Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान की राजनीति में जारी घमासान में कई चेहरे चर्चा का केन्द्र बन हुए हैं. मसलन, अशोक गहलोत और सचिन पायलट, गजेंद्रसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे. नाम तो और भी हैं, लेकिन राजनीति के वर्तमान समय में यही नाम खास हो गए हैं. आज सुबह कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ गहलोत सरकार को अस्थिर करने की साजिश के आरोप लगाए तो बीजेपी को बहुत तकलीफ हुई. होनी भी चाहिए, अगर वो गलत महसूस कर रहे हैं तो, सो प्रेस कान्फ्रेंस बुलाई गई. प्रेस वार्ता को तीन बड़े बीजेपी नेताओं ने संबाधित किया. पहले बोले प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां, फिर बोले नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और लास्ट में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने सम्बोधित किया.
इस दौरान तीनों बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस को खूब आड़े हाथों लिया, जितना हो सकता था, लिया. जरूरी भी था, आखिर कांग्रेस ने भाजपा के चरित्र के पर सवालिया निशान जो लगा दिया, सो सबके सब खुलकर बोले और गजेंद्रसिंह का बचाव किया और उन पर लगे तमाम आरोपों का खंडन किया. नैतिकता से जोड़ा, कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा बताया और भी बहुत कुछ कहा गया. यहां बता दें, गुरुवार को वायरल हुए कुछ ऑडियो टेप्स के आधार पर कांग्रेस ने बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह शेखावत पर कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा के साथ मिलकर राजस्थान की लोकतांत्रिक सरकार को गिराने का गम्भीर आरोप लगाया है.
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कांग्रेस के आरोपों का खंडन करने के लिए इतनी बेहतरीन प्रेसवार्ता इन तीनों नेताओं ने की. अब सवाल उठता है कि ऐसी ही प्रेसवार्ता गुरुवार को भी होनी चाहिए थी, लेकिन नहीं की गई. जब पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे पर आरोप लगे कि वो अशोक गहलोत सरकार का बचाव कर रही हैं, तब बीजेपी के आत्मसम्मान को कोई ठेस नहीं पहुंचीं. जबकि वसुंधरा राजे भी दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं. एक लाइन में बोलें तो सवाल उठता है आज गजेंद्र सिंह शेखावत पर आरोप लगे तो बीजेपी ने प्रेस वार्ता कर ली, एक दिन पहले ही वसुंधरा राजे पर सवाल उठाए गए तो चुप्पी साध ली गई, बल्कि कहा गया कि यह हनुमान बेनीवाल के व्यक्तिगत विचार हैं. तो आप आज भी कह सकते थे कि यह कांग्रेस के व्यक्तिगत विचार हैं, इतनी बड़ी प्रेस कांफ्रेंस की कहां जरूरत थी.
खैर, चलो कोई बात नहीं, राजनीति के स्तर के हम नहीं हैं, इसलिए हर बात हम समझा भी नहीं सकते हैं. लेकिन फिर भी सवाल तो उठता है, कल तो सतीश पूनियां जी आप ही कह रहे थे कि वसुंधरा जी हमारी नेता हैं, तो फिर उनके लिए प्रेस वार्ता क्यूं नहीं की गई, और आज जब गजेंद्र सिंह शेखावत के लिए प्रेस वार्ता की गई तो इसमें आपकी नेता यानी वसुंधरा राजे क्यों नहीं थी. आखिर वो भी तो भाजपा की दो बार मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ वर्तमान में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.
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ऐसा नहीं होता कि अंतर्मन की सारी आंखें ईश्वर ने सिर्फ राजनीतिज्ञों को ही दे रखी हों, आंखे सबके पास है और यह पब्लिक है यह सब जानती है. अगर बीजेपी कहती है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का झगड़ा कांग्रेस का है और भाजपा का इससे कोई लेना देना नहीं, तो श्रीमानजी ऐसा ही झगड़ा तो मध्य प्रदेश में था. फिर क्या हुआ, उनके झगड़े के बीच का फायदा उठाकर ही तो आपने वहां सरकार बना ली.
सिद्धांत, नैतिकता, आचरण, देश और जनता, इतने सारे खूबसूरत शब्द हैं. इन्हीं सारे खूबसूरत शब्दों की धज्जियां उड़ रही हैं. कभी इस पार्टी के नाम पर तो कभी उस पार्टी के नाम पर. कोई बात नहीं, मजबूर हैं वो लोग जो लोकतंत्र के मालिक हैं, यानी मतदाता. मालिक हैं इसलिए ही मजबूर हैं. वहीं लोकतंत्र के सारे नौकर तो ऐशो ओ आराम की जिंदगी जी रहे हैं, यानी लोकतंत्र को चलाने वाले नेता. सारी सुविधाएं लोकतंत्र के नौकरों के लिए ही हैं. जो भी भुगत रही है, वो बेचारी वही जनता है, लोकतंत्र की मालिक जो ठहरी.
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गुलाबचंद कटारिया साहब, आज जब आपके मुंह से प्रेस वार्ता में सुना कि ऐसी स्थितियों में लोगों का राजनीति से भरोसा ही उठ जाएगा, तो बहुत खुशी हुई. लेकिन भरोसा तो उठ ही चुका है, कभी इस पार्टी के नाम से तो कभी उस पार्टी के नाम से. कभी इस नेता के नाम से तो कभी उस नेता के नाम से. इतनी महान बातें करके आपने दिल जीत लिया. लेकिन सवाल फिर भी खड़ा है कि आप जिसकी सरकार में हर बार मंत्री रहे, जिनका आप कभी गुणगाण करते थे, वो वसुंधरा राजे आज की प्रेस वार्ता में क्यूं नहीं थी और कल जब उसी वसुंधरा राजे पर आरोप लगे थे, तो आपने प्रेसवार्ता क्यूं नहीं बुलाई थी?
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