Politalks.News/Bengal/SuvenduAdhikari. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों को कुछ ही महीने शेष हैं. ऐसे में ममता बनर्जी के वैकल्पिक पावर सेंटर बनकर उभर रहे शुभेंदु अधिकारी पर इन दिनों सभी की नजरें गढ़ी हुई है. शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) ममता सरकार में परिवहन मंत्री है लेकिन उन्होंने हाल में बगावत का जो झंडा बुलंद किया है, ममता दीदी की नींदे उड़ गई हैं. सियासी गलियारों में खबरों का बाजार गर्म है कि शुभेंदु बीजेपी का दामन थामने वाले हैं. अगर ऐसा होता है तो आगामी विस चुनावों में अधिकारी बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं. शुभेंदु तृणमूल कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से वे एक हैं. फिलहाल 49 वर्षीय शुभेंदु अधिकारी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
पूर्वी मिदनापुर जिले से ताल्लुक रखने वाले बतौर सांसद लो-प्रोफाइल समझे जाने शुभेंदु अधिकारी बीते कुछ सालों में एक पावर सेंटर बनकर उभर रहे हैं. इसके पीछे उनकी मेहनत और सांगठनिक कौशल है. इसका शानदार उदाहरण ये है कि कभी लेफ्ट का गढ़ समझे जाने वाले पूर्वी मिदनापुर को अकेले दम पर पिछले एक दशक में इसे अधिकारी परिवार का अभेद किला बना दिया. पहले उनके पिता यहां से तीन बार सांसद रहे और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहे. वहीं शुभेंदु यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं. शुभेंदु अधिकारी का एक भाई भी टीएमसी सांसद और एक भाई कोंताई म्यूनिसिपल्टी के चेयरमैन है.
शुभेंदु नंदीग्राम आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने ममता बनर्जी के लिए जन समर्थन जुटाने के लिए जमकर पसीना बहाया था. नंदीग्राम में भूमि-अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की लहर पर सवार होकर शुभेंदु 2009 में तमलुक सीट जीत कर लोकसभा पहुंचे और मजबूत सीपीआईएम के दिग्गज नेता लक्ष्मण सेठ को 1.73 लाख वोटों से पटखनी दी. 2014 में उन्हें फिर से लोकसभा के लिए चुना गया. पिछले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद ममता बनर्जी की कैबिनेट में परिवहन मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला.
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कांथी दक्षिण सीट से विधायक के तौर पर ही हाल के दिनों में शुभेंदु ने भूमि उछेड़ प्रतिरोध कमेटी (BUPC) की छतरी के नीचे नंदीग्राम में लेफ्ट सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण की कोशिशों के खिलाफ जन समर्थन जुटाया था. जमीनी आधार वाले नेता शुभेंदु को अपने पूर्ववर्ती लक्ष्मण सेठ की तरह ही हल्दिया पोर्ट टाउन पर मजबूत पकड़ रखने के लिए जाना जाता है. उन्हें आसपास के पश्चिम मेदिनीपुर, झारग्राम, पुरुलिया, बांकुरा और बीरभूम जिलों में टीएमसी आधार का विस्तार करने का श्रेय दिया जाता है. उनकी बढ़ती सियासी ताकत का अंदाज केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि शुभेंदु ना सिर्फ अपने पूर्वी मिदनापुर क्षेत्र की 16 विधानसभा सीटों के साथ साथ आसपास के कम से कम 7-8 जिलों में भी प्रभाव रखते हैं.
अपने इसी बढ़ते प्रभाव के चलते शुभेंदु सीधे सीधे सीएम ममता बनर्जी को टक्कर दे रहे हैं. हाल में उन्होंने बिना नाम लिए ममता को ललकारते हुए कहा ‘आपको जंग के मैदान में देखेंगे’. वहीं शुभेंदु के समर्थक राज्यभर में ‘आमरा दादा अनुगामी’ यानि ‘हम दादा के अनुयायी हैं’ के पोस्टर लगा रहे हैं जो उनको सीधे सीधे ममता बनर्जी की टक्कर में लाकर खड़ा करता है.
शुभेंदु की बढ़ती ताकत का अंदाजा पिछले साल ही चल गया था जब उन्होंने खड़गपुर सदर उपचुनाव जीता था. वो भी ऐसे वक्त पर जब कि कुछ ही महीने पहले बीजेपी ने राज्य की 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर दमदार मौजूदगी दर्ज कराई थी. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के 2019 में लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद ये सीट खाली हुई थी. तृणमूल कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल के लिए यहां से शुभेंदु को मैदान में उतारा और लोकसभा चुनाव के केवल छह महीने बाद हुए इस उपचुनाव में शुभेंदु ने बीजेपी उम्मीदवार को 20,000 से ज्यादा मतों से पटखनी देकर अपनी धाक मनवाई.
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अब आते हैं उस वजह पर जिससे शुभेंदु का झुकाव बीजेपी की ओर हो रहा है. दरअसल शुभेंदु की नाराजगी ममता के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी को लेकर है जो विभिन्न जिलों में पार्टी संगठन पर निंयत्रण की कोशिश कर रहे हैं. जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने में कड़ी मेहनत करने वाले शुभेंदु इससे उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. इसी वजह से उन्होंने कई पार्टी कार्यक्रमों से खुद को अलग रखा. यहां तक की वे कैबिनेट की बैठकों में भी वो नहीं गए, जबकि इनकी अध्यक्षता खुद ममता बनर्जी कर रही थीं. इसके स्थान पर शुभेंदु अपने गढ़ में होने वाली अराजनैतिक रैलियों में अधिक समय बिता रहे हैं.
बीते दिन सहकारी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शुभेंदु अधिकारी ने बागी तेवर दिखाते हुए कहा कि वह कड़ी मेहनत से ऊंचाई पर पहुंचे हैं. न तो किसी ने उनका चयन किया है और न ही नामित किया है बल्कि वह एक निर्वाचित नेता हैं. चूंकि पश्चिम बंगाल के मिदनापुर और जनजातीय क्षेत्र जंगलमहल के साथ ही सात से आठ जिलों में शुभेंदु अपना प्रभाव रखते हैं, ऐसे में सीएम ममता बनर्जी और देश के पॉपुलर और प्रभावी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उन्हें मनाने में जुटे हैं. लेकिन माना यही जा रहा है कि शुभेंदु अपने बागी तेवर छोड़ने के मूड में नहीं हैं. जल्दी ही उनकी बीजेपी खेमे में जाने की खबर आ सकती है. अगर ऐसा होता है तो शुभेंदु अधिकारी निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए एक तुरुप का इक्का बनकर मैदान में उतरेंगे और ममता के गढ़ में सेंध लगाएंगे.