Politalks.News/Rajasthan. कहावत है इतिहास दोहराता है, वक्त, हालात, समय और जगह भले ही बदल जाती है, इतिहास अपने आप को दोहराता है. साढ़े 5 महीनों के बाद एक बार फिर राजस्थान की सियासत में आज वही देखने को मिलेगा जो मध्य प्रदेश में हुए उपचुनाव के दौरान दिखाई दिया था. दो अलग-अलग राजनीतिक दलों के युवा नेताओं की ‘दोस्ती‘ ने आज एक बार फिर मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान और दिल्ली तक सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. हम बात कर रहे हैं पिछले वर्ष मार्च महीने में भाजपा के ‘सारथी‘ बने राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस नेता व राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की.
बात को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको पिछले वर्ष 2020 की तारीख 27 अक्टूबर लिए चलते हैं. उस समय मध्य प्रदेश की 28 सीटों के लिए विधानसभा उपचुनाव हो रहे थे. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर क्षेत्र मुरैना और भिंड में कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में सिंधिया के दोस्त सचिन पायलट चुनावी जनसभा करने गए थे. उस दौरान पायलट और सिंधिया की हुई मुलाकात मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए परेशानी बढ़ा गई थी. बता दें कि भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी, ऐसे में कमलनाथ के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए उपचुनाव महत्वपूर्ण हो गए थे. लेकिन एमपी के उपचुनाव में भाजपा ने शानदार जीत हासिल कर शिवराज सरकार को और मजबूत कर दिया.
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यह तो रही पुरानी बातें, राजस्थान में 3 विधानसभा सीटों के लिए 17 अप्रैल को हो रहे उपचुनाव में सहाड़ा विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ रतन लाल जाट के लिए चुनावी जनसभा करने आ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चिंता बढ़ा दी है. फिर एक बार गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. हालांकि पायलट अभी कांग्रेस के ही ‘वफादार‘ सिपाही बने हुए हैं लेकिन सिंधिया और पायलट की यारी पहलेे जैसे ही मजबूत बनी हुई है.
बता दें कि राजस्थान की सहाड़ा (भीलवाड़ा), सुजानगढ़ (चूरू) और राजसमंद सीट पर उपचुनाव होने हैं. ऐसे में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने अब एक कमान से दो सियासी तीर चला दिए हैं. यानी कांग्रेस को परास्त करने के लिए उन्हीं की पार्टी में एक समय स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने प्रचार के मैदान में उतार दिया है. भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया आज दोपहर सहाड़ा के गंगापुर में चुनावी सभा करेंगे. उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है. कांग्रेस की गहलोत सरकार तीनों सीटों पर कब्जा करने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं. वहीं राज्य भाजपा इकाई उपचुनाव में तीनों सीटों को जीत कर विधानसभा में अपनी संख्या बढ़ाने के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ताकत भी कम करना चाहते हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार राजस्थान का चुनावी दौरा करेंगे. इससे पहले वह नवंबर 2018 में कांग्रेस के पक्ष में चुनावी सभा करने आए थे. राजस्थान की धरती पर सिंधिया के भाजपा में आने के बाद होने जा रही पहली चुनावी जनसभा बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ सचिन पायलट को भी इंतजार है. देखना होगा कि सिंधिया यहां अपने दोस्त पायलट से मुलाकात करते हैं या नहीं? आइए अब इन 3 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को जीतने के लिए गणित भी जान लेते हैं.
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उपचुनाव को जीतने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने कर रखी है मोर्चाबंदी
राजस्थान की राजसमंद, सहाड़ा और सुजानगढ़ सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें दो सीटें कांग्रेस तो एक सीट बीजेपी के पास रही है. राजसमंद सीट भारतीय जनता पार्टी की विधायक किरण माहेश्वरी के निधन से रिक्त हुई है जबकि सहाड़ा सीट से कांग्रेस के विधायक कैलाश त्रिवेदी और सुजानगढ़ सीट से कांग्रेस विधायक मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के चलते उपचुनाव हो रहे हैं. सहाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी को उतारा है तो बीजेपी ने पूर्व विधायक डॉ रतनलाल जाट को प्रत्याशी बनाया. इस सीट को जीतने के लिए सीएम गहलोत ने अपने मंत्री रघु शर्मा को जिम्मेदारी सौंप रखी है. वहीं बीजेपी ने इस सीट को कांग्रेस से जीतने के लिए मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग, भीलवाड़ा सांसद सुभाष बहेड़िया और चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को मोर्चे पर लगा रखा है.
राजसमंद विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने तनसुख बोहरा को प्रत्याशी बनाया है तो बीजेपी ने दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को उतारा. यह बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है, जिसे बचाए रखने की जिम्मेदारी पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और सांसद दिया कुमारी को सौंप रखी है. वहीं बीजेपी से यह सीट छीनने के लिए कांग्रेस ने प्रभारी मंत्री उदयलाल आंजना कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन के लिए भी यह सीट महत्वपूर्ण है. इसीलिए इस सीट पर कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.
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ऐसे ही सुजानगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने दिवंगत विधायक भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को मैदान में उतारा है. भंवरलाल मेघवाल अशोक गहलोत सरकार में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थे. वहीं, बीजेपी ने पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस अपनी सीट बरकरार रखने के लिए उच्च शिक्षा और प्रभारी मंत्री भंवर सिंह भाटी को सुजानगढ़ में लगा रखा है.
आपको बता दें, राजस्थान के विधानसभा उपचुनाव में उपचुनाव में कांग्रेस अगर जीतती है तो यह माना जाएगा कांग्रेस के काम से राज्य की जनता खुश है और अगर पार्टी को राज्य में सीटें नहीं मिलती है तो विपक्ष इसे गहलोत सरकार के खराब कामों का ढिंढोरा पीट देगा. यही वजह है कि उपचुनावों की कमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद संभाल रहे हैंं. दूसरी ओर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने अपने केंद्रीय मंत्रियों को इन तीनों सीटों को जीतने के लिए मोर्चे पर लगा रखा है. सिंधिया के प्रचार करने के लिए आने पर राजस्थान की सियासत में हलचल है, भाजपा-कांग्रेस के नेता मोहरे फिट करने में लगे हुए हैं. ऐसे में देखना होगा कि उपचुनाव में कौन किस पर भारी पड़ता है. 2 मई को 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ उपचुनाव के परिणाम भी आएंगे.