पॉलिटॉक्स ब्यूरो. नए साल का आगमन हो गया है लेकिन राजस्थान में सियासी ड्रामा बदस्तूर जारी है. आने वाले समय में भी राजनीति हावी रहेगी, पॉलिटॉक्स की कामना है कि राजनीति के लिहाज से यह साल बेहतर रहे और एक दूसरे पर राजनीतिक छींटाकशी में भाषा का स्तर नीचे न गिरे. वहीं इस मौके पर बीते साल के सियासी किस्सों पर नजर न डाली जाए तो बेमानी होगा. साल 2019 में कुछ ऐसी सियासी घटनाओं ने जन्म लिया तो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति के नक्शे पर भी छाई रही. आम चुनाव, उप चुनाव और आरसीए विवाद कुछ ऐसे ही राजनीतिक किस्से रहे जिनकी गूंज लंबे समय तक दिल्ली में गूंजती रही. इन मुद्दों पर सत्ताधारी और विपक्ष दोनों कई बार आमने सामने हुए. फ्लैशबैक 2019 (Rajasthan Flashback 2019) में आइए जानते हैं राजस्थान के कुछ ऐसे ही टॉप 5 किस्सों के बारे में …
1. आम चुनाव में कांग्रेस की करारी हार तो गजेंद्र सिंह का गहलोत पर करारा वार
प्रदेश में गहलोत सरकार बनने के 5 महीने के बाद ही आम चुनाव आ गया. प्रदेश में सरकार बनने के बाद कांग्रेस निश्चिंत थी कि आधी से ज्यादा सीटें पार्टी के खाते में आसानी से चली जाएंगी. बहती गंगा में हाथ धोने के इरादे से सीएम अशोक गहलोत ने आलाकमान से सिफारिश कर अपने पुत्र वैभव गहलोत को अपने गृह क्षेत्र जोधपुर सीट से चुनावी जंग में उतार दिया, साथ ही मंत्रियों की पूरी फौज प्रचार के लिए खड़ी कर दी. लेकिन गजेन्द्र सिंह शेखावत वैभव को चौकानें वाली पटखनी दी, एक भी ऐसा बूथ नहीं रहा जहां पर वैभव ने बढ़त ली हो. (Rajasthan Flashback 2019) यहां तक कि मुख्यमंत्री पुत्र होने के बावजूद खुद के मौहल्ले के बूथ से भी वैभव बढ़त नहीं बना पाए. वहीं जब परिणाम आए तो कांग्रेस सरकार को जैसे लकवा मार गया हो. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद 25 की 25 सीटें एक बार फिर बीजेपी के पास चली गईं. हालांकि नागौर सीट पर आरएलपी के हनुमान बेनीवाल जीत कर आए लेकिन आम चुनाव में उन्होंने बीजेपी से गठबंधन कर लिया था.
2. अलवर रेप केस को कांग्रेस ने छुपाया तो बीजेपी ने जमकर भुनाया
आम चुनाव के बीच में अलवर गैंगरेप मामले ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया. थानागाजी क्षेत्र में कुछ लोगों के एक युवती से दुष्कर्म कर उसके वीडियो को वायरल करने की घटना ने प्रदेश को झगझोर कर रख दिया और निर्भया हादसे की यादों को ताजा कर दिया. चुनाव के चलते सरकार ने इस मामले को सामने नहीं आने दिया लेकिन बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ.किरोड़ीलाल मीना ने इस मामले को पूरजोर से हवा दी और मामले को राजनीति रंग देने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी. (Rajasthan Flashback 2019) राजस्थान विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और आरएलपी चीफ हनुमान बेनीवाल ने भी इसमें मीना का साथ दिया. हजारों लोग सड़कों पर आ गए और पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग करने लगे. विपक्ष ने सत्ताधारी पक्ष को जमकर घेरा. बढ़ते विरोध के बेस्ड सरकार ने पीड़िता के हाल जाने और अपराधियों को पकड़ने के आदेश दिए और दोषियों की गिरफ्तारी हई. मामले की गम्भीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद भी पीड़िता के हालचाल जानने अलवर पहुंचे.
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3. आरसीए विवाद में दो दिग्गज़ हुए आमने सामने, जूनियर गहलोत के सिर सजा ताज
प्रदेश की राजनीति में आंतरिक कलह तब सामने आ गई जब आरसीए के अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ. सीपी जोशी के कहने पर मुख्यमंत्री गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत को आरसीए अध्यक्ष बनाना चाहते थे, वहीं नौखा से पूर्व विधायक और दिग्गज कांग्रेसी नेता ने भी अपनी दावेदारी जताई. अंदरखाने में इस संबंध में बात भी हुई लेकिन सीपी जोशी वैभव को आरसीए अध्यक्ष बनाने पर अड़े रहे. फाइनली वैभव गहलोत और रामेश्वर डूडी दोनों ने ही अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा. लेकिन फिर सरकार है तो सब मुमकिन है की तर्ज पर नतीजा निकला कि नामांकन वाले दिन कथित तौर पर डूडी को आरसीए कार्यालय में घुसने तक नहीं दिया गया. (Rajasthan Flashback 2019) इस घटना को और अधिक सियासी रंग देने के लिए आरएलपी चीफ हनुमान बेनीवाल ने अपने जाट भाई डूडी का समर्थन करते हुए भारी संख्या में कार्यकर्ताओं की भीड़ एसएमएस स्टेडियम के बाहर भेज दी. हालांकि नागौर जिला क्रिकेट संघ के बर्खास्त होने के चलते डूडी और उनके गुट के अन्य लोगों का नामांकन रद्द कर दिया गया. नाराजगी के चलते डूडी ने पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेना बंद कर दिया था.
