Politalks.News/Delhi/CentralPolitics. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी पार्टी के उम्मीदवार को लेकर हाल ही में बीती 15 जून को दिल्ली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में अनुमान के विपरीत कई पार्टियों ने दूरी बना ली. सबसे बड़ी बात यह कि जिन दलों ने इस बैठक में आना उचित नहीं समझा उनके ममता बनर्जी से सियासी सम्बंध बहुत अच्छे रहे हैं. अब इस बात को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं जोरों पर हैं. आपको बता दें, राष्ट्रपति चुनाव में साझा उम्मीदवार के नाम पर विचार करने के लिए ममता बनर्जी ने चिट्ठी लिख कर आठ मुख्यमंत्रियों और 22 पार्टियों के नेताओं को बुलाया था, लेकिन खुद ममता के अलावा कोई मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुआ. यहां तक कि दिल्ली में बैठक हुई इसके बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक ममता की बैठक में नहीं गए और अपनी पार्टी के किसी नेता को भी नहीं भेजा.
राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में वैसे तो 5 पार्टियों के नेता शामिल नहीं हुए लेकिन इनमें दो पार्टियों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा है. आम आदमी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेताओं के साथ ममता बनर्जी के बहुत अच्छे संबंध हैं. इसके बावजूद इन दोनों पार्टियों ने ममता की इस बैठक में अपना प्रतिनिधि नहीं भेजा. माना जा रहा है कि इन दोनों को कांग्रेस से समस्या है और इसी वजह से दोनों पार्टियों ने बैठक से दूरी बनाई. यह भी कहा जा रहा है कि शरद पवार और ममता बनर्जी अलग से इन पार्टियों से बात करेंगे.
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आपको बता दें, अब अगले हफ्ते 21 जून को मुंबई में एनसीपी सुप्रिमो शरद पवार विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ एक और बैठक करेंगे. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि मुंबई में होने वालीविपक्षी दलों की इस बैठक में इन पार्टियों के प्रतिनिधि शामिल हों. लेकिन इसके लिए भी शरद पवार और ममता बनर्जी को बहुत मेहनत करनी होगी. असल में आम आदमी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति को कांग्रेस से समस्या है. वे कांग्रेस के साथ मंच साझा करने से बच रहे हैं. उनको कांग्रेस के खिलाफ लड़ना है और कांग्रेस को भी उनके खिलाफ लड़ना है.
गौरतलब है कि इसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं और पंजाब के हाल के बाद अब इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी बड़ी चुनौती बन चुकी है. दोनों राज्यों में आप की राजनीति कांग्रेस का वोट काटने की है. आम आदमी पार्टी जितनी ताकत से लड़ेगी कांग्रेस को उतना ज्यादा नुकसान होगा और भाजपा की राह आसान होगी. इसी तरह अगले साल तेलंगाना विधानसभा में टीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होना है. ध्यान रहे कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश का विभाजन करके तेलंगाना राज्य बनवाया. इसलिए टीआरएस को हमेशा चिंता रहती है कि कभी भी कांग्रेस उठ खड़ी हो सकती है. उसे भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की चिंता रहती है. तभी दोनों पार्टियां कांग्रेस से दूरी बना रही हैं. इसके साथ ही इन दोनों को ही यह आशंका भी सता रही है कि अंत में कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने की स्थिति बन सकती है. ऐसे में वे किसी तटस्थ उम्मीदवार की भी मांग कर रहे हैं.
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इसके अलावा बात करें बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस की तो ममता बनर्जी की दिल्ली में बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में इन दोनों पार्टियों के नेता भी शामिल नहीं हुए थे. हालांकि विपक्ष के नेताओं को उम्मीद भी नहीं थी कि ये किसी विपक्षी बैठक का हिस्सा बनेंगे क्योंकि अघोषित रूप से ये दोनो पार्टियां भाजपा का साथ देती रहती हैं. तभी इन दोनों पार्टियों के विपक्षी बैठक में नहीं शामिल होने से भाजपा ने राहत की सांस ली है. यहां आपको बता दें, राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को अपना उम्मीदवार जिताने के लिए जितने वोट की कमी है उससे दोगुने वोट अकेले वाईएसआर कांग्रेस के पास हैं. इसलिए अगर सिर्फ वाईएसआर भी साथ दे तो भाजपा को दूसरी पार्टी से बात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
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यहां आपको बता दें कि वाईएसआर कांग्रेस किसी भी स्थिति में इस समय कांग्रेस या किसी अन्य विपक्ष के साथ दिखने की गलती नहीं कर सकती है क्योंकि उसके नेता और मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के ऊपर दर्जनों मुकदमे हैं और सीबीआई, आयकर विभाग व ईडी तीनों के पास उनके मामले लंबित हैं. ऐसे में जगन मोहन रेडी अभी जोखिम नहीं ले सकते हैं. इसलिए विपक्ष को उनकी बजाय चंद्रबाबू नायडू से संपर्क करना चाहिए. उनके पास ज्यादा वोट नहीं हैं लेकिन वे साथ दे सकते हैं. जहां तक बीजू जनता दल की बात है तो वह पारंपरिक रूप से भाजपा की सहयोगी रही है और नवीन पटनायक अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे हैं. बाद में भी भाजपा के साथ उनका तालमेल रहा. ओडिशा में भले भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी है लेकिन नवीन पटनायक की चुनौती कांग्रेस ही है. इसलिए वे कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते हैं.