‘चौधराहट’ बचाने के लिए सपा के साथ उतरे जयंत क्या फिर जीत पाएंगे जाट-मुस्लिम-गुर्जरों का विश्वास?

आगामी यूपी चुनाव में गठबंधन की राजनीति, रालोद का खिसकता वोटबैंक, चौधरी चरण सिंह के पोते और मुलायम सिंह के लड़के को आना पड़ा साथ, बार-बार पार्टियों का साथ बदलने से खिसका रालोद का वोट बैंक, क्या चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को संभाल पाएंगे जयंत? कभी कांग्रेस को टक्कर देकर सीएम बने थे चौधरी, तब से 2014 तक सत्ता का मजा लेता आया है चौधरी परिवार, लेकिन अब जीरो पर क्यों पहुंच गई है पार्टी!

क्या चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को संभाल पाएंगे जयंत?
क्या चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को संभाल पाएंगे जयंत?

Politalks.News/Uttarpradesh. उत्तरप्रदेश (Uttar pradesh Politics) चुनाव का घमासान तेज हो चला है. पश्चिमी यूपी में पूर्व दिग्गज मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh yadav) और अजीत सिंह (Ajit Sing) की अगली पीढ़ी साथ उतर रही है. पिछले मंगलवार को राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक चौधरी चरण सिंह (Choudhary Charan Sing) के पोते जयंत चौधरी ने मेरठ के दबथुवा में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ एक संयुक्त सभा को संबोधित किया. इस सभा में अखिलेश और जयंत ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया और दोनों पार्टियों ने इस सभा के जरिए एकजुटता दिखाई. तो यह सवाल उठा कि क्या जयंत चौधरी वेस्ट यूपी में परिवार की चौधराहट को कायम रख पाएंगे. 60 के दशक से इस इलाके में चौधरी परिवार की हनक बोलती थी.

बात करें इतिहास की तो साल 1989 में जिस बीजेपी के समर्थन से मुलायम और अजीत सिंह की पार्टी की सरकार बनी थी, 2022 में मुलायम और अजीत सिंह की नई पीढ़ी उसी बीजेपी को टक्कर देने की तैयारी कर रही है. अब ऐसा क्या हुआ है कि रालोद को सपा के साथ मैदान में उतरना पड़ रहा है? क्यों रालोद का वोट बैंक सिमटता गया? और क्या जयंत चौधरी अखिलेश यादव के साथ खड़े होकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी चौधराहट कायम रख पाएंगे? ऐसे कुछ सवालों का जवाब जानने की कोशिश हम करते हैं.

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चौधरी चरण सिंह ने विपक्ष को चखाया था सत्ता का स्वाद
उत्तरप्रदेश का सियासी इतिहास बताता है कि यूपी के साथ ही केंद्र में भी विपक्ष को सत्ता का स्वाद चखाने में चौधरी चरण सिंह की अहम भूमिका रही थी. साल 1967 में कांग्रेस तक को तोड़कर चौधरी चरण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. खासतौर पर पश्चिमी यूपी में रुतबा रखने वाले चौधरी चरण सिंह के परिवार की अगली पीढ़ी जयंत चौधरी अब प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए समाजवादी पार्टी के साथ एक मंच पर आ गई है.

कांग्रेस को चुनौती देकर बने थे मुख्यमंत्री

पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की हनक रहा करती थी. किसी जमाने में जब देश में जब हर राज्य में कांग्रेस पावर में थी, तब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को चौधरी चरण सिंह ने ही चुनौती दी थी. चौधरी साल 1967 में कांग्रेस को तोड़कर यूपी के सीएम बने थे. साल 1969 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी भारतीय क्रांति दल ने 98 सीटें जीतीं और वह दोबारा सीएम की कुर्सी तक पहुंचे. इमरजेंसी के बाद इंदिरा विरोध की लहर में बनी मिली जुली सरकार में उप प्रधानमंत्री और बाद में थोड़े समय के लिए ही सही प्रधानमंत्री की कुर्सी भी चरण सिंह ने संभाली. यूपी के साथ ही केंद्र में भी विपक्ष को सत्ता का स्वाद चखाने में चौधरी चरण सिंह का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों की बीच में बेहद सम्मान रहा है.

