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उत्तराखंड की अल्मोड़ा लोकसभा सीट इन दिनों खासी चर्चा में है. वजह है- इस सीट पर अजय टम्टा और प्रदीप टम्टा का एक बार फिर से आमने-सामने होना. यह सीट अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. दोनों के बीच यह तीसरा मुकाबला है और दोनों एक-दूसरे को एक-एक बार पटखनी दे चुके हैं. वर्तमान में अजय टम्टा यहां से मौजूदा बीजेपी सांसद हैं.

बीजेपी ने मौजूदा सांसद पर ही विश्वास जताते हुए उपर फिर से दांव खेला है. उनके सामने कांग्रेस ने प्रदीप टम्टा को आगे किया है. गौर करने वाली बात यह है कि प्रदीप टम्टा वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं और अभी उनका तीन साल का कार्यकाल शेष है. इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें लोकसभा की चुनावी जंग में अल्मोड़ा सीट से लड़ाने का दांव खेला. अगर प्रदीप टम्टा यानि कांग्रेस इस सीट पर जीतती है तो राज्यसभा सीट से हाथ धोना होगा, यह पक्का है. उसके बाद भी कांग्रेस ने यह जोखिम उठाया है.

बहरहाल, जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा न उतर पाने की वजह से अजय टम्टा को स्थानीय जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. ऐसे में कांग्रेस द्वारा प्रदीप टम्टा पर खेला गया दांव अजय टम्टा को भारी पड़ता दिखाई दे रहा है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद प्रदीप टम्टा बेहद कम वोटों से अजय टम्टा से हारे थे. इस बार फिर से दोनों टम्टा के मैदान में उतरने से मुकाबला पहले से कहीं अधिक रोचक हो चला है.

बात करें अजय टम्टा की तो वह केंद्र सरकार में राज्य से इकलौते मंत्री हैं. केंद्र में कपड़ा राज्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जनता से कई वादे किए, लेकिन वादों पर खरे नहीं उतर पाए. बरहाल, अजय टम्टा और प्रदीप टम्टा अल्मोड़ा सीट पर ही तीसरी बार आमने-सामने हैं और एक-एक बार एक दूसरे को हरा चुके हैं. 2009 में दोनों के बीच पहली बार हुए मुकाबले में प्रदीप टम्टा जीते थे जबकि 2014 में अजय टम्पा ने जीत दर्ज कर पिछली हार का हिसाब पूरा कर लिया.

इस सीत से जीत का मतत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि दोनों टम्पा में से जो भी जीतेगा, उसका राजनीतिक कद पार्टी में बढ़ना तय है. अगर अजय टम्टा जीतते हैं तो उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के अगले चहेरे में शामिल हो जाएंगे. अगर प्रदीप टम्टा जीतते हैं तो प्रदेश कांग्रेस में प्रमुख दलित चेहरा बनकर उभरेंगे. स्थानीय लोगों की मानें तो अजय टम्पा चुनावी दंगल में फिर से मोदी लहर में तर जाने के लिए आश्वस्त हैं.

वहीं प्रदीप टम्पा केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद प्रदेश में विकास न होने को मुद्दा बना रहे हैं. यहां नोटा भी चुनावी परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने ‘नोटा’ का सबसे अधिक इस्तेमाल किया था. यहां 15 हजार से अधिक नोटा वोट पड़े थे. इस बार भी नोटा का उपयोग ज्यादा हो, इसकी पूरी संभावना है. प्रदीप टम्टा को लगता है कि मतदाता जितना ज्यादा नोटा का प्रयोग करेंगे, वह सत्ता विरोधी रुझान को दर्शाएगा, जो कि उनके पक्ष में ही जाएगा.

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