पॉलिटॉक्स न्यूज. शिवसेना ने अपने मुखपत्र के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की बीजेपी सरकार से पूछा है कि आखिर कैसे गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से हिंसक भिड़त में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की शहादत का बदला लिया जाएगा? मुखपत्र सामना में संपादक और शिवसेना सांसद संजय राउत ने अपने लेख में लिखा, ‘भारत पर चीनी आक्रमण हमारी विदेश नीति की विफलता है. चीन के हमले ने बाहुबली राजनीति की हवा निकाल दी है’. संजय राउत ने लेख के माध्यम से पीएम मोदी पर करारा हमला करते हुए पूछा है कि आगामी चुनावों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हारने के बाद मोदी अकेले रह जाएंगे. फिर मोदी का साथ कौन देगा?
सामना के रविवारीय संपादकीय में संजय राउत ने लिखा, ‘भारत के सीमावर्ती क्षेत्र अब कन्फ्लिक्ट जोन हैं. सभी पड़ोसी चीन के साथ जा रहे हैं. भारत पर चीनी आक्रमण हमारी विदेश नीति की विफलता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आगामी चुनाव हार जाएंगे. मोदी का साथ कौन देगा? चीन के हमले ने बाहुबली राजनीति की हवा निकाल दी है.’
याद दिला दें कि शुक्रवार को सर्वदलीय बैठक में शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मोदी सरकार पर भरोसा जताया था. ठाकरे ने कहा कि हम सभी प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय सेना के साथ मजबूती से खड़े हैं. हमारी सरकार आंखें निकालकर हाथ में देने की क्षमता रखती है. हम कमजोर हैं लेकिन मजबूर नहीं. इसके 24 घंटे बाद संजय राउत का ये बयान शिवसेना प्रमुख के बयान से इत्तेफाक तो नहीं रखता लेकिन शिवसेना की भावनाओं को प्रकट जरूर करता है.
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लेख में संजय राउत ने कहा कि 1975 के बाद यह पहला मौका था जब चीनी सेना के साथ संघर्ष में इतने सारे भारतीय सैनिक शहीद हुए. हम कैसे बदला लेंगे? उन्होंने पूछा कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक केवल पाकिस्तान के लिए थी?
आगे शिवसेना नेता ने लिखा, ‘बीजेपी अब यह कहने की स्थिति में नहीं है कि नेहरू ने 1962 में चीन के साथ गड़बड़ी की थी. अमेरिका के साथ सहानुभूति से भारत को चीन जैसे तटस्थ देश को लेकर कीमत चुकानी पड़ रही है. अब नेपाल जैसा देश चीन के इशारे पर भारत की आलोचना कर रहा है. अब भारत अकेला रह गया है. ऐसे समय में पीएम मोदी को चीनी सामान पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहना चाहिए लेकिन भारत का चीन के साथ व्यापार जारी है.’ संपादकीय में ये भी लिखा हुआ है कि राष्ट्र मोदी के साथ खड़ा है, लेकिन क्या मोदी राष्ट्र की बात सुनेंगे?
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संपादकीय के अंत में चीन के प्रति अपने मन के भावों को व्यक्त करते हुए संजय राउत ने लिखा, ‘जब बराक ओबामा 55 साल के लंबे विवाद के बाद बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति क्यूबा गए थे, तब क्यूबा के पूर्व प्रधानमंत्री फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि क्यूबाई लोगों के लिए ओबामा का नया प्यार दिल का दौरा दे सकता है. शी जिनपिंग की भारत यात्रा भी कुछ ऐसी ही थी क्योंकि यह विश्वास करना कठिन था कि चीनी भारत के मित्र हो सकते हैं.’ अब ऐसा देखने को मिल रहा है.’