बिहार (Bihar) में भाजपा (BJP) के लिए सबकुछ ठीक नहीं है. मोदी सरकार (Modi Government) बनने के बाद भाजपा में जिस तरह सत्ता का केंद्रीयकरण करने के प्रयासों के तहत स्थानीय क्षत्रपों का असर कम करने का सिलसिला चल रहा है, उसके तहत जहां अन्य राज्यों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह लाइमलाइट से बाहर हो गए हैं और इन राज्यों में भाजपा संगठन पर हाईकमान का प्रभुत्व बन चुका है, वैसा बिहार में नहीं है. बिहार में भाजपा की मदद से जदयू नेता नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और भाजपा वहां नीतीश का विकल्प खोजने में जुटी हुई हैं. भाजपा हाईकमान को भरोसा है कि बिहार में देर सबेर भाजपा की ही सरकार बननी है, लेकिन बिहार में नीतीश का विकल्प तलाशना बहुत कठिन है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में होंगे. राजनीतिक जमावट अभी से होने लगी है. वैसे नीतीश कुमार के साथ उप मुख्यमंत्री भाजपा के सुशील कुमार मोदी हैं, लेकिन वह नीतीश को चुनौती नहीं देना चाहते. उन्होंने पहले ही कह दिया है कि बिहार के कप्तान नीतीश कुमार हैं. ऐसे में भाजपा को किसी ऐसे नेता की तलाश है जो गठबंधन के दायरे में रहते हुए बिहार में नीतीश के लिए राजनीतिक परेशानियां पैदा कर सके. जैसा भाजपा महाराष्ट्र में कर रही है. पहले महाराष्ट्र में शिवसेना का वर्चस्व था, भाजपा उसकी सहयोगी पार्टी थी. अब भाजपा प्रमुख पार्ट हो गई है और शिवसेना के साथ उसकी मामूली खींचतान चलती रहती है. यही प्रयोग संभवतः बिहार में भी करने का प्रयास हो रहा है.

भाजपा ने बिहार में अपनी नई आक्रामक रणनीति के तहत चंपारण से लोकसभा सांसद संजय जायसवाल को बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है. संजय जायसवाल की नियुक्ति के पीछे बिहार के पिछड़े और वैश्य वर्ग के मतदाताओं तक पकड़ मजबूत करने का उद्देश्य हो सकता है. बिहार में 12 फीसदी इस वर्ग के मतदाता हैं. उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी इसी वर्ग से संबंधित हैं. इसके अलावा पार्टी को अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए एक तेजतर्रार जनता से जुड़े युवा चेहरे की जरूरत थी.

संजय जायसवाल की छवि विवादों से दूर रहने वाले नेता की है. वह टकराव में भरोसा नहीं रखते, इसलिए भाजपा का नीतीश कुमार के साथ तालमेल बनाए रखने में भी वह मददगार होंगे. पेशे से डॉक्टर होने के कारण स्थानीय लोगों में उनकी लोकप्रियता भी बहुत है. लेकिन वह बिहार में सतह के नीचे चल रही उथल-पुथल को संभाल पाएंगा या नहीं, यह भविष्य में ही तय होगा.

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भाजपा जहां अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए रणनीति बनाने में जुटी है, वहीं स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता नीतीश के समर्थन में बंटे हुए हैं. मतभेद की यह स्थिति भाजपा नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान के नौ सितंबर को दिए गए उस बयाने के बाद बनी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार ने 15 साल बिहार का शासन संभाल लिया, अब उन्हें भाजपा के लिए जगह खाली करके केंद्र में भूमिका निभानी चाहिए.

संजय पासवान के इस बयान के बाद तमाम जदयू नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उन्होंने बदलाव की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया. इस विवाद को थामने के लिए उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को नीतीश के समर्थन में ट्वीट करना पड़ा. इस बीच कुछ और भाजपा नेताओं के बयान भी सामने आए, जिनसे स्पष्ट होता है कि नीतीश के मुद्दे पर बिहार भाजपा में एकराय नहीं है. सुशील कुमार मोदी के ट्वीट से बिहार के कुछ भाजपा नेता इत्तेफाक नहीं रखते हैं. सीपी ठाकुर, मंत्री प्रेम कुमार और विधायक मिथिलेश तिवारी ने कहा- यह सुशील कुमार मोदी की निजी राय हो सकती है. इसके बाद मोदी का ट्वीट कुछ समय के लिए गायब हो गया था. बाद में वह फिर दिखने लगा. ट्वीट गायब होने के बाद कहा जा रहा था कि उन्होंने ट्वीट हटा लिया है. दुबारा उन्होंने नीतीश कुमार को टैग करते हुए रिट्वीट किया.

बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा का सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है. लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के एक वर्ग में नीतीश कुमार की जगह भाजपा का मुख्यमंत्री लाने की इच्छा बलवती हो गई है. बिहार भाजपा में नीतीश विरोधी नेता भी हैं जो राज्य में भाजपा का बहुमत का दावा करते हुए नीतीश कुमार के साथ पार्ट के गठबंधन पर पुनर्विचार की मांग करने लगे हैं. बिहार के बड़े नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के साथ मतभेद नई बात नहीं है. बिहार में नीतीश समर्थक भाजपा नेताओं में सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर यादव शामिल हैं.

सुशील कुमार मोदी के समर्थक एक नेता ने कहा कि बिहार में तीन राजनीतिक ताकतें हैं, भाजपा, जदयू और राजद. इनमें जो दो पार्टियां मिल जाती है, वे सरकार बनाती है. पहले भी भाजपा ओर जदयू अलग-अलग चुनाव लड़ चुके हैं. नतीजा सबके सामने है. इसलिए नीतीश को बिहार में हटाने की सोचना बेबुनियाद बात है. विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में नीतीश विरोधी प्रचार को हवा देना ठीक नहीं है.

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