बाड़े में पंचायत चुनाव के ‘रणबांकुरे’, विधायक जुटे हैं जी हुजूरी में तो जोधपुर-जयपुर में दिलचस्प मुकाबला

मतदान के बाद बाड़े में बंद हुए सभी प्रत्याशी, कांग्रेस-बीजेपी ने उतारी नेताओं की फौज, 4 सितंबर को हारे प्रत्याशियों की होगी विदाई, निर्दलीय प्रत्याशियों की होगी एंट्री, पूरे चुनाव में जादूगर के गढ़ पर सभी की नजरें, जयपुर और भरतपुर में भी दिलचस्प हुआ मुकाबला

बाड़ाबंदी में शुरू हुई 'रणबांकुरों' की जी हुजूरी
बाड़ाबंदी में शुरू हुई 'रणबांकुरों' की जी हुजूरी

Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश के 6 जिलों जयपुर, दौसा, जोधपुर, भरतपुर, सिरोही और सवाई माधोपुर में जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के तीन फेज की वोटिंग के बाद चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं. वहीं कांग्रेस और बीजेपी ने मतदान के तुरंत बाद से अपने प्रत्याशियों को बाड़ेबंदी में डाल दिया है. वैसे देशी भाषा में बाड़ा-पालतु पशुओं के लिए रहने का स्थान होता है, लेकिन आजकल की दल बदल की राजनीति ने इसका इस्तेमाल बढ़ा दिया है. वोटिंग के बाद से ही दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने मजबूत बाड़ाबंदी कर दी. इसके बाद भी कांग्रेस और बीजेपी के जिम्मेदार नेताओं को क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है, अब 4 सितंबर को रिजल्ट आने के बाद असली सियासी खेल शुरू होगा.

सूत्रों की माने तो प्रदेश के 6 जिलों में हुए पंचायत चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस के 22 विधायकों और छह मंत्री कांग्रेस प्रत्याशियों का मतदान के आधार पर पोलिंग एजेंटों और कार्यकर्ताओं से हार-जीत का फीडबैक ले रहे हैं और अपने-अपने समीकरणों के हिसाब से बोर्ड बनाने की गणित बैठा रहे हैं. पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की माने तो कांग्रेस प्रत्याशियों को बागियों से नुकसान हुआ है. कांग्रेस के बागियों ने कांग्रेस के प्रत्याशियों के वोट काटे हैं, ऐसे में यहां कांग्रेस प्रत्याशियों के थोड़ी परेशानी बनी हुई है. इधर बीजेपी के रणनीतिकार भी लगातार कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं.

कांग्रेस ने विधायकों को अपने विधानसभा क्षेत्रों में पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य प्रत्याशियों की बाड़ेबंदी की पूरी जिम्मेदारी दी है. जिला प्रमुख और प्रधान बनाने में विधायकों की ही मुख्य जिम्मेदारी है. प्रत्याशियों को जयपुर, जोधपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर, भरतपुर और सिरोही जिलों के उम्मीदवारों को अलग-अलग रिसॉर्ट और होटलों में रखा है. बीजेपी ने भी विधायकों के साथ चुनाव मैनेजमेंट के लिए अपने खास सिपहसालारों की पूरी टीम उतारी है. बाडाबंदी में प्रत्याशियों की मान मनुहार हो रही है ऐसे इंतजाम किए गए हैं कि उन्हें किसी भी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े.

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4 सितंबर को रिजल्ट आने के बाद हारने वाले उम्मीदवारों को बाड़ेबंदी से विदाई दी जानी तय है. अगले तीन दिन तक जीते हुए उम्मीदवारों को कड़ी निगरानी में रखा जाएगा. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को क्रॉस वोटिंग का खतरा सता रहा है. सियासी तोड़फोड़ से बचने के लिए ही उम्मीदवारों को पहले से ही होटल-रिसॉर्ट में रखा है. इन चुनावों में बीजेपी को क्रॉस वोटिंग और उम्मीदवारों के टूटने का खतरा ज्यादा है, क्योंकि इन चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को कई तरह के मैनेजमेंट से जुड़े एडवांटेज मिलते हैं, जो विपक्ष में होने के कारण बीजेपी के पास नहीं है.

