Politalks.News/RajasthanAssembly. प्रदेश की सियासत में अब एक नया विवाद शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना राजनीतिक कौशल दिखाते हुए विधानसभा के बजट सत्र का सत्रावसान करवाने के लिए राज्यपाल के पास फाइल ही नहीं भेजी है. राजस्थान के संसदीय इतिहास में यह पहली बार है, जब विधानसभा के बजट सत्र का 5 महीने से ज्यादा समय से सत्रावसान नहीं हुआ और विधानसभा के बजट सत्र को खत्म किए बिना साढे़ पांच माह बाद फिर से विधानसभा की कार्यवाही शुरू होगी. ऐसे में सियासी बवाल मचना तो तय था ही तो ससंदीय परंपरा तोड़ने पर अब बीजेपी ने गहलोत सरकार को आड़े हाथ लिया है. वहीं गहलोत सरकार के इस फैसले को पिछले साल सचिन पायलट खेमे की बगावत के बाद विधानसभा सत्र बुलाए जाने के लिए राज्यपाल और सरकार के बीच हुए टकराव कोसे जोड़कर देखा जा रहा है.
आपको बता दें, विधानसभा के बजट सत्र सहित हर सत्र की कार्यवाही खत्म होने के दो महीने के भीतर सत्रावसान कर दिया जाता है और हमेशा से ऐसा ही होता आ रहा है. इस बार राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र की कार्यवाही 18 मार्च को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की गई थी, लेकिन यह परंपरा तोड़ दी गई. बता दें, सरकार ने पिछले साल मानसून सत्र के बाद से ही सत्रावसान की फाइल को देरी से राजभवन भेजना शुरू कर दिया था. जबकि इस बार तो सत्रावसान की फाइल ही नहीं भेजी. इस बार 18 मार्च को ही बजट सत्र का काम पूरा हो गया था, इसके बाद 6 महीने के भीतर एक बार विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य होता है. इस हिसाब से 18 सितंबर तक विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य है. विधानसभा की अगली बैठक अब 9 सितंबर को होगी.
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पिछले साल हुआ सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव बना कारण
दरअसल, पिछले साल पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे की बगावत के वक्त विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर गहलोत सरकार और राज्यपाल के बीच जमकर टकराव हुआ था. सरकार 31 जुलाई 2020 से पहले विधानसभा सत्र बुलाना चाहती थी, इसके लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर फाइल राज्यपाल को भेजी थी. लेकिन राज्यपाल ने 21 दिन पहले नोटिस देकर अचानक सत्र बुलाने का कारण पूछते हुए फाइल लौटा दी थी. इसके बाद सरकार ने तीन बार राजभवन फाइल भेजी, तीनों बार फाइल लौटा दी. उसके बाद मुख्यमंत्री सहित उनके समर्थक कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों ने राजभवन में धरना दिया और नारेबाजी की. इसके बाद राज्यपाल ने 14 अगस्त 2020 से विधानसभा सत्र बुलाने की फाइल को मंजूरी दी थी.
ऐसे में पिछले साल विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर हुए राज्यपाल से इस टकराव के बाद सरकार ने नया रास्ता निकाल लिया है. अब सत्रावसान के लिए फाइल ही राजभवन नहीं भेजी और विधानसभा के पुराने सत्र को ही जारी रखा. संसदीय परंपराओं और प्रावधानों के हिसाब से 2 माह के भीतर राज्यपाल के पास सत्रावसान की फाइल भेजी जाती है. गहलोत सरकार के इस कदम को राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण से जोड़कर देखा जा रहा है.
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राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रही सरकार
राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र का पांच माह बाद भी सत्रावसान नहीं करके सीधे 9 सितंबर से सदन की बैठक को लेकर सियासी बवाल मच गया है. बीजेपी ने इसे राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण और विधायकों के विशेषाधिकारों का हनन बताया है. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने विधानसभा अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर बिना सत्रावसान किए विधानसभा की बैठक बुलाने पर आपत्ति दर्ज करवाई है. राठौड़ ने सत्रावसान करके मानसून सत्र बुलाने की मांग की है. राठौड़ ने लिखा- राज्य सरकार राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है, अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ. यह लोकतंत्र का अपमान है. संविधान के आर्टिकल 174 में साफ प्रावधान है, इसके बावजूद सरकार ने राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए फाइल नहीं भेजी.
राजेंद्र राठौड़ ने चिट्ठी में लिखा है- यह पहला अवसर है जब राजस्थान विधानसभा के छठे सत्र को 19 मार्च 2021 को अनिश्चितकालीन स्थगित होने के बाद भी संविधान के प्रावधान के अनुसार सत्रावसान की फाइल को राज्यपाल को नहीं भेजा गया. यह राज्यपाल को मिले संवैधानिक अधिकारों का हनन है. 19 मार्च 2021 को अनिश्चितकाल के लिए. स्थगित हुआ सत्र 9 सितंबर तक यथावत है.
विधायकों के विशेषाधिकारों का हुआ हनन
विधानसभा के बजट सत्र में हर विधायक 100 सवाल पूछ सकता है, विधानसभा के बजट सत्र में हर विधायक का सवाल पूछने का कोटा पूरा हो चुका है. बजट सत्र अब भी यळथावत है, इसलिए आगे जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू होगी तो विधायक नए सवाल नहीं पूछ सकेंगे, क्योकि उनका बजट सत्र का कोटा पहले पूरा हो चुका है. पुराने सत्र का सत्रावसान नहीं होने से 9 सितंबर से जो विधानसभा की बैठक होगी वह बजट सत्र का ही हिस्सा होगी, ऐसे में विधायकों को सवाल पूछने के विशेषाधिकार का हनन किया है.