महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अन्य राज्यों की तुलना में काफी अलग होगा, इसमें निश्चित तौर पर कोई संदेह नहीं है. 6 बड़ी पार्टियां दो प्रमुख गठबंधन बनकर चुनाव लड़ रही हैं. सत्ताधारी महायुति जिसमें भारतीय जनता पार्टी के साथ सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के गुट वाली एनसीपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के साथ शरद पवार की एनसीपी एसपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी मैदान में है. दोनों सत्ता हासिल करने एक दूसरे के खिलाफ दांव खेल रहे हैं. वहीं बगावत करके 288 सीटों में से करीब आधी सीटों पर त्रिकोणीय समीकरण बनाते हुए बागी भी मैदान में हैं. करीब 150 सीटों पर बागी मजबूत हैं जो दोनों प्रमुख गठबंधनों को चुनौती दे रहे हैं. इस बार 7,995 उम्मीदवारों ने महाराष्ट्र चुनावों में पर्चा दाखिल किया है. अंतिम दिन 4,996 ने नामांकन भरा जिससे सभी दलों की सांसें फूल रही हैं.
शिवसेना और एनसीपी में बगावत के चलते इस बार कांग्रेस, बीजेपी समेत छह बड़े दल मैदान में हैं. इसी वजह से बागी भी ज्यादा हैं. राज्य की लगभग हर सीट पर बागी हैं. वैसे नामांकन वापिसी की अंतिम तिथि 4 नवंबर है और सभी पार्टियां बागियों की मान मुनहार में लगी हुई हैं. उसके बाद ही पता चलेगा कि लड़ाई कैसी होगी.
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बीजेपी की चिंता बढ़ी
खुद महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी माना है कि महाराष्ट्र विधानसभा में इस बार बागी उम्मीदवारों की संख्या बहुत अधिक है. उन्होंने कहा कि जब महायुति समन्वय समिति की घोषणा हुई थी तो तीनों पार्टियों के प्रतिनिधियों ने हर विधानसभा क्षेत्र में इसी तरह की समितियां बनाईं. इन कमेटियों का मकसद था कि जिन लोगों को टिकट नहीं मिल रहा है, उन्हें बागी न होने के लिए राजी किया जा सके. हालांकि, ऐसा लगता है कि कमेटियां काम नहीं कर रही हैं. फडणवीस ने ये भी कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि बागी नेताओं को चुनाव से हटने के लिए राजी किया जाए. हमें उन्हें मनाना ही होगा.
निर्दलीय ताल ठोक रहे बड़े नेता
दो बार भाजपा से सांसद रह चुके गोपाल शेट्टी को इस बार आम चुनाव में टिकट नहीं मिला था. वे बोरिवली विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने संजय उपाध्याय को टिकट दे दिया. उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. बड़े नेता होने के चलते बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इसी तरह शिंदे गुट की शिवसेना के नेता राजू पारवे को रामटेक से लोकसभा चुनाव लड़ाया था, लेकिन हार गए. विधानसभा चुनाव में उमरेड सीट बीजेपी के पास चली गई. ऐसे में पारवे ने बागी होकर उम्मीदवारी जता दी. बीजेपी ने सुधीर पारवे को मैदान में उतारा है.
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इसी तरह अंधेरी पूर्व से शिवसेना की बागी स्वीकृति शर्मा, एनसीपी गुट के नाना काटे चिंचवड से और मानखुर्द-शिवाजीनगर से नवाब मलिक भी ताल ठोक चुके हैं. नवाब मलिक के साथ तो दिलचस्प किस्सा भी जुड़ा है. नॉमिनेशन भरने की समय सीमा खत्म होने से कुछ मिनट पहले ही अजित गुट की NCP ने नवाब मलिक को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. मलिक पहले से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, मगर बीजेपी विरोध कर रही थी.
बीजेपी ने मलिक को दाऊद इब्राहिम का करीबी बताते हुए देशद्रोह सहित कई आरोप लगाए थे. इसी वजह से मलिक को टिकट नहीं मिल पा रहा था. समझौते के तहत यह सीट शिंदे गुट को मिली थी. पार्टी ने यहां से सुरेश पाटिल को टिकट दिया है. बीजेपी ने इसका समर्थन किया तो मलिक ने निर्दलीय चुनावी मैदान में उतारने का मन बना लिया है.
आपस में लड़ रहे एमवीए के नेता
चुनौतियां केवल महायुति में ही नहीं हैं. महाविकास अघाड़ी में भी हैं. यहां नेता एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ रहे हैं. शरद पवार की एनसीपी ने पंढरपुर से अनिल सावंत को टिकट दिया है. वहीं, कांग्रेस ने भगीरथ भालके को मैदान में उतार दिया है. भगीरथ दिवंगत कांग्रेस विधायक भारत भालके के बेटे हैं. भालके के निधन के बाद उपचुनाव में भगीरथ ने एनसीपी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. अबकी बार टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में आ गए और पार्टी ने अपनी सहयोगी शरद गुट की एनसीपी के खिलाफ ही टिकट दे दिया.
इसी तरह उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने परंडा से रणजीत पाटिल को टिकट दिया, तो शरद पवार की एनसीपी ने पूर्व विधायक राहुल मोटे को मैदान में उतारा दिया. अब गठबंधन के साथी एक दूसरे के खिलाफ भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं. सोलापुर दक्षिण में भी कमोबेश यही स्थिति बन रही है. हालांकि यहां कांग्रेस के बागी ने एमवीए की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कांग्रेस के दिलीप माने यहां से टिकट चाहते थे लेकिन समझौते के तहत यह सीट उद्धव ठाकरे की शिवसेना को मिली. पार्टी ने अमर पाटिल को टिकट दिया है. अब दिलीप माने निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.