देश में महंगाई है ही कहां, आम आदमी सुकून से खा रहा है दो वक़्त का खाना- सत्य या चिंता का विषय?

क्या इस देश में महंगाई है? सवाल बहुत बड़ा है लेकिन संसद में केंद्रीय वित्तमंत्री ने कहा- विपक्ष की तरफ से उठाई गई बातों में महंगाई के आंकड़ों के साथ चिंता के बजाय उसके राजनीतिक पक्ष की चर्चा ज्यादा थी, इसीलिए मेरा जवाब भी मैं पॉलिटिकली देने की कर रही हूं कोशिश, तो बोले सांसद- हमारे प्रधानमंत्री जी 80 करोड़ गरीबों को Free फंड का खाना दे रहे हैं, क्या प्रधानमंत्री को बधाई नहीं देना चाहिए?

दो वक़्त का मिल तो रहा है खाना, फिर कहां है महंगाई?
दो वक़्त का मिल तो रहा है खाना, फिर कहां है महंगाई?

Politalks.News/PriceInflation. देशभर की आम जनता इन दिनों महंगाई से जबरदस्त त्रस्त है और ये तो एक आम आदमी ही जानता है कि आखिर किस तरह वह सिमित कमाई में अपने घर का खर्चा चला रहा है. क्योंकि कोरोना महामारी की मार से सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं. हम ये भी जानते हैं कि देश में बेरोजगारी किस कदर बढ़ रही है और कोरोना के कारण कितने लोगों की अब तक नौकरी जा चुकी है इससे भी हम सब वाकिफ हैं लेकिन इसी महंगाई के बीच अगर कोई ये कहे कि, ‘देश में महंगाई है कहां, लोग दोनों टाइम भर पेट खाना खा रहे हैं, सरकार फ्री फंड का लोगों को खाना दे रही है तो फिर महंगाई हैं कहां…’ अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ऐसा कौन कह रहा है? इसका जवाब भी आपको हम दिए देते हैं. ये बयान हैं केंद्रीय मंत्रियों एवं भाजपा सांसदों के. यही नहीं देश के सर्वोच्च पंचायत जिसे संसद कहा जाता है वहां विपक्ष सरकार से महंगाई के मुद्दों पर सवाल पूछ रहा है और सत्ता पक्ष के सांसद एवं मंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुणगान के पीछे महंगाई को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं.

आपको बता दें कि बीती 18 जुलाई से लेकर 31 जुलाई तक लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रत्येक दिन सदन की कार्रवाई सुचारु रूप से नहीं चली. विपक्ष जहां लगातार बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, अग्निपथ योजना सहित कई मुद्दों पर सदन में चर्चा करना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. करीब 12 दिन बीत जाने के बाद सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बनी और सदन में महंगाई के मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई. सोमवार को विपक्ष ने जहां महंगाई से जुड़े मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की तो वहीं सत्ता पक्ष के सांसदों ने इस तरह के बयान दिए जैसे की महंगाई है ही नहीं. पुरे देश में जहां फ्री की रेवड़ी ना बांटने को लेकर बहस छिड़ी हुई है तो वहीं सदन में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे कहते हैं कि, ‘हमारे प्रधानमंत्री जी 80 करोड़ गरीबों को Free फंड का खाना दे रहे हैं, क्या प्रधानमंत्री को बधाई नहीं देना चाहिए?’

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वहीं सदन की चर्चा में भाग लेते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने शुरूआती भाषण में कहा कि, विपक्ष की तरफ से उठाई गई बातों में महंगाई के आंकड़ों के साथ चिंता के बजाय उसके राजनीतिक पक्ष की चर्चा ज्यादा थी और ‘ इसीलिए मेरा जवाब भी मैं पॉलिटिकली देने की कोशिश कर रही हूं …राजनीतिक भाषण सुनना ही पड़ेगा.’ अब कोई ये बताए कि विपक्ष चाहे कुछ भी कहे या करे लेकिन जनता की मुश्किलों का समाधान निकालना सरकार का काम है और सरकार ही इस तरह की बयानबाजी करे तो आम आदमी को सोचना जरूर पड़ेगा. सियासी गलियारों में तो इस बात की भी चर्चा है कि केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बयान में कहीं भी ये नहीं कहा कि देश में महंगाई है. सीतारमण का पूरा भाषण या तो विपक्ष को घेरने में या फिर केंद्र की उपलब्धि गिनाने में ही निकल गया.

