आखिर भाई की रिहाई के लिए आगे आईं सारा पायलट, सचिन पायलट की पत्नी और उमर अब्दुल्ला की बहन हैं सारा

धारा 370 हटाये जाने के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पांच अगस्त 2019 को धारा 107 के तहत हिरासत में लिया गया था, तब से नजरबंद अपने भाई की रिहाई के लिए सारा पायलट ने 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान के उपमुख्यमंत्री व पीसीसी चीफ सचिन पायलट की पत्नी सारा अब्दुल्ला पायलट इन दिनों सियासी सुर्खियों में है. सारा पायलट द्वारा 10 फरवरी को अपने भाई व जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में बीते शुक्रवार को सुनवाई हुई. सारा ने याचिका दायर कर पांच अगस्त 2019 से नजरबंद अपने भाई उमर अब्दुल्ला की रिहाई की मांग की है.

राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की पत्नी और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला की बेटी सारा पायलट ने पहली बार अपने भाई के लिए आवाज उठाई है. सारा ने अपने भाई उमर अब्दुल्ला की रिहाई की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर सभी को हैरत में डाल दिया है. सारा के इस अंदाज की राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा है. बता दें, बड़ी शख्सियत होने के बावजूद सारा पायलट अक्सर मीडिया की सुर्खियों से दूर रहती है, ऐसे में यह ऐसा पहला मौका है जब सारा पायलट सार्वजनिक तौर पर मीडिया से सीधे रूबरू हुई.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उमर अब्दुल्ला की हिरासत के खिलाफ सारा पायलट की याचिका पर सुनवाई करते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर 2 मार्च तक जवाब मांगा है. सुनवाई के बाद उमर अबदुल्लाह की बहन सारा पायलट ने कहा कि यह बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला है. मुझे न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है, उम्मीद है इस मामले में हमें जल्द राहत मिलेगी. हम सुप्रीम कोर्ट मे इस मामले को लेकर आये है, क्योंकि हम चाहते हैं कि कश्मीर के नागरिकों को भी अन्य राज्यों के भारतीय नागरिेकों की तरह अधिकार मिलें.

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बता दें, सारा पायलट की ओर से सु्प्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा कानून 1978 के तहत अपने भाई उमर की हिरासत को अवैध बताया है. सारा ने इस याचिका में कहा कि शांति व्यवस्था बहाल रखने को लेकर उमर अब्दुल्ला से किसी को किसी तरह के खतरे का सवाल ही नहीं उठता है. याचिका में पीएसए के तहत पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हिरासत में रखने के पांच फरवरी के आदेश को खारिज करने और उन्हें अदालत के समक्ष हाजिर करने की मांग की गयी है. इसके साथ ही सारा ने अपनी याचिका में कहा है, उमर की हिरासत उनकी अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है. यह केंद्र सरकार की तरफ से अपने विरोधियों की आवाज दबाने की कोशिश है. सरकार की नीतियों से असहमति लोकतंत्र में एक नागरिक का अधिकार है. उमर के खिलाफ आरोपों पर कोई भी सबूत मौजूद नहीं है. उमर ने हिरासत से पहले कई ऐसे ट्वीट भीबसार्वजनिक किये थे जिनमें उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की थी.

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गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला को पांच अगस्त 2019 को सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में लिया था. इस कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि छह फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी. लेकिन सरकार ने उन्हें फिर से जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में ले लिया. उमर को हिरासत में लिये जाने के बाद से ही सरकारी गेस्ट हाउस में नजरबंद कर रखा है. दुबारा हिरासत में लिए जाने पर पुलिस ने अपने डॉजियर में लिखा है कि उमर अब्दुल्ला का जनता पर खासा प्रभाव है, ऐसे में उमर अब्दुल्ला जनता कि ऊर्जा का इस्तेमाल किसी भी कारण से कर सकते है.