Politalks.News/UttarPradesh. उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) के लिए आगामी चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है. पिछले करीब 10 साल से सत्ता से दूर हैं. यूपी की सत्ता हासिल करने के लिए बसपा के साथ सपा, बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) भी अपनी जोर आजमाइश में लगी है. ऐसे में बसपा (BSP) प्रमुख मायावती (Mayawati) ये अच्छी तरह जानती है कि उनके लिए आसान नहीं है. लेकिन आगामी चुनाव में कांग्रेस और बसपा के लिए जो सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति है वो है पार्टी से टूटते चेहरे. मुबारकपुर (Mubarakpur) से विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली (Gudu Jamali) ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है. जमाली के इस्तीफे ने पार्टी के रणनीतिकारों को परेशान कर दिया है तो पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि लड़की का केस नहीं सुलटवाया इसलिए आलम ने इस्तीफा दिया है. एक के बाद एक बसपा के नेता सपा का दामन थाम रहे हैं तो कुछ बीजेपी की नाव में सवार हो रहे हैं. बहुजन समाज पार्टी और मायावती अगर 2022 विधानसभा चुनाव में पिछड़ जाती है तो फिर उसके लिए फिर से उठना बहुत ही मुश्किल होगा.
बसपा के एक के बाद एक विधयकों के टूट कर जाने के बाद मायावती काफी चिंतित है. क्योंकि मायावती ये अच्छी तरह जानती है कि मुबारकपुर सीट ऐसे सीट है जो 1996 से बसपा का अभेद्य किला है. लेकिन अब मुबारकपुर सीट को बचाना बसपा के लिए चिंता का विषय बन चुका है. इस सीट से बसपा विधायक और बसपा के विधानमंडल दल के नेता शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने बसपा से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपने इस्तीफे में साफ़ कहा कि ’21 नवंबर को आपके साथ बैठक में, मुझे लगा कि आप पार्टी के प्रति मेरी भक्ति और ईमानदारी के बावजूद आप संतुष्ट नहीं है. मैं अब पार्टी पर बोझ नहीं बनना चाहता. अगर मेरा नेता मुझसे या मेरे काम से संतुष्ट नहीं है तो मैं अपना इस्तीफा देता हूं.
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1996 से लेकर अभी तक प्रदेश में चाहे जिसकी भी सरकार रही हो लेकिन, आजमगढ़ जिले की मुबारकपुर सीट हमेशा बहुजन समाज पार्टी की झोली में ही जाती रही है. लेकिन शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के इस्तीफे के बाद बसपा का ये अभेद्य किला टूटता सा नजर आ रहा है. इससे पहले पार्टी की तरफ से कैंडिडेट भले ही बदलते रहे लेकिन, यह सीट हमेशा बसपा के खाते में जाती रही. पार्टी छोड़ने के बाद अभी तक जमाली ने किसी अन्य पार्टी में जाने के संकेत ना दिए हो लेकिन सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि अगर जमाली सपा के साथ जाते हैं तो फिर बसपा को यहां मुंह की खानी पड़ेगी.
2012 में सपा की लहर होने का बावजूद भी गुड्डू जमाली ने यहां से जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2017 की भाजपा लहर में भी जमाली ने अपना परचम लहराया था. बसपा का भले ही इस सीट पर पिछले 25 सालों से कब्जा रहा है लेकिन, उसकी स्थिति यहां कोई ख़ास मजबूत नहीं थी. दो दलों के बीच जीत का अंतर कुछ खास बड़ा नहीं था. फिलहाल जमाली ने बसपा छोड़ दी है ऐसे में जीत का सिलसिला कायम रखना थदो मुश्किल होगा. आपको बता दें कि गुड्डू जमाली को मायवती ने भरोसा जताते हुए कुछ ही दिन पहले विधानमण्डल दल का नेता बनाया था. नेता लालजी वर्मा को पार्टी से निष्काषित करने के बाद उन्हें ये कुर्सी दी गयी थी. अब ऐसे में बसपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अपने गढ़ को बचने की बन गई है.
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लड़की का केस खत्म नहीं करवाया तो दे दिया इस्तीफा- मायावती
विधायक दल के नेता गुड्डू जमाली के इस्तीफे के बाद मायावती ने कहा कि, ‘गुड्डू जमाली पर एक लडक़ी ने केस कर दिया था. मैंने वो केस खत्म नहीं कराया इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी है. इनकी कंपनी में काम करने वाली एक लड़की ने इनके चरित्र पर गंभीर आरोप लगाकर पुलिस में शिकायत की है. इसकी जांच हो रही है. गुड्डू चाहते थे कि मैं यह केस खत्म करवा दूं. मैंने उन्हें अदालत से इंसाफ पाने की सलाह दी थी. तब उन्होंने कहा था कि अगर मैं केस नहीं खत्म करवाऊंगी तो वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे. उनके इस्तीफे की वजह इसके अलावा कुछ नहीं है’.
बात करें पिछले 25 सालों कि तो 1996 से लेकर अभी तक बसपा के इस मजबूत किले को किसी भी पार्टी की लहर से कोई फर्क नहीं पड़ा. कैंडिडेट भले ही बदलते रहे लेकिन, सीट हमेशा बसपा के खाते में जाती रही. पहली बार इस सीट पर बसपा के यशवंत सिंह ने 1996 में जीत दर्ज की थी. 2002 के चुनाव में यशवंत सिंह ने पार्टी छोड़ दी. वे हार गये. विधायकी बसपा के पास रही और जीते चन्द्रदेव राम यादव. 2007 में चन्द्रदेव फिर से बसपा से ही विधायक बने. इसके बाद 2012 और 2017 में गुड्डू जमाली ने बसपा की और से जीत दर्ज की थी.
ऐसे में बसपा की अगली रणनीति क्या होगी इस पर मायावती और अन्य पार्टी दिग्गज चिंतन कर रहे हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने अभी कुछ ही दिन पूर्व प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए पार्टी पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाई थी. इस बैठक के सहारे मायावती ने आगामी चुनाव के लिए रोडमैप भी तैयार किया. साथ ही पार्टी कार्यक्रताओं को एकजुट होकर ब्राह्मणों के साथ साथ दलितों को भी रिझाने की कोशिश कर रही है.