बिहार चुनाव: पहले भी वीआरएस ले चुके हैं गुप्तेश्वर पांडे, मंसूबे नहीं हुए पूरे तो फिर पहन ली थी वर्दी

बिहार के 'रॉबिन हुड' पांडे ने नहीं खोले पत्ते लेकिन 14 सीटों पर ठोक दिया जीत का दावा, राजनीति में आना माना जा रहा तय, मां ने कहा- राजनीति में भी करेगा बड़ा नाम

Gupteshwar Pandey (गुप्तेश्वर पांडे)
Gupteshwar Pandey (गुप्तेश्वर पांडे)

Politalks.News/Biharबिहार के रॉबिनहुड पांडे यानि पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे (Gupteshwar Pandey) ने राजनीति में आने के अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं लेकिन जिस तरह उनके और उनके परिवार की तरफ से बयान आ रहे हैं, उससे उनका राजनीति में आना तय माना जा रहा है. सोशल मीडिया पर ‘राबिन हुड बिहार के‘ गाने ने भी बिहार में धूम मचा रखी है जो कहीं न कहीं इसी रणनीति का हिस्सा है और गाने पर केवल 12 घंटे में 45 हजार व्यूज़ उनकी पॉपुलर्टी दिखा रहे हैं. हालात कुछ ऐसे हैं कि बिहार में सोशल मीडिया पर थोड़ा सा भी एक्टिव रहने वाले किसी व्यक्ति से पूछिए कि नीतीश और लालू जैसे राजनीति के धुरंधरों के बीच ये कौन आदमी है जो ख़ुद को ‘बिहार का रॉबिन हुड’ कह रहा है तो जवाब मिलेगा गुप्तेश्वर पांडे, जिन्होंने हाल में ड्यूटी से वीआरएस लिया है.

सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार के दवाब के बावजूद तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे्ेय ने बिहार की नीतीश सरकार का पक्ष लिया और उपर से नैतिक दबाव आने लगा तो भी वे ढिगे नहीं और खुलकर बोलना शुरु किया. उनके हो हल्ला मचाने के बाद ही मुंबई पुलिस ने क्वारंटीन आईपीएस अधिकारी को छोड़ा. जैसे ही उन्होंने ड्यूटी से वीआरएस लिया और जिस तरह प्रदेश के गृह मंत्रालय ने उनका त्यागपत्र स्वीकार किया, उससे साफ तौर पर लग गया है कि वे फिर से राजनीति में हाथ आजमाना चाह रहे हैं.

बता दें, ऐसा पहली बार नहीं है कि बिहार के रॉबिनहुड पांडे यानि गुप्तेश्वर पांडे ने पहली बार वीआरएस लिया है. 11 साल पहले भी गुप्तेश्वर पांडे राजनीति में आने के लिए वीआरएस ले चुके हैं. हालांकि जब लालमुनि चौबे ने उनके अरमानों पर पानी फेरा तो उन्होंने दोबारा वर्दी पहन ली. हुआ कुछ ऐसा कि गुप्तेश्वर पांडेय ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी.

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माना जाता है कि गुप्तेश्वर पांडे बिहार की बक्सर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. पांडे को उम्मीद थी कि बक्सर से बीजेपी के तत्कालीन सांसद लालमुनि चौबे को पार्टी दोबारा से प्रत्याशी नहीं बनाएगी लेकिन लालमुनि चौबे की वजह से उनका मंसूबा पूरा नहीं हो पाया और बीजेपी ने चौबे को ही अपना उम्मीदवार बना कर मैदान में उतार दिया. सियासी अरमानों पर पानी फिरने के बाद गुप्तेश्वर पांडे ने दोबारा से नौकरी में वापसी करना ही मुनासिब समझा.

इस्तीफे के 9 महीने बाद गुप्तेश्वर पांडे ने बिहार सरकार से कहा कि वे अपना इस्तीफा वापस लेना चाहते हैं और नौकरी करना चाहते हैं. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने उनकी अर्जी को स्वीकार करते इस्तीफा वापस कर दिया था. बाद में हल्ला मचवा दिया गया कि राज्य सरकार ने उनकी वीआरएस याचिका स्वीकार नहीं की थी इसलिए उन्हें पुलिस सेवा में बहाल कर दिया गया. इस तरह से गुप्तेश्वर पांडे की पुलिस सर्विस में नौकरी में वापसी हो गई. 2009 में जब पांडे ने वीआरएस लिया था तब वो आईजी थे और 2019 में उन्हें बिहार का डीजीपी बनाया गया था.

इस बार राज्य के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे ने बिहार विधानसभा से ठीक पहले एक बार फिर से अचानक स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली. गृह विभाग ने इसकी जानकारी दी और राज्यपाल फागू चौहान ने पांडेय के अनुरोध को मंजूरी दे दी. माना जा रहा है कि 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी पांडेय आसन्न बिहार विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. इधर जब भी मीडिया ने पांडे से उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा को लेकर बात की गई तो उन्होंने केवल इतना कहा कि क्या ये अवैध है. लेकिन हाल में एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने राज्य की 14 सीटों पर निर्दलीय जीत का दावा ठोक दिया.

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गुप्तेश्वर पांडे ने कहा कि मैं बिहार के किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत सकता हूं, वह भी निर्दलीय. 14 सीटों से चुनाव लड़ने का ऑफर है, लेकिन मैं अभी राजनीति में जाने को लेकर फैसला नहीं किया है. जो भी होगा, पहले अपने लोगों से सलाह मशविरा करूंगा, फिर इसका ऐलान करूंगा. इधर, उनकी मां ने भी उनके राजनीति में आने के संकेत दिए.

पांडे की मां ने कहा कि जिस तरह गुप्तेश्वर ने पुलिस महकमे में अच्छा काम किया, वैसे ही राजनीति में भी बेहतर करके दिखाएंगे. ये भी बताते चले कि गुप्तेश्वर के भाई बिहार में पत्रकार हैं और गुप्तेश्वर को पॉपुलर करने में वे एक अहम भूमिका निभा रहे हैं. बिहार सरकार का भी गुप्तेश्वर को पूरा समर्थन है. ऐसे में पांडे को उनकी पसंदीदा आसन्न विधानसभा सीट से टिकट मिलना निश्चित माना जा रहा है.

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