पॉलिटॉक्स न्यूज. महाराष्ट्र सरकार के गठन को 6 महीने भी पूरे नहीं हुए और यहां संवैधानिक संकट पैदा होते दिख रहा है. इस संवैधानिक संकट के चलते सीएम उद्धव ठाकरे की कुर्सी तक जा सकती है और जिस तरह राजभवन में विपक्ष के नेताओं की आवाजाही हो रही है, उसे देखते हुए ऐसा होने की संभावनाओं से इनकार तो नहीं किया जा सकता. ऐसा होना संभव भी है क्योंकि कोरोना संकट के चलते आपसी बातचीत का दौर करीब करीब खत्म सा है. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों के मन में एक दबी हुई बात निकल कर सामने आ रही है कि कहीं बीजेपी महाराष्ट्र में भी ऑपरेशन लोट्स के जरिए कमल खिलाने की तैयारी तो नहीं कर रही है?
महाराष्ट्र में मौजूदा घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ़ दिख रहा है कि लॉकडाउन की आड़ में केंद्र सरकार और बीजेपी की ओर से महाराष्ट्र को ज़बरन संवैधानिक संकट में धकेलने की कोशिश की जा रही है. यहां सहज तर्कों को ताक पर रखकर बीजेपी की ओर से ये ढोल-मजीरे भी बजाए जा रहे हैं कि उद्धव ठाकरे एक महीने से ज्यादा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह सकते. इसके पीछे भी एक खेल चल रहा है और अम्पायर बने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी कोई डिसीजन ले नहीं पा रहे हैं. माना जा रहा है कि उनकी अंगुलियां केवल और केवल केंद्रीय आलाकमान ने बांध रखी है.
दरअसल, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने हुए आज पूरे 5 महीने हो चुके हैं. संवैधानिक नियमों के अनुसार, शपथ ग्रहण से 6 महीनों के अंदर उन्हें विधायक या फिर विधान परिषद के जरिए विधानसभा में पहुंचना होगा. 24 अप्रैल को विधान परिषद की 9 सीटें खाली हो चुकी हैं और इसी के भरोसे उद्धव ठाकरे और महाविकास अघाड़ी गठबंधन को उम्मीद थी कि वे आसानी से परिषद के सदस्य बनकर सत्ता की बागड़ौर संभाले रहेंगे. लेकिन कोरोना संकट के चलते फिलहाल इन सीटों पर होने वाले चुनावों पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी है. अगर उद्धव ठाकरे के मन को टटोला जाए तो उनकी इच्छा विधायक बनने की है लेकिन वो भी फिलहाल हो पाना नामुमकिन है और इधर 28 मई तक किसी भी चुनाव के न होने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद पर बने रहना उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल है.
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बता दें, उद्धव मंत्रिमंडल की सोमवार को हुई बैठक में एक बार फिर पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि उद्धव ठाकरे राज्य में कोरोना संकट का सामना कर रहे हैं. यह संकट लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसी परिस्थिति में राज्य में की राजनीतिक अस्थिरता नहीं आनी चाहिए. इसलिए राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में विधान परिषद की रिक्त एक जगह के लिए उद्धव को मनोनीत करने की सिफारिश की जाती है. साथ ही, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से निवेदन किया गया है कि वह इस संबंध में शीघ्र कदम उठाएं. यह भी बता दें, कि इससे पहले नौ अप्रैल को भी उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास भेजा गया था.
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बने रहने के लिए रास्ता केवल एक ही बचता है कि उन्हें राज्यपाल द्वारा मनोनीत की जाने वाली दो सीटों के कोटे से विधायक मनोनीत कर दिया जाए. राज्यपाल कोटे से कला और सामाजिक क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वाले लोगों का मनोनयन होता है. इसके पीछे यह तर्क भी दिया गया कि उद्धव ठाकरे एक कुशल फोटोग्राफर हैं और उनकी फ़ोटोग्राफ्स की प्रदर्शनियां भी हुई हैं. उनकी कुछ किताबें भी प्रकाशित हुई हैं और वे ‘सामना‘ में लेख भी लिखते रहते हैं. लिहाज़ा कला के कोटे से उन्हें विधायक मनोनीत किया जाना चाहिए. हालांकि इन दोनों सीटों पर मौजूद सदस्यों का कार्यकाल जून में समाप्त हो रहा है लेकिन राज्यपाल के निर्देशों से एक महीने पहले भी कार्यकाल समाप्त किया जा सकता है.
