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बिहार में आप इन दिनों कहीं भी चले जाये, चारों तरफ सिर्फ यही चर्चा सुनने को मिलती है, ‘ तेजस्वी यादव कहां है. दरअसल लोकसभा चुनाव में हार के बाद हुई महागठबंधन की समीक्षा बैठक के बाद तेजस्वी यादव गायब हैं. तेजस्वी के ‘गायब’ होने के बाद न केवल उनके विरोधी उनपर निशाना साध रहे हैं, बल्कि राजद के नेता और उनके सहयोगी भी इसका जवाब देने में असमर्थ हैं. आखिर तेजस्वी की राजनीति से बेरुखी का क्या कारण है. दरअसल लोकसभा चुनाव से पूर्व तेजस्वी यादव ने बिहार में जेडीयू, बीजेपी गठबंधन को मात देने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक जाजम पर लाया था.

उत्तर प्रदेश की तरह यहां भी विपक्षी पार्टियों के गठबंधन को महागठबंधन नाम दिया गया था. बिहार के महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी शामिल थी. चुनाव से पूर्व यह लग रहा था कि तेजस्वी यादव के द्वारा बुने गए इस जातीय जाल में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी उलझ जायेंगे. लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो तेजस्वी यादव के पैरो तले जमीन खिसक गई. चुनाव नतीजों में राजद खाता खोलने को तरस गई. 2019 लोकसभा चुनाव में उसका एक भी सांसद प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया है.

चुनाव में आए इन चुनावी नतीजों से विपरित तेजस्वी यादव को अनुमान था कि राजद सहित महागठबंधन का लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन अच्छा होगा, लेकिन नतीजे तेजस्वी के अनुमान के बिल्कुल विपरित आए. तेजस्वी लोकसभा चुनाव के नतीजों से काफी निराश है. इसी कारण वो राजद के नेताओं के सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

गौरतलब है कि वर्तमान समय में बिहार की राजनीति में तेजस्वी विपक्ष के चेहरे के रूप में जाने जाते हैं. तेजस्वी यादव को उनके समर्थक बिहार का भावी मुख्यमंत्री कहते हैं. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी सूबे में वह विपक्ष का चेहरा रह चुके हैं. हालांकि जनता ने उनके दावों और वादों को चुनाव में नकार दिया था, लेकिन बिहार में विपक्ष के पास आज भी उनके मुकाबले का कोई चेहरा मौजूद नहीं है. आने वाले विधानसभा चुनाव में यह तय है कि विपक्ष का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे. विपक्ष का चेहरा होने के बावजूद सवाल उठ रहा है कि तेजस्वी विपक्ष की भूमिका क्यों नहीं निभा रहे हैं? मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में चमकी बुखार से 150 बच्चों की मौत हो चुकी है. लेकिन इतने बड़े मुद्दे पर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है.

तेजस्वी यादव के गायब होने का कारण कुछ राजनीति के जानकार यह बताते है कि तेजस्वी आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राजद को पुरी तरह से क्रंटोल में लेना चाहते है. वो यह नहीं चाहते कि जिस प्रकार लोकसभा चुनाव में उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने पार्टी के कई प्रत्याशियों का विरोध किया ऐसा वो आगे भी करे. तेजस्वी, तेजप्रताप के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते अनुशासनात्मक कारवाई चाहते है. लालु और राबड़ी परिवार में बिखराव होने की संभावना के चलते ऐसा करना नहीं चाहते हैं.

बता दें कि तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र से अपनी बहन मीसा भारती को टिकट नहीं देना चाहते थे. लेकिन तेजप्रताप ने लालु यादव और राबड़ी देवी के माध्यम से तेजस्वी यादव पर दबाव बनाकर मीसा को टिकट दिलवाया. तेजस्वी इस मामले को लेकर काफी नाराज बताए जा रहे हैं. तेजस्वी पाटलिपुत्र संसदीय सीट से राजद के किसी स्थानीय कार्यकर्ता को टिकट देना चाहते थे. इस टिकट को लेकर उनका मानना था कि मीसा को पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ाने पर उनपर परिवारवाद की राजनीति को बढावा देने के आरोप लगेंगे. तेजस्वी ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहते थे, लेकिन परिवार के दबाव में उनको मीसा को टिकट देना ही पड़ा. मीसा चुनाव लड़ी और कभी लालु यादव के खास रहे बीजेपी उम्मीदवार रामकृपाल यादव से हार गई. मीसा की हार राजद के साथ-साथ उनकी यादव जाति पर प्रभुत्व के दावे की भी हार थी.

अब सभी के जहन में यह सवाल है कि तेजस्वी अपनी जिम्मेदारी कब संभालेगें. राजद को बिहार में पुनः खड़ा करने के लिए तेजस्वी यादव का राजनीति के मैदान में आना जरुरी है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव है. जेडीयू, बीजेपी गठबंधन का गणित वैसे ही बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है, वहीं तेजस्वी यादव के मैदान से गायब होने के बाद राजद की मुसीबते ओर इजाफा हुआ है. अगर तेजस्वी और राजद ने पार्टी के भीतर चल रही इन उलझनों को जल्द समाप्त नहीं किया तो पार्टी के हालात ओर भी खराब होंगे यह तय है.

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