गैर भाजपा शाषित राज्यों और वहां के राज्यपालों के बीच गहरी होती विवादों की खाई चिंता का विषय

गैर भाजपा शाषित वाली राज्य सरकारों और वहां के राज्यपालों के बीच का विवाद का कोई न कोई किस्सा हर रोज दिखाई व सुनाई देने लगा है, पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और तेलंगाना से लेकर तमिलनाडु तक लगभग हर भाजपा विरोधी राज्यों में रोज नया विवाद गहराता जा रहा है

गैर भाजपा शाषित राज्यों और राज्यपालों के बीच गहरी होती विवादों की खाई
गैर भाजपा शाषित राज्यों और राज्यपालों के बीच गहरी होती विवादों की खाई

Politalks.News/StatesPolitics. देश मे गैर भाजपा शाषित वाली राज्य सरकारों और वहां के राज्यपालों के बीच का विवाद का कोई न कोई किस्सा हर रोज दिखाई व सुनाई देने लगा है. पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और तेलंगाना से लेकर तमिलनाडु तक लगभग हर भाजपा विरोधी राज्यों में रोज नया विवाद गहराता जा रहा है. पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच विवादों की लंबी फेहरिस्त है तो वहीं महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार के गठन को लेकर और उसके बाद के पहले दिन से राज्य सरकार और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बीच की खींचतान जगजाहिर है. वहीं बात करें तेलंगाना की टीआरएस सरकार की तो यहां भी मुख्यमंत्री केसीआर और राजयपाल तमिलसाई सौंदर्यराजन के बीच तनातनी नई नहीं है. यहां समझने वाली बात यह है कि राज्य सरकारों और राज्यपालों के झगड़े में अगर किसी नुकसान होता है तो सिर्फ प्रदेश की जनता का.

हाल ही में पश्चिम बंगाल में बनर्जी सरकार की ओर लिखी गई चिट्ठी में टाइपिंग की गलती की वजह से रात के दो बजे से विधानसभा सत्र आहूत करने को लेकर विवाद गहरा गया था, जिसे जैसे तैसे निपटाया गया है. वहीं इससे पहले राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने रात दो बजे से सत्र का सत्रावसान भी कर दिया था, जिसकी वजह से नए सिरे से सत्र आहूत करने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाकर ने सिरे से दुबारा चिठ्ठी राज्यपाल को भेजनी पड़ी.

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इसी तरह आमतौर पर किसी भी राज्य की विधानसभा में साल का पहला सत्र बजट सत्र ही होता है और वह राज्यपाल के अभिभाषण से शुरू होता है, लेकिन तेलंगाना में इस बार ऐसा नहीं होगा. तेलंगाना में राज्यपाल तमिलसाई सौंदर्यराजन ने पिछले साल के मॉनसून सत्र का सत्रावसान ही नहीं किया है. इस वजह से तेलंगाना में अक्टूबर-नवंबर 2021 में हुआ मॉनसून सत्र तकनीकी रूप से अभी तक भी जारी है. वहीं इसे ही आधार बना कर तेलंगाना की केसीआर सरकार ने बजट सत्र नए सिरे से आहूत करने की सिफारिश नहीं की और साथ ही राज्यपाल के अभिभाषण की भी जरूरत समाप्त कर दी. अगर नए सिरे से सत्र बुलाया जाता तो उसमें अभिभाषण होता. हालांकि आपको बता दें, सदन के सत्र के दौरान राज्यपाल सरकार की ओर से लिखा गया अभिभाषण ही पढ़ते हैं फिर भी राज्य की टीआरएस सरकार ने इस परंपरा को ही किनारे कर दिया है.

वहीं बात करें महाराष्ट्र की तो यहां राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और ठाकरे सरकार के बीच शुरू से चला आ रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा सत्र के लिए जब राज्यपाल ने राज्य सरकार की ओर से भेजा गया अभिभाषण स्वीकार कर लिया और उसे पढ़ने की सहमति दे दी तो लगा कि सब कुछ ठीक हो रहा है. लेकिन सत्र के पहले दिन जब अभिभाषण शुरू हुआ तो माहौल ऐसा बन गया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अभिभाषण नहीं पढ़ पाए और उसे बीच में ही छोड़ कर जाना पड़ा.

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आपको बता दें, महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में राज्यपाल की ओर से लगाए गए अड़ंगे के मसले पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है और चीफ जस्टिस की बेंच ने याचिका देने वालों से पूछा है कि अगर राज्य सरकार स्पीकर के चुनाव के मसले पर राज्यपाल को कुछ सुझाव दे रही है तो यह संविधान का उल्लंघन कैसे? तीसरा विवाद विधान परिषद के सदस्यों के मनोनयन का है, जिसमें राज्यपाल कोश्यारी ने सदस्यों के मनोनयन का प्रस्ताव नवंबर 2020 से ही लंबित रखा है. हाईकोर्ट की ओर से इस पर टिप्पणी किए जाने के बाद भी राज्यपाल ने इसकी मंजूरी नहीं दी है. इसका नतीजा यह हुआ है कि मनोनीत कोटे की 12 सीटों एक साल से ज्यादा समय से खाली हैं. इसी प्रकार तमिलनाडु में राज्यपाल के साथ नीट के विधेयक पर विवाद भी जगजाहिर है.

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