Politalks.News/Delhi. AICC के पास अपना स्थाई अध्यक्ष नहीं है. इसको लेकर कांग्रेस कार्य समिति की बैठक 16 अक्टूबर को होगी और इस बैठक का एजेंडा बहुत साफ होगा. वैसे तो कहने को संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट करके कहा है कि, ‘देश के मौजूदा राजनीतिक हालात और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर भी चर्चा होगी लेकिन असल में पार्टी के संगठन को लेकर विचार किया जाना है. पिछले साल अगस्त से कांग्रेस के नेताओं का G-23 समूह इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि संगठन का चुनाव कराया जाए और अंतरिम अध्यक्ष की व्यवस्था समाप्त हो. आपको बता दें कि सोनिया गांधी दो साल से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम कर रही
हैं. अब सियासी गलियारों में एक ही बात की चर्चा हो रही है कि जब सब निर्णय उनके द्वारा लिए जा रहे हैं तो उन्हें अध्यक्ष बनने से क्या परहेज है?
कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर कार्य समिति और प्रदेशों में संगठन के चुनाव कराने की मांग करने वाले जी-23 समूह के नेताओं ने जब से सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी है तब से कांग्रेस में लगातार दो काम हो रहे हैं एक काम यह कि चिट्ठी पर दस्तखत करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है और दूसरा काम यह कि राहुल गांधी पर कांग्रेस अध्यक्ष बनने का दबाव बनाया जा रहा है. राहुल गांधी की सलाहकार मंडली के सारे सदस्य चाहते हैं कि वे अध्यक्ष बन जाएं. उनका कहना है कि अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन करते हैं तो चुनाव की नौबत नहीं आएगी. जिस तरह से दिसंबर 2017 में वे निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए थे, उसी तरह इस बार भी चुन लिए जाएंगे.
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कांग्रेस कार्य समिति की कई बैठकों में कई मुख्यमंत्रियों और अन्य सदस्यों ने राहुल के अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन उन पर चर्चा नहीं हुई. हाल के दिनों में यूथ कांग्रेस और कांग्रेस की छात्र ईकाई एनएसयूआई की बैठकों में औपचारिक रूप से इस बात का प्रस्ताव पास किया गया कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनें. सो, चाहे कांग्रेस कार्य समिति के वरिष्ठ नेता हों या युवा और छात्र नेता सब चाहते हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनें.
तभी इस बात की बहुत संभावना है कि 16 अक्टूबर को होने वाली कार्य समिति की बैठक में राहुल के अध्यक्ष बनने का साझा प्रस्ताव आए. कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई की ओर से मंजूर किए गए प्रस्तावों का जिक्र करते हुए राहुल से आग्रह किया जाएगा कि वे अध्यक्ष पद संभालें. अगर वे तैयार हो जाते हैं तो इसी बैठक में चुनाव की तारीखों पर विचार हो सकता है या कांग्रेस की चुनाव समिति को तारीख तय करने के लिए कहा जा सकता है. एक संभावना इस बात की भी है कि अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के हवाले राहुल अध्यक्ष न बनें. चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल, प्रियंका को समझाया हुआ है कि पांच राज्यों में कांग्रेस के लिए कोई संभावना नहीं है. हालांकि कांग्रेस नेता इससे सहमत नहीं हैं फिर भी एक गुंजाइश है कि इस बहाने राहुल का अध्यक्ष बनना टला रहे. फिर भी इस बैठक में चुनाव कराने पर सहमति बन सकती है.
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इधर सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं कि जब सब चाहते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बनें. तो फिर दिक्कत कहां है?. कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ‘छद्म नैतिकता’ के शिकार हो गए हैं. राहुल को लग रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बुरी तरह से हारने के बाद जब उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तो अब दो साल में क्या बदल गया है, जो उनको फिर से अध्यक्ष बन जाना चाहिए! यह एक नैतिक दुविधा है, राजनीति में जिसका शिकार सिर्फ वैसे लोग हो सकते हैं, जिनमें थोड़ी-बहुत शर्म बची होती है. सो, कह सकते हैं कि राहुल में थोड़ी बहुत शर्म बची हुई है और इसलिए वे अभी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. वे पिछले दो साल से इस बात की कोशिश और इंतजार करते दिख रहे हैं कि कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति में कुछ सुधार हो, जिसका श्रेय उनको मिले और तब वे फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनें. उनकी यह दुविधा और उनका इंतजार कांग्रेस में पिछले दो साल से बने गतिरोध और कई नई समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.
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राहुल गांधी ने नैतिकता का यह चोला तो ओढ़ा हुआ है कि वे कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेंगे लेकिन असल में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में काम करते रहेंगे. यह असलियत सबको पता है कि राहुल गांधी ही वास्तविक कांग्रेस अध्यक्ष हैं. कपिल सिब्बल ने इसी ओर इशारा करते हुए कहा था कि कांग्रेस में कोई चुना हुआ अध्यक्ष नहीं है फिर भी कौन फैसले कर रहा है! जाहिर है फैसले सारे राहुल गांधी कर रहे हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला हो या अध्यक्ष की नियुक्ति का फैसला हो, दोनों राहुल गांधी के सरकारी आवास पर हुए. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर जो पूरा घटनाक्रम चला उसका भी केंद्र राहुल गांधी का आवास था. संगठन से लेकर चुनाव और यहां तक कि पार्टी के रोजमर्रा के कामकाज के सारे फैसले भी राहुल गांधी और उनकी टीम के लोग कर रहे हैं. फिर ऐसी नैतिकता किस काम की! यह तो गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज करने जैसा है!.