पार्टी झारखंड और दिल्ली तो क्या आगे आने वाले चुनावों में मुंह के बल गिरती नजर आएगी.

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