4. राजस्थान उप चुनाव में कांग्रेस की बल्ले बल्ले, बीजेपी को होना पड़ा शर्मिंदा
मंडावा व खींवसर विधायकों के लोकसभा चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने से इन दोनों सीटों पर उप चुनाव हुआ. बीजेपी ने गठबंधन के चलते खींवसर सीट आरएलपी के लिए छोड़ दी जहां से हनुमान के भाई नारायण बेनीवाल खड़े हुए और उनके सामने थे कांग्रेस के वरिष्ठ हरेंद्र मिर्धा. मंडावा सीट से कांग्रेस की ओर से रीटा चौधरी मैदान में थी. वहीं बीजेपी ने कांग्रेस की बागी सुशीला सिंगडा को मैदान में उतारा. मंडावा में रीटा भारी पड़ी और ये परम्परागत सीट फिर से कांग्रेस के खाते में आ गई. वहीं जैसा कि उम्मीद थी, भितरघात के चलते नारायण बेनीवाल बमुश्किल ये सीट बचा पाए. यहां बीजेपी के हाथ पूरी तरह से खाली रहे. यही वजह रही कि निकाय चुनाव और अब पंचायतीराज चुनावों में बीजेपी-आरएलपी गठबंधन अभी तक नहीं हो पाया है.
5. हाईब्रीड फॉर्मूले पर सत्ता और संगठन के बीच की खींचतान खुल कर आई सामने, आलाकमान ने दी पायलट को तवज्जो
राजस्थान में निकाय प्रमुखों के चुनावों में गहलोत सरकार द्वारा पार्षद बने बिना निकाय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिये बनाए गए हाईब्रीड फॉर्मूले पर सत्ता और संगठन के बीच की खींचतान खुलकर सामने आई. इस फॉर्मूले का सचिन पायलट ने जबरदस्त विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए गलत बताया और स्पष्ट कहा कि इससे बैकडोर एंट्री को बढ़ावा मिलेगा. यह निर्णय व्यावहारिक नहीं है, जो व्यक्ति पार्षद का चुनाव नहीं जीत पा रहा हो उसको हम चेयरमैन या मेयर का चुनाव लडने दें, यह सही नहीं है. कांग्रेस हमेशा लोकतंत्र को मजबूत करने की बात करती आई है, लेकिन मुझे नहीं लगता इस निर्णय से लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी. इसलिए यह जो निर्णय लिया गया है मैं इससे सहमत नहीं हूं. पायलट के साथ मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास व खाद्य व आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा सहित कई विधायक इस मुद्दे पर अपनी ही सरकार का खुले तौर पर विरोध करते दिखे. (Rajasthan Flashback 2019)
वहीं इस हाईब्रीड फॉर्मूले की घोषणा के बाद विपक्ष में बैठी भाजपा को भी बैठे-बिठाए सरकार को घेरने का एक ओर मौका मिल गया और बीजेपी इस फॉर्मूले के साथ-साथ पार्टी में पड़ी फूट को मुद्दा बनाने में जुट गई. ऐसे में यह मामला दिल्ली कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा. ऐसे में आलाकमान के निर्देश पर सचिन पायलट की बात को तवज्जो देते हुए निकाय प्रमुख के चुनाव में पार्षद नहीं होने की शर्त को हटाए जाने पर बनी सहमति.
6. निकाय चुनावों के प्रथम चरण में कांग्रेस को मिली जबरदस्त सफलता वहीं जयपुर, कोटा और जोधपुर में दो-दो निगम
प्रदेश में पहले चरण का निकाय चुनाव नवंबर में संपन्न हुआ, उपचुनाव के बाद हुए इस चुनाव में भी भाजपा को मुह की खानी पडी. प्रदेश के कुल 49 निकायों के 2105 वार्ड पाषर्दों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के 961 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. वहीं भाजपा के 737 प्रत्याशी को विजयश्री हासिल हुई. 16 वार्डों में बसपा, तीन में माकपा और दो में एनसीपी ने कब्जा जमाया. अन्य 386 सीटों पर निर्दलीयों का कब्जा रहा. इसके बाद हुए 49 निकाय प्रमुखों के चुनाव में 37 निकायों में कांग्रेस का बोर्ड बना तो 12 में भाजपा बोर्ड बनाने में सफल रही. बोर्ड बनाने में 49 में से 20 निकायों में निर्दलीयों की भूमिका अहम रही. वहीं तीन नगर निगमों में से उदयपुर, बीकानेर में बीजेपी और भरतपुर में कांग्रेस बोर्ड बनाने में कामयाब रहीं.
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वहीं गहलोत सरकार ने एक और चौंकाने वाला निर्णय लेते हुए जयपुर, कोटा और जोधपुर में दो-दो नगर निगम और दो-दो महापौर की घोषणा कर दी है. इनमें जयपुर में पहला हेरिटेज निगम कहलाएगा, जबकि दूसरा ग्रेटर जयपुर नगर निगम कहलाया जायेगा. ऐसे में नवम्बर के महीने में जयपुर, कोटा और जोधपुर में नगर निकाय के चुनाव नहीं हुए. अब तीनों शहरों के छह नगर निगम क्षेत्रों में फिर से वार्डों की सीमा का परिसीमन होगा. मिली जानकारी के अनुसार जयपुर में हेरिटेज निगम में 100 वार्ड और ग्रेटर जयपुर निगम में 150 वार्ड होंगे. हेरिटेज निगम में जयपुर परकोटे का हिस्सा आएगा और शेष हिस्सा ग्रेटर निगम का रहेगा. वहीं, जोधपुर में दो नगर निगम बनाए जाएंगे, जिनको 80-80 वार्डों में विभाजित किया जाएगा.
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