भोलेनाथ की नगरी वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस को काशी भी कहा जाता है. ये दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है. यहां राजनीति न के बराबर है लेकिन इसके बाद भी यह संसदीय सीट देश को दो प्रधानमंत्री देने वाला इकलौता क्षेत्र है. देश के 8वें चंद्रशेखर यहीं से जीतकर निकले थे. वे 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद 2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी ने यहीं से निकलकर प्रधानमंत्री पद संभाला. नरेंद्र मोदी 14वें और स्वतंत्र भारत में जन्में देश के पहले प्रधानमंत्री हैं. नरेंद्र दामोदर दास मोदी तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं और लगातार तीसरी जीत की ओर अग्रसर हैं. हालांकि यहां कवायत जीत की नहीं, बल्कि वोट मार्जिन की है.
वैसे देखा जाए तो वाराणसी बीजेपी के लिए एक सुरक्षित सीट है. 2004 को छोड़ दिया जाए तो 1991 से लगातार अब तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. बीजेपी ने 1991, 1996, 1998 और 1999 में यहां लगातार चार बार जीत दर्ज की. 2004 में कांग्रेस के डॉ.राजेश कुमार मिश्रा ने इस तिलस्म को जीत हासिल करते हुए तोड़ा था लेकिन 2009 में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी ने फिर से इस सीट पर कमल खिला दिया. 2014 में नरेंद्र मोदी इसी सुरक्षित सीट से जीत हासिल करते हुए पहली बार पीएम पद पर आसीन हुए.
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नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को 371,784 वोटों के भारी अंतर से हराया था. तब नरेंद्र मोदी ने को 581,022 वोट मिले थे जबकि अरविंद केजरीवाल को 209,238 वोट. तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय को महज 75,614 वोट ही मिले थे.
2019 में नरेंद्र मोदी दूसरी बार सांसद बने. इस बार उन्होंने 2014 के मुकाबले और बड़ी जीत दर्ज की. पीएम मोदी ने सपा की शालिनी यादव को 479,505 वोटों हराया था. नरेंद्र मोदी को 674,664 जबकि सपा उम्मीदवार को 195,159 वोट मिले थे जबकि तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय को 152,548 वोट मिले.
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2019 में वाराणसी से 27 प्रत्याशी आम चुनाव में थे. उससे पहले 2014 में 43 उम्मीदवार. इस बार सिर्फ 8. इसका सीधा फायदा वोट के बंटवारे में होगा. जो वोट पहले टुकड़े टुकड़े हो जाते थे वो इस बार थोक भाव में एक किसी पार्टी के हिस्से हो जाएंगे.
मोदी के खिलाफ कौन है मैदान में
पीएम मोदी के अलावा जो सात लोग इस चुनाव मैदान में हैं उनमें सबसे बड़ा नाम है अजय राय का. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और पांच बार के विधायक हैं. हालांकि वे पिछला चुनाव हार चुके हैं. उनके बाद नाम आता है बसपा के अथर जमाल लारी का. बुनकरों के नेता हैं, कई चुनाव लड़ चुके हैं. फिर अपना दल कमेरावादी के गगन प्रकाश यादव का नाम आता है. वो पीडीएम के प्रत्याशी हैं और उनकी पार्टी पटेलों में दबदबा रखती है. युग तुलसी पार्टी के कोली शेट्टी दक्षिण भारत से हैं. काशी में दक्षिण भारतीयों की ठीक ठीक आबादी है. दो निर्दलीय प्रत्याशी संजय कुमार तिवारी और दिनेश यादव हैं. तिवारी सीए हैं और सोशल वर्कर हैं. यादव तीन बार के पार्षद. एक तरफ कमल है और दूसरी तरफ मुकाबले में हाथ, हाथी, लिफाफा, रोड रोलर, बांसुरी और डंबल है.
वाराणसी का जातिगत समीकरण
वाराणसी संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र- वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट, सेवापुरी और रोहनिया शामिल है. वाराणसी में कुल 18,56,791 मतदाता है. इनमें पुरुष मतदाता 8,29,560 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 10,27,113 है, वहीं थर्ड जेंडर वोटर्स 118 हैं. वाराणसी सीट ब्राह्मण-भूमिहार बहुल है. यहां तीन लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख भूमिहार, 2 लाख से ज्यादा कुर्मी, 2 लाख से ज्यादा वैश्य, 3 लाख से ज्यादा गैर यादव ओबीसी, एक लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति, तीन लाख मुस्लिम और एक लाख यादव वोटर्स हैं.
वाराणसी का सियासी गणित
वाराणसी लोकसभा से नरेंद्र मोदी की जीत निश्चित है. उम्मीदवार कम होने से जीत का मार्जिन बढ़ने की पूरी पूरी संभावना है. मोदी और बीजेपी की कोशिश है कि जीत का मार्जिन कम से कम 6 लाख वोट रखा जाए. इससे वाराणसी सीट पर मोदी और बीजेपी की साख पहले से कहीं अधिक बढ़ेगी, जिसका फायदा आगामी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को होगा. मोदी फिलहाल 73 वर्ष के हैं. एक तरह से माना जाए तो यह उनका आखिरी चुनाव है. ऐसे में आगामी प्रधानमंत्री के लिए वाराणसी एक सुरक्षित सीट का बनना तय है.