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दूसरी तरफ एक मार्मिक खबर उत्तरप्रदेश के कन्नौज से आ रही है जहां एक स्कूल की पहली कक्षा में पड़ने वाली बच्ची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था और जो पत्र लिखा है उसमें सिर्फ एक आंकड़ा और दो चिंताएं थीं. छह साल की कृति दुबे ने बताया कि दुकानदार ने उसे मैगी का छोटा पैकेट नहीं दिया क्योंकि उसके पास सिर्फ पांच रुपए थे और यह पैकेट अब सात रुपए का हो गया है. उसने यह भी लिखा कि आपने पेंसिल और रबर भी महंगे कर दिए हैं. मेरी मां पेंसिल मांगने पर मारती है, मैं क्या करूं, दूसरे बच्चे मेरी पेंसिल चोरी कर लेते हैं.’ छोटी बच्ची कृति के इस खत में सबकुछ है जो एक आम आदमी समझ सकता है लेकिन वित्तमंत्री को इस पत्र की खबर मिली या नहीं, यह बड़ा सवाल है क्योंकि जवाब का इंतजार कर रही कृति को वित्तमंत्री से भी इसका जवाब नहीं मिला.

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वहीं इधर मंगलवार को भी सदन में बहस के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि, ‘तमाम मुसीबतों के बावजूद देश में महंगाई का आंकड़ा 7% से नीचे रखने में सरकार कामयाब रही है.’ इस दौरान पुराने आंकड़ों का जिक्र करते हुए सीतारमण ने कहा कि, ‘यूपीए सरकार के दौरान पूरे 22 महीने महंगाई का आंकड़ा 9% से ऊपर रहा औऱ नौ महीने तो ऐसे रहे जब महंगाई 10% से ऊपर यानी दो अंकों में पहुंच चुकी थी.’ वहीं 2020 से और खासकर कोरोना के बाद तरक्की की रफ्तार पर जिस तरह से ब्रेक लगा है उसे देखकर बहुत से लोग यह चिंता जताने लगे हैं कि कहीं भारत स्थिति में तो नहीं जा रहा है जहां आर्थिक गतिविधियां धीमी हो जाती हैं या रुक जाती हैं और महंगाई काफी तेज़ी से बढ़ती है. जी हाँ महंगाई चरम पर है और कारोबार कमज़ोर. कारोबार कमजोर है तो उसका सीधा असर आम आदमी की कमाई पर भी पड़ेगा और बढ़ती महंगाई तेजी से आगे बढ़ती ही जा रही है.

सदन में चर्चा के दौरान भारत में मंदी के आने के सभी दावों को नकारते हुए वित्त मंत्री निरमला सीतारमण ने कहा कि, ‘भारत में ऐसा होने या मंदी आने का कोई डर नहीं है. कोरोना की मार पुरे विश्व ने झेली. मुश्किल दौर में पूरा देश एक होकर खड़ा हुआ. यही कारण है कि आज हम शेष दुनिया के मुकाबले मजबूत स्थिति में हैं. सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के अनेक कदमों से हमारे हालात कई देशों से अच्छे हैं. ऐसे में किसी भी कीमत पर भारत के मंदी में जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.’ खैर वित्तमंत्री का बयान उसी बजट की तरह था जो देश के आम आदमी की समझ से कौसो दूर था. सोमवार को महंगाई के मुद्दे पर चर्चा के दौरान विपक्ष इतना बोखला गया कि उसने सदन से बायकॉट कर दिया क्योंकि सदन में महंगाई के मुद्दे पर जवाब कम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामों का ज्यादा बखान हो रहा था. क्योंकि सदन में बढ़ती महंगाई से निजात पाने के मसलों पर चर्चा से ज्यादा इस बात पर जोर दिया जा रहा था कि देश में महंगाई है ही कहां.

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इस तरह के बयानों को अगर देखा और सुना जाए तो फिल्म सिंघम के क्लाइमेक्स का एक शॉट सामने आ जाता है. जिसमें विलेन जब DGP से सिंघम को रोकने की बात कहता है तो DGP कहता है कि, ‘DGP यहां है ही कहां वो तो अपने घर पर बैठा है, दिन भर आपकी सेवा के बाद अब वो घर पर आराम कर रहा है उसका BP भी हाई है.’ ठीक उसी प्रकार सरकार भी जनता से कह रही है कि महंगाई है कहां, आम आदमी चैन से दोनों वक़्त का खाना खा रहा है तो फिर महंगाई हैं कहां, गरीब को प्रधानमंत्री योजना के तहत ‘फ्री फंड’ का खाना मिल रहा है तो फिर महंगाई है कहां.

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