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हालांकि प्रक्रिया इतनी जटिल नहीं है लेकिन इसके बाद भी राज्यपाल ने इस बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया, जो कि उद्धव सरकार की चिन्ता का बड़ा कारण है. जबकि महाराष्ट्र कैबिनेट दो बार इस बारे में गवर्नर को संज्ञान दे चुकी है. इसके विपरीत राजभवन में विरोधी पक्ष के नेताओं की सरगर्मियां अचानक से बढ़ने लगी है. वजह है- हाईकोर्ट ने इस मामले में आखिरी फैसला राज्यपाल पर छोड़ा है. इन गतिविधियों पर राकंपा प्रमुख शरद पवार और राज्यसभा सांसद संजय राउत सहित कई नेताओं ने टिप्पणियां भी की और आशंका जताई कि क्या जानबूझकर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का खेल खेला जा रहा है?
अगर किसी भी स्थिति में उद्धव ठाकरे किसी भी तरह से विधान परिषद के सदस्य नहीं बन पाते तो ये भी राज्यपाल के स्वविवेक पर निर्भर करता है कि वे आगे क्या निर्णय लेते हैं. वे चाहें तो उद्धव ठाकरे को मनोनित कर प्रदेश को फिर से संवैधानिक प्रक्रिया में धकेलने से बचा सकते हैं या तब तक निर्विघ्न ढंग से मुख्यमंत्री बना रहने दें जब तक कि खाली सीटों के लिए चुनाव सम्पन्न नहीं हो जाते या फिर 27 मई के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लें और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का आदेश दें जैसा कि मध्य प्रदेश में गवर्नर लाल जी टंडन ने दिया था. बता दें, सिर्फ़ फ़्लोर टेस्ट ही इकलौती ऐसी संवैधानिक व्यवस्था है, जिसे लॉकडाउन के बावजूद टाला नहीं गया.
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इस स्थिति में गठबंधन सरकार को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट साबित करना होगा. मौजूदा समय में शिवसेना के 56, कांग्रेस के 44 और राकंपा के 54 विधायकों को मिलाकर 154 सदस्यों का समर्थन हासिल है. अन्य 7 विधायकों ने भी सरकार को समर्थन दिया हुआ है. बीजेपी के पास 105 और मनसे के पास दो विधायक हैं. अगर बीजेपी की लॉकडाउन में कुछ वैसी ही अंदरूनी रणनीति है, जैसी मध्य प्रदेश में थी और यहां भी असंतुष्ठ कांग्रेस के विधायकों को पार्टी तोड़ने में कामयाब होती है तो यहां बीजेपी अपना महारत वाला खेल कर सकती है.
इन सबके के अलावा यहां कांग्रेस या शिवसेना या फिर राकंपा के विधायक बिकने या टूटने के लिए तैयार नहीं होते और बीजेपी का खेल बनता नहीं दिखाई दिया तो फिर एक आसान प्रक्रिया के तहत उद्धव ठाकरे इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर लेंगे. ऐसा करते ही उनके पास फिर से विधायक या विधानसभा परिषद का सदस्य बनने के लिए 6 महीने का समय मिलेगा. एक साल की भीतर किसी भी परिस्थितियों में चुनाव आयोग को चुनाव कराना ही होगा. ऐसे में उद्धव ठाकरे विधायक बनकर विधानसभा में पहुंचेंगे. इससे न केवल उनकी मन की इच्छा पूरी हो जाएगी, साथ ही राजनीतिक अस्थिरता भी समाप्त हो जाएगी.