पॉलिटॉक्स न्यूज/दिल्ली. आने वाले समय में देश को एक और नेता मिल सकता है जिसमें भड़काउ भाषण देकर हिंसा भड़काने के सारे गुण मौजूद होंगे. यह व्यक्ति आने वाले समय में कन्हैया कुमार और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की राह पर चलने सकता है. हालांकि यह कयासभर है लेकिन देश में जो कुछ चल रहा है उससे तो यही लगता है कि यह व्यक्ति आगे चलकर राजनीति में आएगा और गलत भी नहीं है क्योंकि राजनीति में ऐसे लोगों की खासी आवश्यकता है जो न केवल हिंसा फेला सकें बल्कि भडकाउ काम भी कर सकें. हम बात कर रहे हैं कपिल बैंसला (गुर्जर) की, उसी कपिल गुर्जर की जिसने गत माह शाहीन बाग में प्रदर्शन स्थल के करीब फायर किया था और कहा था कि इस देश में केवल हिंदूओं की चलेगी.
कपिल गुर्जर को अदालत से 25 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत मिल गई. जैसे ही वह घर पहुंचा, लोगों ने कंधों पर उठाकर ढोल-नगाड़ों के साथ उसका स्वागत किया. इस दौरान लोग उसे गले लगाते हुए दिखे. ये खुशी कॉलोनी के बच्चे के घर लौटने की थी या कुछ खास काम करने की, ये तो पता नहीं लेकिन इस घटना ने उसे पॉपुलर्टी तो पक्की दिला दी है. यानि अब वो कन्हैया और रावण के पथ पर अग्रसर हो जाए तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए.
‘नहीं करनी मुझे नौकरी, ये लो मेरा इस्तीफा’, पटवारी ने विधायक को दिया दो टूक जवाब
बात करें कन्हैया कुमार की राजनीतिक यात्रा पर तो उनकी राजनीति भी भड़काउ भाषण और विवादित कारनामों से ही शुरु हुई है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर देश विरोधी प्रवृत्ति के आरोप लगे थे जिसके कारण वो काफ़ी विवाद में रहा. फरवरी 2016 को जेएनयू में कन्हैया कुमार की अगवानी में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ ‘अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’ के नारे लगाने के आरोप लगे थे. राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में कन्हैया सहित कुछ छात्रों पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया और दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी किया. कुछ दिन जेल में काटने के बाद सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया.
इसी घटना ने उनके राजनीतिक की राह प्रस्तत की. 17वीं लोकसभा में कन्हैया ने बिहार की सीपीआई के टिकट पर आम चुनाव लड़ा लेकिन 4 लाख से अधिक वोटों के अंतर से बीजेपी के गिरिराज सिंह ने उन्हें हरा दिया. अब सीपीआई उनके नेतृत्व में बिहार वि.स.चुनाव लड़ने की तैयारी में है. हाल में दिल्ली सरकार ने कन्हैया पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की स्वीकृति दी है.
कुछ ऐसी ही कहानी चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की है जिन्हें अब दलितों का नेता समझा जाता है. फतेहपुर थाना क्षेत्र के गांव छुटमलपुर के रहने वाले सहारनपुर में एडवोकेट चंद्रशेखर ने जुलाई 2015 में भीम आर्मी भारत एकता मिशन का गठन किया था. उस समय यह संगठन दलित समाज के बच्चों को पढ़ाने के लिए शुरू किया गया था. 2016 में जब घड़कौली प्रकरण हुआ और वहां गांव के बाहर द ग्रेट चमार लिखने को लेकर ठाकुर और दलित बिरादरी के बीच विवाद गहराया तो पहली बार भीम आर्मी संगठन सामने आया. घड़कौली प्रकरण के बाद तेजी से युवाओं ने भीम आर्मी ज्वाइन की. 5 मई को बड़गांव थाना क्षेत्र के गांव शब्बीरपुर में दलित और राजपूत बिरादरी के बीच हिंसा भड़क गई. इस जातीय हिंसा की आग में सहारनपुर जल उठा और रामनगर में वाहन फूंक दिए गए.
इस घटना के बाद सहारनपुर पुलिस ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए और पुलिस की इस कार्यवाही में भीम आर्मी को पूरे देश में सुर्खियां दिला दी. इसी मामले में चंद्रशेखर को मई, 2017 में सहारनपुर में जातीय दंगा फैलाने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासूका) के तहत जेल भेजा गया. 16 महीने बाद 14 दिसम्बर को रात 2:30 बजे जेल से रिहा किया गया. जहां सैंकड़ों समर्थकों ने उनका माला पहनाकर स्वागत किया. यही से उनकी पॉपुलर्टी का पता चला. पिछले साल दिल्ली के जंतर मंतर पर सीएए के विरोध में हजारों की भीड़ को मस्जिद के बाद धारा 144 लगने के बावजूद उन्होंने इक्कठ्ठा कर अपनी ताकत का अहसास कराया था. अब भीम आर्मी का भी राजनीतिकरण होने वाला है. रावण यूपी वि.स.चुनाव में पहली बार उतरने की तैयारी में है.
गुजरात दंगों में सामने आए हार्दिक पटेल की राजनीति यात्रा भी कुछ ऐसी ही है. साल 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद से हार्दिक पटेल पाटीदार नेता के तौर पर उभर कर सामने आये थे. इस आंदोलन के चलते मेहसाणा के विषनगर में दंगा हो गया था. आंदोलन के दौरान हिंसा फैलाने के आरोप में हार्दिक को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई गई है. आंदोलन के दौरान ही हार्दिक पर बीजेपी विधायक ऋषिकेश पटेल के दफ्तर में तोड़फोड़ करने का मामला भी चल रहा है. हालांकि वो बात अलग है कि वे जमानत पर जमानत लिए जा रहे हैं. गुजरात वि.स.चुनावों में भी उनकी खास भूमिका रही थी और बिना चुनाव लड़े हार्दिक ने कांग्रेस को टक्कर में ला दिया. बाद में हार्दिक कांग्रेस में शामिल हो गए.
अब कपिल गुर्जर भी शायद उसी राह पर चल पड़े. कपिल गुर्जर के बारे में याद दिला दे कि नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ शाहीन बाग में प्रदर्शन से कुछ दूर 1 फरवरी को देसी कट्टे से दो हवाई फायर किए थे. बाद में उनकी कुछ तस्वीरें आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ वायरल हुईं. हालांकि कपिल के पिता और भाई ने आप का सदस्य होने की बात से इनकार किया. लेकिन जिस तरह जेल काटकर जमानत पर बाहर आए कपिल का स्वागत किया जैसे वो कोई जंग जीतकर आया हो, देश की आबो हवा बदलती दिख रही है.