4 सितंबर को होगी निर्दलीय-बागियों की बाड़ाबंदी में एंट्री
दूसरी ओर पंचायत चुनाव के तीन चरणों का परिणाम 4 सितंबर को जारी होने के बाद कांग्रेस विधायक अपने ही बागियों और निर्दलीयों को बाड़ाबंदी में शामिल करेगी. बताया जाता है कि कांग्रेस के अधिकांश बागी विधायकों के संपर्क में है और जैसे ही परिणाम जारी होगा तो उनकी एंट्री भी बाड़ाबंदी में हो जाएगी और वह 6 सितंबर तक बाड़ाबंदी में रहेंगे और कांग्रेस के जिला प्रमुख के उम्मीदवार और प्रधान उम्मीदवार के पक्ष में वोट करेंगे. पार्टी नेताओं की माने तो बाड़ाबंदी के दौरान विधायकों और कांग्रेस नेताओं की ओर से प्रत्याशियों को प्रधान और जिला प्रमुख के चुनाव में वोट देने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

जादूगर के गढ़ में सबसे दिलचस्प है मुकाबला
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गढ़ जोधपुर के जिला प्रमुख का चुनाव और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के क्षेत्र आमेर में प्रधान का चुनाव राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है. जोधपुर और आमेर का रिजल्ट सियासी मायने वाला होगा. जोधपुर और आमेर में सदस्य किसके कितने जीतते हैं, यह भी अहम होगा. जोधपुर में कांग्रेस की लड़ाई दिलचस्प है पंचायत चुनाव में इस बार मदेरणा परिवार कई सालों बाद एक साथ मैदान में उतरा है. मदेरणा परिवार की कमान ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा के हाथ में थी. वहीं सीएम गहलोत के सिपहसालार पूर्व सांसद बद्री जाखड़ ने भी पूरी जान झौंक रखी है. इधर चुनाव से ऐन पहले पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने जोधपुर और बाड़मेर का दो दिन का दौरा कर सियासी हलचल बढ़ा दी थी. वहीं कांग्रेस से सांसद प्रत्याशी रहे वैभव गहलोत ने भी धुंआधार चुनावी सभाएं की हैं.

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बात करें बीजेपी की तो यहां ऐन चुनाव से पहले गुटबाजी सामने आ गई. केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के खिलाफ उनके पुराने सहयोगी और राजे समर्थक बाबू सिंह ने विरोध का झंडा उठा लिया. जोधपुर के बालेसर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन किया और चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया. इस विरोध की कमान शेखावत के पूर्व साथी बाबू सिंह राठौड़ के हाथ में थी. अब देखना ये होगा कि इस गुटबाजी का नुकसान बीजेपी को चुनाव में कितना उठाना पड़ता है. वहीं जोधपुर की कई सीटों पर सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी RLP ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों की नींद उड़ा दी. हनुमान बेनीवाल ने जमकर चुनाव प्रचार किया और कांग्रेस बीजेपी पर बराबर निशाने साधे. चुनाव प्रचार के दौरान हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा के बीच जमकर बयानबाजी भी हुई.

जयपुर और भरतपुर में रोचक मुकाबला, प्रतिष्ठा दांव पर
इधर जयपुर के पंचायत चुनाव में खासकर आमेर में बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. चुनाव से ठीक पहले पूनियां को जब इस बात की खबर लगी की उनके खास आदमियों के साथ भीतरघात का खतरा है तो पूनियां खुद मैदान में उतर गए. पूनियां ने आमेर के गांव-गांव में जाकर खुद प्रत्याशियों के समर्थन में जमकर प्रचार किया. इसी तरह चौमूं में बीजेपी विधायक रामलाल शर्मा, फुलेरा में निर्मल कुमावत और सांगानेर में अशोक लाहोटी के लिए भी ये चुनाव में परीक्षा है. दौसा में बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा और सांसद जसकौर मीणा के लिए भी यह चुनाव प्रतिस्पर्धा वाला है वहीं भरतपुर में पूर्व विदेश मंत्री जगत सिंह के बेटे की बीजेपी में दोबारा एंट्री हुई है. वो खुद भी चुनाव मैदान में हैं और उन्हें जिला प्रमुख पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. इस चुनाव में भाजपा को भी जगत सिंह की ताकत का अंदाजा लग जाएगा.

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दोनों दलों को भीतरघात का सता रहा डर
दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने बाड़ेबंदी भले कर ली हो, लेकिन गुटबाजी का असर साफ तौर पर प्रमुख प्रधान के चुनावों में दिखेगा. कई जगहों पर भीतरघात के अब से ही आसार दिख रहे हैं. रिजल्ट आने के बाद इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि प्रमुख और प्रधान उम्मीदवार किस खेमे का है. कांग्रेस में टिकट बांटने में विधायकों की ज्यादा चली है, इसलिए विरोधी खेमा नाराज है. बीजेपी में भी अंदरखाने नाराजगी कम नहीं है, लेकिन रिजल्ट आने के बाद असली समीकरण बनेंगे. चुनाव का रिजल्ट आने के बाद ही तय होगा की कौन सा विजयी प्रत्याशी किस गुट में जाएगा.

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