जिस व्यक्ति पर हाथ रख देते थे जीत हो जाती थी तय
सियासी जानकार बताते हैं कि बागपत, छपरौली जैसे तमाम विधानसभा चुनावों में चौधरी चरण सिंह जिस भी प्रत्याशी पर हाथ रखते थे, उसे वहां के लोग जीता देते थे. ऐसे चौधरी चरण सिंह की विरासत को उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह ने संभाला. ‘विरासत में मिली सियासत‘ को अजीत सिंह ने खूब भुनाया. लेकिन चौधरी अजीत सिंह के जीवित रहते हुए ही जाट समुदाय के बीच उनकी चौधराहट मंद पड़ने लगी थी. बीते लोकसभा चुनावों के बाद अब जो राजनीतिक हालात बने हैं, उन चलते ही यह कहा जा रहा है कि कभी वेस्ट यूपी की सियासत का सेंटर रहा चौधरी कुनबा सीटों के लिए दूसरों दलों के दरवाजे खुद खटखटाने को मजबूर है. जिसके चलते ही अब राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलाकर चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया है.

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चौधरी की पार्टी के हुए थे दो फाड़

यूपी के सियासी में चर्चा है कि, चौधराहट कायम रखने के लिए जयंत ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया है. अब देखना यह है कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का मिलाप कितना लंबा चलेगा? अखिलेश और जयंत के एक साथ आने से वेस्ट यूपी का वोटर भी क्या सपा-रालोद गठबंधन का साथ देगा? आपको याद दिला दें कि, साल 1987 में जब चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हुई तो पार्टी में दो फाड़ हो गई. तब भारतीय लोकदल के सूबे में 84 विधायक थे. यह संख्या बेटे अजीत सिंह और शिष्य मुलायम सिंह यादव की महत्वाकांक्षा में बंट गई. अजीत सिंह ने जनता दल ए बनाई और पाला बदलते हुए वर्ष 1989 में जनता दल का हिस्सा हो गए.

सत्ता में लगातार बना रहा चौधरी परिवार

अजीत सिंह की देश की सत्ता में हनक बनी रही और वह पहले वीपी सिंह और फिर नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. इसके बाद अजित सिंह साल 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और 2009 की कांग्रेस सरकार में भी केंद्रीय मंत्री बने रहे. अजीत सिंह की अगुवाई में विधानसभा में रालोद का श्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 में 16 सीट का रहा. तब अजीत सिंह का मुकाबला बीजेपी से था. 2009 में बीजेपी के साथ मिलकर उन्होंने 5 लोकसभा सीटें जीती थीं. 2012 में कांग्रेस के साथ मिल विधानसभा चुनाव लड़ा और 9 पर सिमट गए. अजीत सिंह के दुर्दिन शुरू हुए वर्ष 2014 में जब लोकसभा में खाता नहीं खुला.

बार-बार सहयोगी बदलने और मुजफ्फनगरपुर दंगों से खिसका वोट बैंक

रालोद का वोट बैंक क्यों सिमटता गया इसको लेकर सियासी जानकारों का कहना है कि बार-बार पार्टियों के साथ गठबंधन करने से वोट बैंक खिसकता गया. एक जमाने में पश्चिमी यूपी में जाट, गुर्जर और मुसलमान पहले एक साथ आरएलडी को वोट करते नजर आते थे. लेकिन 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों, गुर्जरों और मुसलमानों को अलग कर दिया. उस समय अखिलेश यादव की सपा सरकार थी. मुजफ्फरनगर दंगे से मुलायम और अजीत सिंह दोनों की पार्टियों को भारी नुकसान हुआ. 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद महज एक सीट जीत पाई थी. जबकि सपा 47 सीटों पर सिमट गई थी. लोकसभा चुनाव 2019 में रालोद, सपा-बसपा गठबंधन में शामिल थी. चुनाव में रालोद को एक भी सीट नहीं मिली, अजीत सिंह और जयंत चौधरी दोनों चुनाव हार गये.

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क्या चौधराहट कायम रख पाएंगे जयंत
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अब बात की जाए भविष्य की तो आगामी विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर 35 से 40 सीटों पर वेस्ट यूपी में चुनाव लड़ेंगे. बताया जा रहा है कि जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के बीच चुनाव लड़ने वाली सीटों पर समझौता गया है. जल्दी ही इसका खुलासा होगा कि चौधरी चरण सिंह द्वारा बनाया गया मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर व राजपूत (मजगर) का वोटबैंक रालोद -सपा गठबंधन को कितना आशीर्वाद देगा? इसी से इस सवाल का भी जवाब मिलेगा कि क्या जयंत चौधरी अखिलेश यादव के साथ खड़े होकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी चौधराहट कायम रख पाएंगे?

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