पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. क्या एक के बाद एक राज्यों में सत्ता गंवाने वाली बीेजेपी को इस साल होने वाले दिल्ली और बिहार राज्यों में भी सत्ता खोने का कोई डर सता रहा है? क्या देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शन और विपक्ष के हमलों के बाद बीजेपी एनआरसी को लेकर बैकफुट पर आ गई है? क्या भाजपा इस बात को समझ रही है कि एनआरसी की बात करके देश में माहौल खराब होगा और उसे नुकसान उठाना पडेगा? क्या एनआरसी के मुददे पर विपक्ष पूरी तरह भाजपा पर हावी हो चुका है?
ऐसे बहुत सारे सवालों का जवाब गुरुवार को बिहार में सीएए के समर्थन में हुई बीजेपी की जन जागरण रैली के दौरान देश के गृहमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के भाषण में देखने को मिल रहा है. कश्मीर से धारा 370 हटाने के निर्णय के बाद गर्मजोशी के साथ संसद और संसद के बाहर सीएए और एनआरसी की बात बड़े एग्रेसिव अंदाज में करने वाले अमित शाह बिहार के वैशाली में हुई रैली के दौरान बदले-बदले से नजर आए.
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अमित शाह के भाषण पर जरा गौर किया जाए तो उसमें नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का तो जर्बदस्त तरीके से जिक्र था लेकिन राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का शब्द ही गायब था. अमित शाह ने CAA के समर्थन में दमदार भाषण देते हुए एक नम्बर पर मिस कॉल तक करवाई, सब कुछ किया लेकिन NRC के बारे में जिक्र करना तो दूर उसका नाम तक नहीं लिया.
यही नहीं अमित शाह के भाषण में सबकुछ था, जैसे कश्मीर से धारा 370 हटाना, राम मंदिर का निर्माण, दिल्ली की जेएनयू और जामिया की घटनाएं बस अगर कुछ नहीं था तो वो एनएआरसी. अमित शाह ने सीएए के समर्थन में महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए सीएए के साथ एनआरसी का विरोध करने वाले राहुल गांधी, ममता दीदी, अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा लेकिन भाषण के दौरान इस बात का पूरा ख्याल रखा कि कहीं NRC का कोई शब्द मुंह से न निकल जाए!
समझने वाली बात यह है कि लोकसभा में प्रचंड बहुमत होने के बाद भी एनआरसी को लेकर भाजपा इतने दबाव में क्यूं है. कहीं यह दबाव चार राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा की सत्ता जाने से तो नहीं उपजा है या फिर दिल्ली और बिहार में इस साल होने वाले चुनाव में कोई हार का डर तो नहीं सता रहा बीजेपी को. एनआरसी पर देश में विरोध प्रदर्शन हुए तो एनपीआर आ गया, यानि नेशनल पाॅपूलेशन रजिस्टर. लेकिन अमित शाह के भाषण में इसका भी कोई जिक्र नहीं हुआ. लगता है एनआरसी और एनपीआर दोनों लगभग एक जैसे शब्द हैं, हो सकता हो कि अमित शाह इनसे बचना चाहते हो.
इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. अभी बिहार में जदयू के साथ गठबंधन में भाजपा की सरकार चल रही है और नीतिश कुमार मुख्यमंत्री हैं. पिछले कुछ समय से भाजपा और जदयू में खींचतान के कई समाचार सामने आते रहे हैं. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने एनआरसी लाने की बात कही तो कांग्रेस, लेफ्ट, सहित तमाम भाजपा विरोधी पार्टियों सहित एनडीए के सहयोगी भाजपा गठबंधन से बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी एनआरसी को पूरी तरह खारिज कर उसका विरोध किया.
नीतिश कुमार द्वारा एनआरसी के विरोध के बाद भी भाजपा नेताओं की चुप्पी बयां कर रही है कि एनआरसी के विषय को कम से कम बिहार में आगे बढाना भाजपा के लिए आसान नहीं है. महाराष्ट्र में हाथ में आई सत्ता के जाने के बाद भाजपा को यह बात भी समझ में आ रही होगी कि नीतिश के बिना बिहार में सत्ता पर फिर से काबिज होना टेडी खीर से कम नहीं होगा. शायद इसलिए ही चुनाव से कई महीने पहले ही अमित शाह ने सभी तरह की अटकलों को खारिज करते हुए एलान तक कर दिया कि नीतिश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार का चुनाव लडा जाएगा.
अमित शाह की बिहार रैली से एक बात तो साफ हो गई कि फिलहाल एनआरसी का मुददा भाजपा के कौर ईश्यू से बाहर हो चुका है.भाजपा में इस बात का डर साफ दिखाई दे रहा है कि एनआरसी के मुददे पर अडे रहने के कारण उसे एनडीए के कई घटक दलों से हाथ धोना पड सकता है. इसका प्रभाव भाजपा की छवि के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में उसकी सरकारों पर भी नजर आ सकता है.